क्या है सूक्ष्म सिंचाई योजना, कैसे हरियाणा के किसानों के लिए वरदान साबित होगी?
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क्या है सूक्ष्म सिंचाई योजना, कैसे हरियाणा के किसानों के लिए वरदान साबित होगी?

हरियाणा सरकार आज 100 फुट से ज्यादा गहरे भूमिगत जल वाले गांवों में "सूक्ष्म सिंचाई" की 7500 प्रदर्शन परियोजना का शुभारंभ करने जा रही है. तो चलिए जानते हैं कि क्या है सूक्ष्म सिंचाई योजना, कैसे हरियाणा के किसानों के लिए वरदान साबित होने वाली है. 

क्या है सूक्ष्म सिंचाई योजना, कैसे हरियाणा के किसानों के लिए वरदान साबित होगी?

चंडीगढ़ः 28 जून यानी की आज हरियाणा में 100 फुट से ज्यादा गहरे भूमिगत जल वाले गांवों में "सूक्ष्म सिंचाई" की 7500 प्रदर्शन परियोजना का शुभारंभ कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. बता दें कि पंचकूला के लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हिस्सा लेंगे. यह कार्यक्रम आज 11 बजे शुरू होगा.

सरकार का मकसद, हर खेत तक पहुंचे पानी

इसी के साथ प्रदर्शनी कार्यक्रम के जरिए किसानों को सूक्ष्म सिंचाई के लाभ के बारे में जानकारी दी जाएगी. इसी के साथ सिंचाई की परंपरागत विधि के कारण भूमिगत जल के स्तर पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर भी जागरूकता फैलाई जाएगी. हरियाणा के हर एक खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए हरियाणा सरकार ने नई माइक्रो इरीगेशन (micro irrigation) योजना की शुरूआत की गई है.

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इस योजना के तहत पहले चरण में चार जिलों भिवानी, दादरी, महेंद्रगढ़ और फतेहाबाद के नाम को शामिल किया गया है. इतना ही नहीं नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक) ने इस योजना पर सब्सिडी देने का भी ऐलान किया था. बता दें कि इस योजना के तहत 25 एकड़ या फिर इससे अधिक जमीन का कलस्टर बनाने वाले किसानों को सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के जरिए पानी मुहैया करवाया जाएगा.

हरियाणा में गहराया जल संकट

रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में भू-जल स्तर रिकॉर्ड 81 मीटर (265.748) से भी अधिक नीचा चला गया है और पिछले एक दशक में यह संकट लगभग दो गुना बढ़ा है. माना जाता है कि हरियाणा में ऐसे हालात दोहन से पैदा हुए हैं. सबसे ज्यादा पानी का दोहन यहां कृषि क्षेत्र में हुआ है. क्योंकि यह प्रदेश टॉप टेन धान उत्पादकों में शामिल है, धान सबसे अधिक पानी की खपत करने वाली फसलों में शामिल है.  

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मेरा पानी-मेरी विरासत से बचेगी हरियाणा की खेती

हरियाणा में लगातार गहराता जा रहा पानी के संकट को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री ने कहा था कि प्रदेश में जल संरक्षण के उद्देश्य से चलाई जा रही है. लेकिन, अब मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के तहत किसानों को प्रति एकड़ 7 हजार रुपये का प्रोत्साहन दिया जा रहा है. जिसके तहत एक साल के दौरान धान के रकबे में 80 हजार एकड़ की कमी आई है. उन्होंने आगे कहा कि हमें फसल बोने से 3 महीने पहले बताया होगा कि इस बार किस फसल का कितना लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

क्या है सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली?

आपको बता दें कि सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली (micro irrigation system) सामान्य रूप से बागवानी फसलों में उर्वरक व पानी देने की सर्वोत्तम और आधुनिक विधि मानी जाती है. इस प्रणाली के तहत कम पानी में अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है. इस प्रणाली में पानी को पाइपलाइन से स्त्रोत से खेत तक पूर्व-निर्धारित मात्रा में आसानी से पहुंचाया जा सकता है. इसके इस्तेमाल से पानी की कम बर्बादी होती है. इस के तहत 30-40 फीसदी पानी की बचत होती है.

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इतना ही नहीं सरकार "प्रति बूंद अधिक फसल" के मिशन के अंतर्गत फव्वारा (Sprinkler) व टपक (Drop) सिंचाई को बढ़ावा दे रही है. यह तो आप सभी जानते हैं कि भारत में खेतों में सिंचाई के लिए कच्ची नालियों द्वारा पानी पहुंचाया जाता है जिसकी वजह से 30-40 फीसदी पानी बर्बाद होता है. ऐसे में सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करने में फायदा ही है.

