Delhi News Arvind Kejriwal: दिल्ली के LG वीके सक्सेना की ओर से केंद्र सरकार को बीते दिन चिट्ठी लिखी गई थी, जिसमें दिल्ली सरकार पर ये आरोप लगाया गया था कि झूठी दलीलों और हलफनामों के जरिये उपराज्यपाल कार्यालय को बदनाम किया जा रहा है. इस मामले के बाद दिल्ली में एक बार फिर से सियासी खिंचतान बढ़ गई है.


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20 मामलों में उपराज्यपाल को बनाया गया पक्ष
आंकड़ों के अनुसार जब से वीके सक्सेना ने पदभार संभाला है, तब से सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में कम से कम 20 ऐसे मामले दायर हुए हैं, जिनमें उपराज्यपाल को एक पक्ष बनाया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अदालतों में कम से कम नौ और उच्च न्यायालय में 11 मामलों में उलझे हुए हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं हैं, जहां दिल्ली सरकार का 'सेवा' विभाग भी एक पक्ष के रूप में शामिल है. चूंकि यह विभाग आम आदमी पार्टी की सरकार के नियंत्रण से बाहर है, इसलिए ये ऐसे मामले हैं, जहां उपराज्यपाल का कार्यालय अप्रत्यक्ष रूप से एक पक्ष है और राजधानी में प्रशासनिक और शासन के मुद्दों से संबंधित है. लगभग हर दिन प्रतिवादियों को नोटिस भेजे जाते हैं, जबकि निर्वाचित सरकार की विभिन्न शाखाओं या उपराज्यपाल कार्यालय द्वारा दो अदालतों के समक्ष मामलों में हलफनामे और जवाबी हलफनामे दायर किए जा रहे हैं, जहां मामलों की नियमित आधार पर सुनवाई हो रही है.


दिल्ली जल बोर्ड को धन जारी न करने का मामला
उदाहरण के लिए, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने आप सरकार की एक याचिका पर दिल्ली जल बोर्ड को नोटिस जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शहर में पीने योग्य पानी की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार निकाय को धन जारी नहीं किया गया है. अदालत ने डीजेबी को उस याचिका में भी पक्षकार बनाया जहां मामले का शीर्षक "जीएनसीटीडी बनाम एलजी" है. सक्सेना ने गृह मंत्रालय को भेजे अपने पत्र में इस मामले को राज्य सरकार की प्रेरित याचिकाओं के उदाहरण के रूप में बताया. इसके साथ ही जिन अन्य प्रमुख मुद्दों पर निर्वाचित सरकार ने अदालतों का रुख किया है, उनमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले साल मई में निर्वाचित सरकार को भूमि, पुलिस और कानून और व्यवस्था से संबंधित सेवाओं के मामलों पर कार्यकारी नियंत्रण सौंपने के बाद एनसीटी दिल्ली सरकार अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन के लिए एक अध्यादेश जारी करना शामिल है.


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याचिका दायर करने के लिए फटकार
एक अन्य मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) को एक प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर एलजी के खिलाफ याचिका दायर करने के लिए "फटकार" दी, जो उनके कार्यालय द्वारा कभी जारी नहीं की गई थी. डीसीपीसीआर को अंततः एलजी के खिलाफ अपनी याचिका वापस लेनी पड़ी.


बकाया राशि पर ये बात
हालांकि, जूरी अभी भी इस बात पर बाहर है कि क्या एलजी के कार्यालय के खिलाफ दिल्ली सरकार या अन्य संस्थाओं द्वारा दायर सभी मामलें "अदालतों को गुमराह करने" या निर्वाचित व्यवस्था की वास्तविक शिकायत हैं, जिसने लगातार अदालत से शिकायत की है कि नौकरशाह मंत्रियों की बात नहीं सुनते हैं. राज्य सरकार को अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो उच्च न्यायालय ने कई सरकारी विभागों की तरफ से अनुबंध पर नियुक्त फेलो की बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका पर एलजी के कार्यालय से जवाब मांगा है. अदालत ने हाल ही में बर्खास्तगी पर अपनी रोक हटा ली थी.