अब झारखंड की तसर साड़ियां होंगी पॉपुलर, पहली बार उत्पादन हुआ शुरू
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अब झारखंड की तसर साड़ियां होंगी पॉपुलर, पहली बार उत्पादन हुआ शुरू

Jharkhand Samachar: पहली बार झारखंड के तसर से राज्य में ही वस्त्र निर्माण का कार्य शुरू हुआ है. इससे पहले तक राज्य में सिर्फ तसर का उत्पादन होता था.

 

अब झारखंड की तसर साड़ियां होंगी पॉपुलर. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Ranchi: झारखंड के रेशम के धागों को पिरोकर अब उसे खूबसूरत साड़ियों का रूप दिया जा रहा है और पहली बार झारखंड के तसर से राज्य में ही वस्त्र निर्माण का कार्य शुरू हुआ है. इससे पहले तक राज्य में सिर्फ तसर का उत्पादन होता था.

गुणवत्ता में अव्वल हैं साड़ियां
मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता ने बताया कि झारखंड राज्य खादी बोर्ड की यह नई पहल है. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के आदेश के बाद बोर्ड के चांडिल स्थित उत्पादन और प्रशिक्षण केंद्र में पहली बार तसर साड़ियों का उत्पादन शुरू किया गया है. ये साड़ियां गुणवत्ता में काफी अच्छी मानी जा रही हैं.

बुनकरों को मिलेगा रोजगार 
उन्होंने बताया कि चांडिल के केंद्र में तसर धागों की बुनाई और फिर उसकी डिजाइनिंग तक का काम किया जा रहा है. अभी उत्पादन सीमित मात्रा में है लेकिन इसका उत्पादन बढ़ाने की योजना है. बोर्ड अब आमदा और कुचाई के प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्रों में भी साड़ियों के उत्पादन पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है. इससे राज्य के बुनकरों को रोजगार और झारखंड में बनी साड़ियों को बाजार मिलेगा.

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आकर्षक है डिजाइन 
चांडिल प्रशिक्षण एवं उत्पादन केंद्र पर बुनकरों को एक साड़ी बनाने में तकरीबन तीन दिन का समय लग रहा है. इन साड़ियों की डिजाइन बहुत आकर्षक है. झारखंड के कुचाई क्षेत्र का तसर गुणवत्ता में सबसे बेहतर माना गया है. यहां पर इन तसर के धागों का उपयोग साड़ी बनाने में किया जा रहा है. यहां शिल्पी रोजगार योजना के तहत महिलाओं को सिलाई मशीन प्रदान की गई है.

महिलाओं को मिला छह महीने का प्रशिक्षण
झारखंड खादी बोर्ड न सिर्फ राज्य के स्थानीय हस्तकरघा और हस्तशिल्प उद्योग को प्रोत्साहित कर रहा है बल्कि यहां के बुनकरों, हस्तशिल्पियों को भी रोजगार से जोड़ने व सशक्त करने का काम कर रहा है. इसी क्रम में राज्य के विभिन्न जिलों में 329 महिलाओं के बीच सिलाई मशीन का वितरण किया गया. सिलाई मशीन का वितरण शिल्पी रोजगार योजना के तहत किया गया. महिलाओं को छह महीने का प्रशिक्षण भी दिया गया.

इस दौरान इन्हें प्रतिदिन 150 रूपए का स्टाईपेंड भी प्रदान किया गया. एक बैच में 25 से 30 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया. उन्होंने बताया कि सिलाई मशीनों के अलावा लाह चूड़ी, डोकरा कला की वस्तुएं, पेपर बैग बनाने के लिए उपकरण का भी वितरण किया गया. कोविड की चुनौतियों के बीच प्रशिक्षणार्थी महिलाओं को सुरक्षात्मक उपायों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम से जोड़ा गया.

(इनपुट- भाषा)

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