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चेन्नई: किसी महिला और पुरुष को बंद कमरे में पाए जाने पर ज्यादातर लोगों की धारणा होती है कि अंदर कुछ 'गलत' हो रहा था. ऐसे ही शक के एक मामले में तमिलनाडु के पुलिसकर्मी को नौकरी गंवानी पड़ी. पुलिसकर्मी ने विभागीय कार्रवाई के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया. मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने मामले की सुनवाई करते हुए पुलिसकर्मी के खिलाफ हुई विभागीय कार्रवाई के आधार को सरासर गलत बताया है.
मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के जस्टिस आर सुरेश कुमार ने केस की सुनवाई करते हुए कहा, 'पुरुष और महिला बंद कमरे में अकेले मिलते हैं तो जरूरी नहीं कि वो अनैतिक संबंध बना रहे हों. समाज में प्रचलित इस तरह के अनुमान के आधार पर किसी भी व्यक्ति के ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती.'
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दरअसल, तमिलनाडु पुलिस (Tamil Nadu) फोर्स में कांस्टेबल के. सरवन बाबू 10 अक्टूबर 1998 को एक महिला कांस्टेबल के साथ अपने सरकारी क्वार्टर में थे. इस दौरान उनके पड़ोसी वहां पहुंच गए, उस क्वार्टर का दरवाजा अंदर से बंद था. इसके बाद सरवन पर महिल कांस्टेबल से संबंध बनाने के गंभीर आरोप लगे और नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. विभागीय कार्रवाई और चरित्र पर लगे दाग के खिलाफ सरवन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया.
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सरवन के मुताबिक महिला कांस्टेबल उसके पड़ोस में ही रहती थी और वह घर की चाबी मांगने आई थी. जब वे दोनों बात कर रहे थे तभी किसी ने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और फिर कुछ लोगों द्वारा जानबूझ कर उसे फंसाने के लिए दरवाजे पर दस्तक देने का नाटक किया गया. इसी मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, 'वहां इस बात को साबित करने के लिए कोई चश्मदीद गवाह या कोई अन्य ठोस सबूत नहीं मिला कि दोनों कांस्टेबल आपत्तिजनक हालत में थे.'
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