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रांची: Tusu Parab: देशभर में मकर सक्रांति के त्योहार को बड़े ही धूम धाम सो मनाया जाता है, लेकिन झारखंड में सक्रांति के साथ-साथ इस दिन टुसू पर्व भी मनाया जाता है. झारखंड में इस पर्व का खास महत्व है, इस पर्व को सर्दी में फसल काटने के बाद मनाया जाता है. बता दें कि टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है. इस त्योहार के पीछे कई मान्यतांए और कहानी है तो आइए इस पर्व का इतिहास और इससे जुड़ी मान्यता के बारे में जानते हैं.
पीढ़ियों से चली आ रही पर्व मनाने की परंपरा
झारखंड में ज्यादातर त्योहार प्रकृति से जुड़े होते हैं. इस पर्व के संदर्भ में हालांकि ज्यादा लिखित दस्तावेज तो मौजूद नहीं है, लेकिन पीढ़ियों से जो कहानी और परंपरा चली आ रही है वही इस पर्व का बड़ा आधार है. कूड़मी, आदिवासी समुदाय द्वारा इस त्योहार के दिन अपने नाच-गानों और मकर संक्रांति पर सुबह नदी में स्नान कर उगते सूरज की प्रार्थना करके टुसू की पूजा की करते हैं. इस त्योहार के साथ ही साल की नयी शुरुआत और बेहतरी की कामना की जाती है.
क्या है इस पर्व के पीछे की कहानी और मान्यता
इस पर्व को कुंवारी कन्याओं द्वारा अघन संक्रांति (15 दिसंबर) से लेकर मकर संक्रांति तक इसे मनाया जाता है. इस पर्व के पीछे एक खास कहानी है. बताया जाता है कि टुसू एक गरीब कुरमी किसान की बेटी थी. उसकी सुदंरता की चर्चा दूर- दूर तक के इलाकों में थी. यह खबर राजा के दरबार तक भी फैली. जिसके बाद इस कन्या को प्राप्त करने के लिए राजा ने षड्यंत्र रचा. राजा ने भीषण अकाल का लाभ लेते हुए ऐलान किया कि किसानों को लगान देना ही होगा. जिसके बाद टुसू ने किसानों का एक संगठन खड़ा किया. तब किसानों और राजा के सैनिकों के बीच भीषण युद्ध हुआ. टुसू को राजा के सैनिक जब गिरफ्तार करके राजा के पास ले जाने के लिए पहुंचे तो उसने जल-समाधि लेकर शहीद हो जाने का फैसला किया और उफनती नदी में कूद गयी. तभी इस पर्व को टुसू की कुरबानी की याद में मनाया जाने लगा. चूंकी टुसू एक कुंवारी कन्यार थी, इसलिए कुंवारी लड़कियों इस पर्व में का खास महत्व है.
तीन नामों से जाना जाता है
घर की कुंवारी कन्याएं अघन संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति तक प्रतिदिन शाम के समय टुसू की पूजा करती हैं. इसके अलावा गांव की कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति भी बनाती हैं. इसके बाद इस मूर्ति को अच्छे सा सजाया जाता है. टुसू पर्व को तीन नाम टुसु परब, मकर परब और पूस परब से जाना जाता है. इसके अलावा इस पर्व में बांउड़ी और आखाईन जातरा का भी विशेष महत्व है. बांउड़ी के दूसरे दिन या मकर संक्रांति के दूसरे दिन "आखाईन जातरा" मनाया जाता है. आमतौर पर बांउड़ी तक खलिहान का कार्य समाप्त हो जाता है और आखाईन जातरा के दिन कृषि कार्य का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन होता है. साथ ही नया घर बनाने के लिए नींव रखना भी इस दिन बेहद शुभ माना जाता है.
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