प्रकृति प्रेम के महापर्व करमा में मांदर की थाप पर थिरके सीएम हेमंत सोरेन
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प्रकृति प्रेम के महापर्व करमा में मांदर की थाप पर थिरके सीएम हेमंत सोरेन

आदिवासियों का प्रकृति प्रेम का महापर्व करमा पूरे झारखंड में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. जगह-जगह इसको लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है. लोग मांदर की थाप पर झूमते-नाचते और प्रकृति का धन्यवाद देते नजर आ रहे हैं.

(करमा पर्व के दौरान सीएम हेमंत सोरेन)

रांची : आदिवासियों का प्रकृति प्रेम का महापर्व करमा पूरे झारखंड में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. जगह-जगह इसको लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है. लोग मांदर की थाप पर झूमते-नाचते और प्रकृति का धन्यवाद देते नजर आ रहे हैं. इस पर्व के मौके पर राज्य के सीएम हेमंत सोरेन ने भी राज्यवासियों को सुख, शांति और समृद्धि की शुभकामना दी है.

उन्होंने अपने संदेश में लिखा कि प्रकृति महा पर्व करम परब की सभी को अनेक-अनेक शुभकामनाएं और जोहार. भाई-बहन के अटूट प्रेम का यह पर्व, आप सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाये, यही कामना करता हूं.

बता दें कि झारखंड विधानसभा में विश्वासमत जीतने के बाद सीएम हेमंत सोरेन ने आज करमा का त्यौहार मनाया. करम पुर्जा महोत्सव महादेव टोली के लोअर चुटिया रांची में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी पत्नी के साथ पहुंचे, इस दौरान राज्य सभा सांसद महुआ माझी भी मौजूद रहीं. पुलिस मेंस एसोसिएशन में आयोजित करमा पूजा में पहुंचने पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का परंपरागत तरीके से स्वागत किया गया.

यहां पहुंचे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने करम डाली की पूजा की. वहीं इस कार्यक्रम पर हो रहे करम पूजा के दौरान हेमंत सोरेन ने मांदर भी बजाया. वहां मौजूद सभी लोगों का हेमंत सोरेन ने अभिवादन किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मौके पर कहा कि कोरोना के चलते 2 सालों के बाद फिर से करमा पूजा धूमधाम से मनाया जा रहा है. कई जगहों पर भव्य रूप से इसे मनाया जा रहा है. जहां आदिवासी संथाल की संस्कृति देखने को मिलती है, साथ ही साथ इस पर्व से बच्चों को अपनी संस्कृति की जानकारी मिलती है. 

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बता दें कि करमा पूजा को शांति और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार झारखंड की संस्कृति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. करमा पूजा में बांस की डाली का बहुत महत्व है. इस दिन लड़कियां सारा दिन व्रत रखती हैं. इसके बाद शाम को बांस की डाली की पूजा करती हैं. इस त्योहार की रात लोग लोकनृत्य और गीतों का आनंद लेते हैं. इस त्योहार की करमा डाली का भी नाम दिया गया है. इस त्योहार की खासियत यह है कि सभी बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए यह उपवास रखती हैं. जिसमें भाई करम की डाल को लेकर घर के आंगन में गाड़ते हैं. उसके बाद देर रात तक घर की महिलाएं लोकनृत्य करती हैं और गीत गाती हैं. इसके बाद अगली सुबह उसी करम डाली का विर्सजन किया जाता है.

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