Haryana News: हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले अपना आंदोलन जारी रखते हुए किसान समूहों ने एक बार फिर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रति अपना विरोध जताया है, जबकि किसान समूह इन मुद्दों व लंबित मांगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सिलसिलेवार तरीके से महापंचायत आयोजित करने की योजना बना रहे हैं.


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किसान आंदोलन का 'हब' था हरियाणा
हरियाणा 2020-21 में रद्द हो चुके कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शनों का एक प्रमुख केंद्र था. यह आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आयोजित किया गया था. बाद में समूह में विभाजन हो गया और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) का गठन किया गया. एसकेएम (गैर राजनीतिक), किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के साथ मिलकर पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमा पर जारी विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है. ये दोनों ही समूह सत्तारूढ़ भाजपा के विरोधी हैं और उनकी मांगें एक जैसी हैं. एसकेएम (गैर राजनीतिक) के किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि किसानों के विरोध प्रदर्शन का असर हाल के लोकसभा चुनाव में भी दिखाई दिया था और जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उनसे ग्रामीण इलाकों के लोगों को यह एहसास हुआ है कि उन्हें अपने मुद्दों के आधार पर वोट देना चाहिए. कोहाड़ ने फोन पर 'पीटीआई-भाषा' से कहा, "लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को ग्रामीण इलाकों में हार का सामना करना पड़ा.  2020-21 के विरोध प्रदर्शनों और 13 फरवरी, 2024 को शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने जागरूकता बढ़ाई है.  किसान और मजदूर उन मुद्दों पर मतदान कर रहे हैं जो उन्हें प्रभावित करते हैं."


MSP है प्रमुख कारक
उन्होंने कहा, "न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना जैसे मुद्दे ग्रामीण हरियाणा में प्रमुख कारक हैं." कोहाड़ ने यह भी कहा कि अग्निवीर योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) के फंड में कटौती जैसे मुद्दे भी राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुख हैं। शंभू और खनौरी बॉर्डर पर धरना जारी रहने के बीच कोहाड़ ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर किए गए "अत्याचार" को भुलाया नहीं गया है. उन्होंने कहा, "किसानों पर की गई हिंसा और अत्याचार लोगों के जेहन में ताजा हैं. वो इस चुनाव में भाजपा को सबक सिखाएंगे." एसकेएम-गैर राजनीतिक 15 सितंबर को जींद के उचाना मंडी में एक महापंचायत भी करेगा, जबकि 22 सितंबर को कुरुक्षेत्र के पीपली में एक महापंचायत होगी.


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किसानों के मुद्दे रहेंगे हावी
संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल अखिल भारतीय किसान सभा, हरियाणा के सचिव सुमित सिंह ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आगामी चुनाव में किसानों के मुद्दे हावी रहेंगे. सिंह ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, "हम इस विधानसभा चुनाव में किसानों के विरोध प्रदर्शनों का असर देखेंगे. यह लोकसभा चुनाव में भी देखा गया था." हालिया लोकसभा चुनाव में, भाजपा और कांग्रेस ने पांच-पांच सीट जीती थीं, जबकि 2019 के चुनाव में सभी 10 सीट पर भाजपा को जीत मिली थी. भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रमुख और संयुक्त संघर्ष पार्टी के संस्थापक किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी कहा कि लोग भाजपा के खिलाफ हैं, लेकिन उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ वोट बंट सकते हैं. चढ़ूनी ने कहा, "कांग्रेस की गलती की वजह से ऐसा हो सकता है. उसे हमारे साथ गठबंधन करना चाहिए था." उन्होंने कहा, "हमने एक राजनीतिक पार्टी बनाई है और हम किसानों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारी मांगों को स्वीकार करवाने के लिए सरकार में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी महत्वपूर्ण है." हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए एक अक्टूबर को मतदान होगा और परिणाम चार अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.