एम्स के नेत्र रोग विभाग के मुताबिक स्कूली बच्चों में भी मोबाइल की स्क्रीन से चिपके रहने से रोशनी धीरे-धीरे कम हो रही है. 2015 में किए गए एम्स की रिसर्च में 10 प्रतिशत स्कूली बच्चों में मायोपिया (Myopia) की बीमारी देखी गई थी. इस बीमारी में पास की चीजें तो ठीक दिखती हैं, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं.
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नई दिल्ली : घर में माता-पिता या अभिभावक अक्सर बच्चों को टोकते हैं कि टीवी पास से मत देखो. नजर कमजोर हो जाएगी. दरअसल इस सलाह या डांट के पीछे भी एक वैज्ञानिक आधार है. दरअसल अगर आप देर तक पास की चीजों जैसे मोबाइल, किताब या टीवी स्क्रीन पर फोकस करते रहते हैं तो दूर की नजर धुंधली होने लगती है.
इसकी असली वजह आंखों की दूर तक फोकस करने की आदत कम हो जाना है. अगर आपको पता चले आप जिस मोबाइल में अपने दिन का अधिकांश वक्त बिताते है, वो मोबाइल धीरे-धीरे आपकी आंखों की रोशनी छीन रहा है या किसी दिन मोबाइल देखते-देखते अचानक दिखना बंद हो जाए तो आप क्या करेंगे.
हो सकता है कि आप ये बहाना बनाएं कि मोबाइल काम की वजह से जरूरी हो चुका है तो एक मोबाइल बनाने वाली कंपनी का सर्वे इसकी पोल खोलने के लिए काफी है. वीवो कंपनी के इस सर्वे के मुताबिक 76 प्रतिशत लोग मोबाइल का इस्तेमाल फोटो और वीडियो देखने के लिए, 72 प्रतिशत लोग पुराने दोस्तों से कनेक्ट करने के लिए, 68 प्रतिशत लोग खबर देखने के लिए और 66 प्रतिशत लोग मनोरंजन के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं.
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मोबाइल आपकी आंखों को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, उसका अंदाजा AIIMS की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. एम्स के नेत्र रोग विभाग के मुताबिक स्कूली बच्चों में भी मोबाइल की स्क्रीन से चिपके रहने से रोशनी धीरे-धीरे कम हो रही है. 2015 में किए गए एम्स की रिसर्च में 10 प्रतिशत स्कूली बच्चों में मायोपिया (Myopia) की बीमारी देखी गई थी, लेकिन 2050 तक देश के 40 प्रतिशत बच्चे मायोपिया की बीमारी के शिकार हो चुके होंगे. इस बीमारी में पास की चीजें तो ठीक दिखती हैं, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं.
45 वर्ष से ज्यादा उम्र के 34% लोगों की आंखों की रोशनी कमजोर
मोबाइल की वजह से देश का भविष्य अंधकार की ओर बढ़ रहा है. यह समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम में ये सलाह दे चुके है कि बच्चे स्क्रीन टाइम में कटौती करें. एम्स में राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. जे एस तितियाल का कहना है कि भारत में 45 वर्ष से ज्यादा उम्र के 34% लोगों की आंखों की रोशनी कमजोर है. मोबाइल, लैपटॉप या टैब की स्क्रीन से चिपके भारत को ये सलाह देना बेकार है कि वो स्क्रीन का इस्तेमाल न करे, लेकिन जितनी बड़ी स्क्रीन होगी, परेशानी उतनी ही कम होगी.
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इस सिंड्रोम के हो सकते हैं शिकार
आपमें से अधिकांश को सोने से पहले WhatsApp, Instagram या Facebook post वगैरह वगैरह चेक करने की आदत होती है. हद तो तब हो जाती है, जब आप कमरे की लाइट्स ऑफ कर नजर मोबाइल स्क्रीन पर गढ़ा देते हैं. लंबे समय तक ऐसी आदत आपकी आंखों को बहुत नुकसान पहुंचाती है. ऐसा भी हो सकता है कि एक दिन आपको अचानक दिखना बंद हो जाए. ऐसा सच में हुआ भी है. हैदराबाद की एक 30 साल की महिला का ये रोज का रुटीन था और अचानक एक रात उसे कुछ भी दिखना बंद हो गया. डॉक्टरों ने उसकी परेशानी को Computer Vision Syndrome का नाम दिया. घंटों तक स्क्रीन देखने से होने वाली बीमारियों की लिस्ट बहुत लंबी है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित हमारी आंखें होती हैं.
ब्लैकबोर्ड पर लिखा नहीं देख पा रहे बच्चे
शार्प साइट आई हॉस्पिटल्स के निदेशक डॉ. समीर सूद के मुताबिक कोरोना के बाद स्कूल पहुंचे कई बच्चे ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ नहीं देख पा रहे हैं. स्कूल से शिकायत आने के बाद बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर होने के बारे में पता चल रहा है. मायोपिया की बीमारी का ये एक बड़ा संकेत है. मायोपिया की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि धीरे धीरे रोशनी कम होती जाती है और लंबे वक्त के बाद ब्लाइंडनेस यानी अंधे होने का खतरा भी रहता है. हालांकि अब बाजार में ऐसे स्मार्ट लैंस आए हैं जो 5 से 16 साल के बच्चों में नजर कमजोर होने की रफ्तार को थोड़ा धीमा कर सकते हैं, लेकिन ये चश्मे 50– 60 हजार की कीमत में आते हैं, जो महंगा होने की वजह से सामान्य लोगों की पहुंच से काफी दूर हैं.
20-20-20 फॉर्मूला हो सकता है कारगर
डॉक्टरों की सलाह है कि दूर की चीजों पर बीच-बीच में फोकस करते रहें। ज्यादा देर तक स्क्रीन का इस्तेमाल करने वालों के लिए 20-20-20 वाला फॉर्मूला कारगर साबित हो सकता है. इसका मतलब यह है कि 20 मिनट तक स्क्रीन देखने के बाद 20 सेकेंड का ब्रेक लीजिए और 20 फीट दूर देखिए.
आंखों की रोशनी बरकरार रखने के उपाय
डॉक्टरों के मुताबिक पहले पलकें एक मिनट में 15 से 16 बार झपकती थीं, लेकिन स्क्रीन में खोए रहने की वजह से पलकें झपकना ही भूल गई हैं और अब एक मिनट में केवल 6 से 7 बार ही पलकें झपकती हैं. इस पर ध्यान दीजिए और पलकें झपकाते रहिए. स्क्रीन टाइम कितना होना चाहिए, इसका कोई फॉर्मूला तो नहीं है, लेकिन एम्स के नेत्र रोग विभाग के मुताबिक पूरे दिन में 2 घंटे से ज्यादा मोबाइल की स्क्रीन से न चिपकें और हर 20 मिनट में एक ब्रेक जरूर लें.