'वहां तिल-तिल कर मौत मिलती है...अपने हिंदू होने की पहचान मिटाकर एक जिंदा लाश बनकर रहना पडता है...दिन का उजाला भी गहरी काली अंधेरी रात है...कहते है पाकिस्तान में रहने के दो ही रास्ते है या मुसलमान बने या मरो.'
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नई दिल्लीः देश की राजधानी दिल्ली ने पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों को अपने दिल में जगह दी है. दिल्ली के आदर्श नगर इलाके और मजनू का टीला में बनीं दो रिफ्यूजी कालोनियों में पाकिस्तान से आए हर परिवार के पास पाकिस्तान छोड़कर भारत आने की अलग-अलग वजह हैं. आदर्श नगर में 110 पाकिस्तानी हिंदू परिवार रहते हैं, जबकि मजनूं का टीला करीब 500 पाकिस्तानी हिंदुओं का घर है और आए दिन इस बस्ती में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों पहुंच रहे है. लगातार इनकी तादाद इस बस्ती में बढ रही है.
अपनी जान की सलामती के लिए पाकिस्तनी में रहनेवाले हिंदू भागकर भारत आए है और शरणार्थी बस्ती में रह रहे है. पाकिस्तान जो कि इन शरणार्थियों का अपना मुल्क है वहां इन पर जो जुल्मों सितम हो रहे है वो हैरान करनेवाले है. पाक के सिंध में प्रांत में हिंदुओं की ज्यादा आबादी है, जहां सबसे ज्यादा हिंदुओं को प्रताड़ित किया जाता रहा है. इसमें भी ज्यादातर अत्याचार हिंदू लड़कियों पर किया जा रहा है. जिन्हें जबरन धर्म बदलने के लिए घसीटा जाता है.
पाकिस्तानी हिंदू शर्णार्थियों की बस्ती में गंगाराम 2 महीने पहले ही आए है. गंगाराम के 4 बच्चे है 2 बेटे और 2 बेटियां लेकिन पाकिस्तान में उन्हें दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया गया था. उनकी बेटियों को अगवा कर लिया जाएगा यह डर भी था. वह बताते है कि पाकिस्तान में 18 से 25 साल तक कि हिंदू गरीब ल़डकियों को अगवा कर उन्हें मुसलमान बनाया जाता है और शादी के बाज बच्चे पैदा कर उन्हें मरने के लिए छोड दिया जाता है. यह बोलते हुए उनका गला रुंध गया. उन्होंने आगे बताया कि कई दिन उनके परिवार ने जंगल में बिताएं ताकि कोई उन्हें मार ना दें. इसके बाद किसी तरह अपनी बेटी और बीवी की जान बचाकर भारत आ गए लेकिन उनके 2 बेटे वहीं पाकिस्तान में फंसे हुए है. वीजा के लिए भी 8000 रुपए मांगते है, इतने पैसे भी नहीं थे. जितने पैसे थे उतने में परिवार के 4 लोग भारत आ गए.
इस शरणार्थी बस्ती में अर्जुन अपना घर बना रहे है. लेकिन अपने ही मुल्क में जो उन्हें यातनाएं मिली वो उसे भूला नहीं पा रहे. ये लोग तो भारत आ गए लेकिन हर परिवार से जुड़ा कोई न कोई रिश्तेदार वहीं पाकिस्तान में ही छूट गया है. किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी की बेटी, किसी की मां बस लोग वहां से जान बचाकर निकले है और परिवार के जो सदस्य पीछे पाकिस्तान में छूट गए है उनकी सुरक्षा की चिंता इन्हें दिन रात रहती है. बस्ती में घर बनाने के लिए लकडियां काटते शरणार्थी अर्जुन ने बताया कि वहां उन हिंदुओं को कहा जाता है कि पाकिस्तान मुसलमानों का है हिंदू हो तो भारत जाओँ. दिल्ली में भले ही टैंट में रहते हैं, संसाधनों की कमी है, लेकिन तब भी भारत में 'आजाद' हैं.
उन्होंने कहा कि अपना घर छोड़कर यहां आने का फैसला करना आसान नहीं था, लेकिन दूसरा कोई चारा भी नहीं था..य़ह दर्द बस्ती में रहनेवाले हर एक पाकिस्तानी हिंदू का है ..पाकिस्तान में यह लोग डर में जी रहे थे, इन्हें धमकियां दी जाती थीं,इन्हें प्रताड़ित किया जाता था और आर्थिक रूप से इन लोगों का बहिष्कार भी कर दिया जाता है ..7 सालों से शरणार्थी बस्ती में रह रहे यह लोग जीते जी कभी पाकिस्तान नहीं जाना चाहते है.
जब इन लोगों से जी न्यूज की टीम ने कश्मीर से धारा 370 और 35 A हटाए जाने के भारत सरकार के फैसले को वो किस तरह देखते है? और पाकिस्तान कश्मीरियों को लेकर बिना वजह जो चिंता जताता है उस बारे में जानने की कोशिश की तो मानो इन शरणार्थियों के जख्म हरे हो गए. शरणार्थियों में से नेहरु लाल ने कहा कि हम हिंदुओं के साथ कुत्तों की तरह व्यवहार करनेवाला पाकिस्तान , भारत के अंदरुूनी मामले पर बोले तो हंसी आती है ...पाकिस्तान के रहनेवाले हम बाशिंदों को मरने के लिए छोड दिया है हमारी कभी चिंता नहीं की और कश्मीर पर बुरी नजर बनाए बैठा है पाकिस्तान.
आपको बता दें पाकिस्तान की कुल 17 करोड़ आबादी में से हिंदुओं की आबादी मात्र 1.85 फीसदी है, जो आजादी के समय कभी दस फीसदी से ज्यादा हुआ करती थी. पाकिस्तान में सबसे ज्यादा हिंदू सिंध प्रांत में रहते हैं. जनसंख्या के हिसाब से हिंदू सिंध प्रांत के थापरकर जिले के मीठी कस्बे में सबसे ज्यादा हैं जहां 70 फीसदी तक हिंदू रहते हैं. पाकिस्तान से हर साल हजारों हिंदू परिवार भागकर भारत में ना केवल शरण लेते हैं बल्कि भारतीय नागरिकता की गुहार भी लगाते हैं.
पिछले पांच सालों में भारत सरकार ने काफी बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए शरणार्थी हिंदुओं को नागरिकता दी है...भारत में एक अनुमान के तौर पर दो लाख से ज्यादा हिंदू शरणार्थी देश के विभिन्न हिस्सों में शरण लिए हुए हैं. अकेले राजस्थान में ही उनकी संख्या सवा लाख के आसपास है. वो अपने देश नहीं लौटना चाहते..
साल 1941 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति
उस समय की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान वाले भूभाग पर बंटवारे से पहले 5.9 करोड़ गैर मुस्लिम रहते थे. बंटवारे के दौरान बड़े पैमाने पर हिंदुओं और सिखों का पलायन भारत की ओर हुआ. हिंदुओं की आबादी तब वहां 24 फीसदी के आसपास थी.
पाकिस्तान में अलपसंख्यकों के साथ किस तरह से होती है हिंसा
- हिंसा हर स्तर पर होती है... संपत्ति हड़पने से लेकर घर की महिलाओं के साथ बदसलूकी तक
- हिंदू महिलाओं और लड़कियों के अपहरण की घटनाओं में साल दर साल बढोतरी हुई है
- अपहरण के बाद उनका धर्म बदलकर उनकी शादी मुस्लिम युवकों से करा दी जाती है.
- अल्पसंख्यकों को नौकरियों से लेकर व्यावसायिक क्षेत्र तक में धर्म के नाम पर निशाना बनाया जाता है
- दोयम दर्जे के नागरिकों सरीखा व्यवहार हो रहा है.
- 2012 के बाद से सैकड़ों अल्पसंख्यक हमलों में मारे जा चुके हैं, हजारों लोगों का धर्म बदला जा चुका है..
हिंदू मंदिरों की क्या है अवस्था
- कुल 428 बड़े मंदिरों में 20 ही बेहतर स्थिति में हैं
- 90 के दशक में 1000 छोटे बड़े मंदिरों को निशाना बनाया गया.
तब जिन्ना ने अल्पसंख्यकों से क्या कहा था
पाकिस्तान के जन्म के बाद कायदेआजम जिन्ना ने 17 अगस्त 1947 को भाषण में कहा था कि अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान में भयमुक्त होकर रहने की जरूरत है. उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. आप स्वतंत्र हैं. निडर होकर अपने धर्मस्थलों पर जाइए. आप चाहे किसी भी धर्म, जाति और समुदाय के हों, आप सभी पाकिस्तान राष्ट्र के नागरिक हैं. सभी के लिए यहां कानून और दर्जा एक सरीखा होगा. लेकिन ऐसा पाकिस्तान में कभी नहीं हुआ
जाहिर है, भारत आए इन लोगों ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवहार की कलई खोलकर रख दी है. वो पाकिस्तान जो इतने सालों में हिंदू परिवारों को अपना नहीं पाया वो कश्मीरियों के हक की बात करता अच्छा नहीं लगता है.
पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ हो रहे जुल्म का ही नतीजा है कि पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी खुद को भारत में सुरक्षित पाते है इनका कहना है कि कश्मीर से धारा 370 हटाकर मोदी सरकार ने सभी कश्मीरियों को आजाद कर दिया है. ऐसे में फख्र होता है भारत पर, कि भारत न सिर्फ भारतीय अल्पसंख्यकों का अपना है बल्कि वो पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए भी बाहें फैलाए है. इन शरणार्थियों की आपबीती सुनने के बाद भारत के मुसलमान तो खुद को फख्र से भारतीय कहेंगे लेकिन इन शरणार्थियों को फख्र करने के लिए पाकिस्तान ने शायद कुछ भी नहीं दिया.