अब अभय के रूस में कई मॉल है 2017 के अप्रैल में राष्ट्रपति पुतिन की पार्टी से जुड़े और कुछ ही महीनों बाद चुनाव हुआ और कुर्स्क से विधायक चुन लिये गये.
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शैलेंद्र, पटनाः जहां चाह....वहां राह, कोई एक साल पहले राजनीतिक दल ज्वाइन करें और उसे टिकट मिले और लगभग 75 फीसदी वोट उसे मिलें. वो भी अपने मुल्क में नहीं, बल्कि विदेश में, जी हां, ये करिश्मा कर दिखाया है मूलरूप से सीवान के रहने वाले अभय कुमार सिंह ने जो रूस के कुर्स्क प्रांत में विधायक बने हैं. वो ऐसे पहले भारतीय हैं, जो रूस किसी प्रांतीय एसेंबली के लिए चुने गये हैं. चुनाव जीतने के बाद अभय कुमार सिंह पहली बार पटना आये हैं. यहां अपने पुराने साथियों, परिवार व स्कूलों के दिनों की याद ताजा कर रहे हैं. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे अभय के पिता जुगल किशोर सिंह का निधन कम उम्र में ही हो गया था. वो इंजीनियर थे, इसके बाद मां इंदु देवी ने परिवार को संभाला और अभय को मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए रूस भेजा.
अभय जब रूस में पढ़ने के लिए गये थे. तो वो सोवियत यूनियन था लेकिन इनकी पढ़ाई के दौरान ही सोवियत यूनियन बिखर गया और रूस के सामने बड़ी चुनौतियां आ गई. उसी दौरान पढ़ने के साथ अभय ने चार भारतीय दवा कंपनियों का डीलरशिप ली और रूस में दवाएं सप्लाई करने लगे, ये सिलसिला शुरू हुआ, तो फिर रुका नहीं...कुछ सालों में ही दवा की अपनी फैक्ट्री हो गई....इसके बाद रूस में रियल स्टेट में हाथ आजमाया और उसमें कामयाब होते गये. तो दवा का कारोबार धीरे-धीरे कम कर दिया.
अब अभय के रूस में कई मॉल है 2017 के अप्रैल में राष्ट्रपति पुतिन की पार्टी से जुड़े और कुछ ही महीनों बाद चुनाव हुआ और कुर्स्क से विधायक चुन लिये गये...बस अभय को एक दुख सताता है कि जब वो विधायक बने...तो उससे कुछ समय पहले ही उनकी मां का निधन हो गया...जो मुकाम उन्होंने अपने अभिभावकों की वजह से हासिल किया...उसे देखने के लिए वो अब इस दुनिया में नहीं हैं...लेकिन अभय लगातार आगे बढ़ रहे हैं.
अभय अपने बचपन को याद करते हैं और बताते हैं कि मां की जिद पर ही वो पढ़ने के लिए रूस गये थे...उन्होंने ही सब व्यवस्था की थी....उन्हें शुरुआती दिनों में रुस में समस्या हुई थी...लेकिन कुछ कर गुजरने की ललक थी...सो वो कुछ ही समय में वहां रच बस गये...लेकिन अपनी माटी बिहार से जुड़े रहे.
अभय को ब्लादीमीर पुतिन से प्रभावित हैं...उन्होंने पूरी दुनिया के आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी जिस तरह से रूस को आगे बढ़ाया है...वो अनुकरणीय है...अभय कहते हैं कि भारत की तरह रूस में बिजली पानी और खाने या फिर गंदगी की समस्या नहीं है...इन स्थितियों से वो देश आगे निकल चुका है...वहां की अलग तरह की समस्याएं हैं...भारत और खास कर बिहार के लोगों को भी उनसे सीखना चाहिये...देश को आगे बढ़ाने का जिम्मा सब लोगों को लेना चाहिये...अभय पटना के अपने शुरुआती स्कूल लोयला में पहुंचे, तो 32 साल पुरानी यादों में खो गये...वो उस बेंच पर बैठे, जहां बैठकर पढ़ते थे...अपने दोस्तों और शिक्षकों को याद किया.
अभय के मन में एक-एक बात ताजा हो गयी स्कूल की...कहने लगे कि लीडरशिप क्वालिटी इसी स्कूल की देन है...मैं इसी स्कूल में यलो हाउस का कैपिटन बना था...उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा...खेल के शौकीन अभय का कहना है कि बचपन में फुटबाल और बास्केट बाल खूब खेलता था...स्कूल के कैंपस से जुड़ी यादों को भी ताजा करते हैं.
स्कूल के प्रिंसिपल ब्रदर सतीश से मिलते हैं, तो पुराने शिक्षकों के बारे में पूछने लगते हैं...अभय को पढ़ानेवाले ज्यादातर शिक्षक रिटायर हो चुके हैं...एक-दो शिक्षकों का निधन हो चुका है, जिसके बारे में सुनकर दुखी भी होते हैं. कहते हैं कि अगर कोई 32 साल पहले दिन लौटा दे, तो मैं खुद को खुशनसीब समझूंगा...वो भी क्या दिन थे...अभय के स्कूल के प्रिंसिपल भी अपने पूरवर्ती छात्र पर गर्व करते हैं.
खेल, संगीत, ड्राइविंग और रूस में बिहारीपन को जिंदा रखने के बारे में बात करनेवाले अभय अपने परिवार और बच्चों के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं...वो जब भी पटना आते हैं...तो गंगा तट पर जाना नहीं भूलते हैं....वो कहते हैं कि दुनिया में हर चीज मिल सकती हैं, लेकिन मां गंगा के किनारे आने के बाद जो सुकून मिलता है...वो कहीं नहीं मिल सकता है....इसी वजह से मैं जब भी पटना आता हूं, तो गंगा के किनारे जाकर कुछ देर जरूर बैठता हूं...
भारतीय राजनीति और राजनेताओं को करीब से देखनेवाले अभय आनेवाले दिनों में कुछ और नया करने की सोच रहे हैं, लेकिन वो उससे पर्दा नहीं उठाते हैं...कहते हैं कि अगर आप व्यवसाय में हैं और एक ऊंचाई तक चले जाते हैं, तो आपका राजनीति से वास्ता पड़ता है...हमने राजनीति से कुछ ज्यादा ही दिल लगा लिया और रूस में उस सदन का सदस्य बन गया, जो वहां का कानून बनाती है...वो कहते हैं कि भले ही हमें रूस में सफलता मिली है, लेकिन हमारे अंदर का बिहारीपन हमेशा हमें अपनी मिट्टी से जोड़े रखता है...चाहे होली-दिवाली का त्योहार हो या फिर महापर्व छठ सबको याद करते हैं और मानते हैं.