जानें, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की 2 प्रमुख विधियां

बता दें कि सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली एक उन्नत पद्धति है, जिसके प्रयोग से सिंचाई के दौरान पानी की काफी बचत होती है. सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की दो प्रमुख विधि- फव्वारा सिंचाई व टपक सिंचाई अधिक प्रचलित हैं.

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फव्वारा विधि के लाभ

- इस विधि में सतही सिंचाई विधियों की तुलना में जल प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है.

- फसल उत्पादन के लिये अधिक क्षेत्र उपलब्ध होता है क्योंकि इस विधि में नालियां बनाने की आवश्यकता नहीं होती.

- पानी का लगभग 80-90 प्रतिशत भाग पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है, जबकि पारंपरिक विधि में लगभग 30-40 फीसदी पानी ही इस्तेमाल हो पाता है.

- इसमें जमीन को समतल करने की जरूरत नहीं पड़ती. ऊंची-नीची और ढलान वाले स्थानों में आसानी से सिंचाई की जा सकती है.

- फसलों में कीटों व बीमारियों का खतरा कम हो जाता है, क्योंकि इसमें स्प्रिंकलर्स द्वारा कीटनाशकों का छिड़काव बेहतर ढंग से किया जा सकता है.

- इस प्रणाली में फसलों में घुलनशील उर्वरकों का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है.

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टपक विधि के लाभ

-इस प्रणाली के तहत सिंचाई करने पर परंपरागत विधि की तुलना में लगभग आधा पानी खर्च होता है, क्योंकि पानी सतह पर बहकर मृदा में जड़ क्षेत्र से नीचे नहीं बहता.

-इस प्रणाली के तहत खेत में खरपतवार कम होते हैं, इसलिये श्रम की आवश्यकता भी कम हो जाती है.

-सिंचाई करने के कारण जड़ क्षेत्र में अधिक नमी रहती है जिससे लवणों की सांद्रता अपेक्षाकृत कम रहती है.

-यह प्रणाली सभी तरह की मृदाओं के लिये उपयोगी है, क्योंकि पानी को मृदा के प्रकार के अनुसार नियोजित किया जा सकता है.

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राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन

आपको बता दें कि सूक्ष्म सिंचाई का राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Micro Irrigation-NMMI) जून 2010 में शुरू किया गया था. इसके तहत NMMI पानी के इस्तेमाल से बेहतर दक्षता, फसल की उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (nfsm), तिलहनों, दालों एवं मक्का की एकीकृत योजना, कपास पर प्रौद्योगिकी मिशन आदि जैसे बड़े सरकारी कार्यक्रमों के अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई गतिविधियों के समावेश को बढावा देगा. इस प्रणाली के तहत दिए गए दिशा-निर्देश पानी के उपयोग की दक्षता में वृद्धि के साथ-साथ फसलों की उत्पादकता में वृद्धि देगा. इसी के साथ पानी के खारेपन व जलभराव जैसे मुद्दों का का भी हल करेंगा.

"सूक्ष्म सिंचाई" परियोजना का हुआ आगाज 

हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आज पंचकुला में ड्रीप इरिगेशन सिस्टम का उद्घाटन करते हुए कहा कि हमें प्रदेश की सिंचाई व्यवस्था के लिए सतलुज और व्यास नदी के पानी का इंतजार किए बगैर इस अत्याधुनिक सूक्ष्म सिंचाई के तकनीक को अपनाकर सिंचाई के साधनों को अपने हित में साधकर कृषि को उन्नत बनाने की आवश्यकता है. ड्रीप सिस्टम जैसे लघु और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से हमारी सिंचाई व्यवस्था बेहतरीन हो सकती है.

इस मौके पर मुख्यमंत्री ने सतलुज व्यास के पानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा प्रदेश के हक में आने के बावजूद हरियाणा को राजनीतिक कारणों से सतलुज व्यास का पानी नहीं मिल पा रहा है. देर सवेर वह पानी प्रदेश को मिलेगा ही. परंतु इस ड्रीप इरिगेशन तकनीक से हम प्रदेश के कृषि व अन्य सिंचाई के क्षेत्र की अच्छी तरह से भरपाई कर सकते हैं. प्रदेशभर में इस तरह के नए तकनीक को 7500 स्थानों में फैलाया गया है ताकि सिंचाई व्यवस्था को समय रहते उपयोगी कायम किया जा सके.

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