बिलकिस बानो का छलका दर्द, बोली-मेरा दुख अकेला मेरा नहीं...मुझे जीने का हक वापस चाहिए
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बिलकिस बानो का छलका दर्द, बोली-मेरा दुख अकेला मेरा नहीं...मुझे जीने का हक वापस चाहिए

2002 के गोधरा कांड के दौरान जिस समय यह वारदात हुई थी, उस समय बिलकिस 20 साल की और गर्भवती थी और जिन लोगों ने उसका घर उजाड़ा, उन्हें वह वर्षों से जानती थी. दोषियों में से एक को वह चाचा और एक अन्य को भाई कहकर बुलाती थी.

बिलकिस बानो का छलका दर्द, बोली-मेरा दुख अकेला मेरा नहीं...मुझे जीने का हक वापस चाहिए

नई दिल्ली : 2002 के गोधरा कांड के दौरान गैंगरेप और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों को उम्रकैद से रिहाई मिलने के बाद बिलकिस बानो टूट गई हैं. गुजरात सरकार ने गैंगरेप के दोषियों को क्षमा नीति के तहत रिहा कर दिया. इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी. इस पर बिलकिस बानो का कहना है कि सरकार के इस कदम से 20 साल पुराने जख्म फिर से हरे हो गए. उन्होंने गुजरात सरकार से फैसले को वापस लेने और बिना किसी डर और शांति से जीने का हक वापस देने की अपील की.

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बिलकिस बानो ने कहा कि 15 अगस्त को उसने सुना कि 20 साल पहले मुझे और मेरे परिवार को बर्बाद करने वाले 11 दोषियों, जिन्होंने मुझसे मेरी 3 साल की बच्ची को छीन लिया, उन्हें रिहा कर दिया गया है. सरकार के इस फैसले से वह स्तब्ध है. बिलकिस ने कहा, मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि किसी भी महिला को मिले न्याय को इस तरह कैसे समाप्त किया जा सकता है?

बिलकिस बानो ने कहा, मैंने अपने देश की सर्वोच्च अदालतों पर भरोसा किया, मैंने सिस्टम पर भरोसा किया और धीरे-धीरे खुद को मिले जख्मों के साथ जीना सीख रही थी, लेकिन दोषियों की रिहाई ने मेरी शांति को छीन लिया है और अब तक न्याय के प्रति मेरे भरोसे को हिलाकर रख दिया है. बिलकिस बानो ने कहा, मेरा दुख और मेरा डगमगाता विश्वास अकेले मेरे लिए नहीं है, बल्कि हर उस महिला के लिए है जो अदालतों में न्याय के लिए संघर्ष कर रही है.

बिलकिस का  कहना है कि इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला लेने से पहले किसी ने उसकी सुरक्षा और कुशलक्षेम के बारे में नहीं पूछा। मैं गुजरात सरकार से अपील करती हूं कि मुझे मेरा अधिकार वापस चाहिए और मेरी और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. 

आखिर उस दिन हुआ क्या था 

जिस समय यह वारदात हुई थी, उस समय बिलकिस 20 साल की और गर्भवती थी और जिन लोगों ने उसका घर उजाड़ा, उन्हें वह वर्षों से जानती थी. दोषियों में से एक को वह चाचा और एक अन्य को भाई कहकर बुलाती थी. अपनी शिकायत में उसने बताया था कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. उसके सामने परिवार के सदस्य मरे गए. उनकी तीन साल की बेटी की भी 3 मार्च 2002 को हत्या कर दी गई. जान से मारने की धमकियां उसे दी गईं. 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दिया.

जनवरी 2008 में मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 20 में से 11 आरोपियों को एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश, हत्या, गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत अन्य मामलों में दोषी ठहराया था.सुनवाई के दौरान एक की मौत हो गई थी, जबकि सबूतों के अभाव में 7 को बरी कर दिया गया था.