Karnal News: हरियाणा के करनाल में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में पशुओं को गर्मी से दूर रखने के लिए एक अनोखा प्रयोग किया जा रहा है. दुधारू पशुओं को रोजाना बांसुरी अथवा अन्य मधुर संगीत की धुन सुनाई जाती है.
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Karnal News: करनाल भीषण गर्मी के पशुओं को तनाव मुक्त रखने के लिए करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में संगीत थेरेपी का अनूठा प्रयोग किया. जलवायु परिवर्तन पर नए प्रयोग से संस्थान में दुधारू पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर हुआ. करनाल भीषण गर्मी के पशुओं को तनाव मुक्त रखने के लिए करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में संगीत थेरेपी का अनूठा प्रयोग किया. संस्थान के वैज्ञानिकों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर नए प्रयोग से संस्थान में दुधारू पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर हुआ. वहीं अधिक चारा खाने से पशुओं के दूध देने में भी बढ़ौतरी हुई है.
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इसलिए कहते है कि भगवान कृष्ण की बंसी की धुन सुनकर गायें दौड़ी चली आती थी. यह कहावत अब वैज्ञानिक दृष्टि से भी सत्य साबित हो रही है. दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन से दुधारू पशुओं को तनाव रहित रखने के लिए पारंपरिक तरीकों पर शोध किया है. ऐसा ही अनूठा शोध करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में किया जा रहा हैं, जिसमें दुधारू पशुओं को रोजाना बांसुरी अथवा अन्य मधुर संगीत की धुन सुनाई जाती है. अब बात ये है कि संगीत सुनने वाले पशुओं का न केवल स्वास्थ्य बेहतर रहता है अपितु उन का दूध उत्पादन भी बढ़ा है.
इस बारे में संस्थान के वरिष्ठ पशु वैज्ञानिक डॉ आशुतोष ने कहा की काफी समय पहले सुना था कि गायों को संगीत एवं भजन काफी पसंद होते हैं. हमने जब यह विधि अपनाई तो उसका परिणाम काफी अच्छा निकला है. एक शोध के अनुसार विदेशी गायों के मुकाबले देसी गायों में मातृत्व की भावना अधिक होती है. उन्होंने कहा कि संगीत की तरंगें गाय के मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन हार्मोंस को सक्रिय करती है और गाय को दूध देने के लिए प्रेरित करती हैं.
गौरतलब है कि वर्ष 1955 में स्थापना के बाद से एनडीआरआई में पशुओ पर काफी शोध किए जा रहे हैं. एनडीआरआई में स्थित जलवायु प्रतिरोधी पशुधन अनुसंधान केंद्र में जहां वैज्ञानिक लगातार पशुओं पर प्रयोग कर रहे हैं कि जिस तरह से वातावरण में बदलाव हो रहा है. उससे पशुधन पर क्या प्रभाव पड़ेगा उस पर लगातार कृषि वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. देसी गायों की नस्लों पर अलग-अलग प्रकार के प्रयोग कर रहे हैं, जिससे दूध की उत्पादकता को बढ़ाया जा सके.
डॉ. आशुतोष ने कहा कि जिस तरह से हम पशु को एक ही जगह पर बांध कर रखते हैं तो वह तनाव में आ जाता है और ठीक तरह से व्यवहार नहीं करता. उसी को लेकर हमारे यहां पर एक रिसर्च चल रही है, जिसमें पशु अपने आपको रिलैक्स फील करता है. हम यहां पर पशुओं को उस तरह का वातावरण दे रहे है, जिसमें पशु के ऊपर कोई भी दबाव न हो. उनको तनाव मुक्त रखने हेतु संगीत और भजन का सहारा लिया जा रहा है, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं.