न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की पहचान पर उसके नाम का नियंत्रण होना चाहिए और कानून को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह हमेशा ही निर्बाध रूप से इसको बनाए रखने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करे
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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की पहचान पर उसके नाम का नियंत्रण होना चाहिए और कानून को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह हमेशा ही निर्बाध रूप से इसको बनाए रखने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करे.
शीर्ष अदालत ने यह उल्लेख करते हुए कि व्यक्ति की पहचान भारत में संवैधानिक योजना के सर्वाधिक निकट संरक्षित क्षेत्रों में से एक है, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को निर्देश दिया कि वह बोर्ड द्वारा जारी प्रमाणपत्र में नाम में बदलाव के छात्रों के आग्रह पर प्रक्रिया पर आगे बढ़े.
अदालत ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि किसी यौन शोषण पीड़िता का नाम मीडिया या जांच इकाई की लापरवाही के कारण उजागर हो जाए तो पूर्ण कानूनी संरक्षण के बावजूद वह अपने अतीत को भुलाने के अधिकार का इस्तेमाल कर समाज में अपने पुनर्वास के लिए अपना नाम बदलने को कह सकती है लेकिन यदि सीबीएसई उसका नाम बदलने से इनकार कर दे तो उसे अतीत से जुड़े भय के साए में रहने को विवश होना पड़ेगा.
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति बी आर गवई ओर न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि बोर्ड और छात्र प्रभाव के मामले में समान स्थिति में नहीं हैं तथा सुविधा संतुलन छात्रों के पक्ष में झुकेगा. इसने कहा कि प्रमाणपत्रों में त्रुटियां होने से बोर्ड के मुकाबले छात्रों को अधिक नुकसान उठाना पड़ता है.
न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की पहचान पर उसके नाम का नियंत्रण होना चाहिए और कानून को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह हमेशा ही निर्बाध रूप से इसको बनाए रखने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करे और बोर्ड द्वारा जारी प्रमाणपत्र में नाम में बदलाव के छात्रों के आग्रह पर सीबीएसई प्रक्रिया पर आगे बढ़े. पीठ ने संबंधित मामले में कहा कि सीबीएसई द्वारा नाम इत्यादि में सुधार के वास्ते आवेदन करने के लिए ऐसी कोई पूर्व शर्त नहीं थोपी जा सकती कि यह परिणामों के प्रकाशन से पहले ही किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करना ‘‘अनुचित’’ और ‘‘ज्यादती’’ होगा.