DNA: दिल्ली के प्रदूषण में कोई अंतर नहीं! हवा जहरीली होने की असली सच्चाई सबके सामने है
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DNA: दिल्ली के प्रदूषण में कोई अंतर नहीं! हवा जहरीली होने की असली सच्चाई सबके सामने है

Pollution In NCR: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और पंजाब की राज्य सरकार से पूछा है कि वो प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, पंजाब और यूपी को फटकारते हुए कहा कि बीते 6 वर्षों में सबसे प्रदूषित नवंबर रहा है। 

DNA: दिल्ली के प्रदूषण में कोई अंतर नहीं! हवा जहरीली होने की असली सच्चाई सबके सामने है

Delhi Pollution: दीपावली को बीते 10 दिन हो चुके हैं, लेकिन दिल्ली के प्रदूषण में कोई अंतर नहीं है। अब ऐसा तो नहीं है कि पटाखों का धुआं, दिल्ली में ही अटक गया है। हम भले ही प्रदूषण को लेकर पटाखों को दोष दें, लेकिन सच्चाई यही है कि दिल्ली के प्रदूषण के जो हालात हैं, उसके लिए पराली का जलना, वाहनो और फैक्ट्रियों से निकला धुआं सबसे बड़े कारण हैं। आज दिल्ली का औसत Air Quality Index 362 के आसपास बना हुआ है। यानी दिल्ली की हवा आज भी बहुत खराब की श्रेणी में है, जिसका मतलब है दिल्ली में सांस लेना सेहत के लिए खतरनाक है।

सुप्रीम कोर्ट ने फिर दिखाई सख्ती
दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने काफी सख्ती दिखाई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा,राजस्थान,यूपी और दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। खासतौर से प्रदूषण पर नियंत्रण के प्रयासों को लेकर इन राज्यों से जवाब तलब किया गया था। इन सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा को पराली जलाने को लेकर सख्ती बरतने के लिए कहा था। पहली सुनवाई 31 अक्टूबर को हुई थी जिसमें कोर्ट ने इन राज्यों से प्रदूषण को लेकर क्या कार्रवाई की गई है, उसके बारे में पूछा। फिर इसके बाद 7 नवंबर को जो सुनवाई हुई उसमें पंजाब हरियाणा को पराली जलने से रोकने के लिए कहा गया। 10 नवंबर को जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की क्लास लगाई थी,कोर्ट ने पूछा था कि पिछले 6 वर्षों से वो प्रदूषण को लेकर क्या कर रहे थे। हालांकि बारिश ने दिल्ली के लोगों राहत दे दी थी। लेकिन अब एक बार फिर हालात खराब हैं। कल हुए सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से दिल्ली और पंजाब की राज्य सरकार को फटकार लगाई है।

'किसानों को विलेन नहीं बनाया जा सकता'
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और पंजाब की राज्य सरकार से पूछा है कि वो प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, पंजाब और यूपी को फटकारते हुए कहा कि बीते 6 वर्षों में सबसे प्रदूषित नवंबर रहा है। राज्यों ने प्रदूषण के कारणों में पराली को बड़ी वजह बताया था, तो उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट भी बहुत सख्त था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का रुख किसानों पर नरम था। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि प्रदूषण को लेकर किसानों को विलेन नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से पराली को लेकर किसानों को आर्थिक मदद देने की सलाह दी।

पराली को लेकर स्टेटस रिपोर्ट
यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से पराली के निस्तारण को लेकर हरियाणा सरकार से सीख लेने की सलाह दी। अब सवाल ये है कि हरियाणा ऐसा क्या कर रहा है, जिससे सीख लेने की सलाह, सुप्रीम कोर्ट पंजाब को दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की पराली को लेकर एक स्टेटस रिपोर्ट दी गई थी। इसमें हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं और इन दोनों राज्यों में पराली जलने को रोकने को लेकर उठाए गए कदमों के बारे में बताया गया था। इसमें मुख्यतौर पर दो बातें बताई गईं। पहला ये कि 2022 के मुकाबले 2023 में पराली जलने की घटनाओं में कमी आई है। दूसरी ये कि हरियाणा में पराली जलने से रोकने के लिए कई तरह के कदम उठाए गए हैं।

तो हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने को लेकर क्या स्थिति है, और राज्य इनको लेकर क्या कदम उठा रहा है, ये अब हम आपको बताने जा रहे हैं। केंद्र की Status Report में इस बात का जिक्र है कि पंजाब में 2022 के मुकाबले इस साल अभी तक पराली जलने की घटनाओं में 32 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि हरियाणा में पराली जलने की घटनाओं में उन्तालिस प्रतिशत की गिरावट आई है। Status Report में जो आंकड़े दिए गए हैं। वो हर वर्ष 15 सितंबर से 16 नवंबर के बीच के हैं।

15 सितंबर से 16 नवंबर के बीच इस साल पंजाब में पराली जलने की 31 हजार 932 घटनाएं हुई हैं, जबकि हरियाणा में 1 हजार 986 घटनाएं हुई हैं। जबकि वहीं वर्ष 2022 में 15 सितंबर से 16 नवंबर के बीच पंजाब में पराली जलने की 46 हजार 822 घटनाएं हुई थीं, जबकि हरियाणा में 3 हजार 233 घटनाएं हुई थीं. देखा जाए तो पराली जलाने के मामले में पंजाब, हरियाणा से कहीं आगे था। इसके अलावा Status Report में बताया गया कि हरियाणा में पराली के निस्तारण के लिए IN C2 और X C-2 Management Policy चलाई जा रही है। यही नहीं जिन पंचायतों में पराली जलाने की घटनाएं नहीं होती हैं, उनको ईनाम भी दिया जा रहा है। पंजाब में भी कुछ इसी तरह के ईनाम, किसानों को दिए जाते हैं। यानी हरियाणा सरकार का दावा है कि उनका पराली मैनेजमेंट बहुत शानदार है और किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए वो महत्वपूर्ण और कारगर कदम उठा रहे हैं। तो हमने इसे लेकर अपनी एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है, जो हरियाणा में पराली को लेकर ग्राउंड जीरो के हालात बता रही है।

पराली जलाने के मामले में अगर हरियाणा पंजाब के लिए उदाहरण है...तो ये क्या है? सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए कागज अगर सरकार का सच है
तो फिर हरियाणा के सोनीपत या अंबाला के अलावा अन्य जगहों पर जल रही पराली. यहां की जमीनी सच्चाई है। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब सरकारों को अपने यहां, पराली जलने से रोकने का टास्क दिया था। यही नहीं उन्होंने इस टास्क को कितना पूरा किया, इसकी रिपोर्ट भी मांगी थी। रिपोर्ट में अच्छी अच्छी बातें कहीं गईं। लेकिन भारत सरकार के Indian Agriculture Research Institute की ओर से जारी किए आंकड़ों के मुताबिक 8 नवंबर से 12 नवंबर तक यानी 5 दिनों में पंजाब में पराली जलाने की 3 हजार 739 घटनाएं सैटलाइट में कैद हुई हैं। वहीं हरियाणा में 198 और उत्तरप्रदेश में पराली जलाने की 377 घटनाएं सामने आई हैं।

यानी सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद कागजों पर तो खूब कार्रवाई हुई है, लेकिन जमीन हकीकत उससे लग है। सुप्रीम कोर्ट ने पराली के मामले में किसानों को विलेना ना बनाने के लिए कहा, दरअसल इसका इलाज किसानों से ज्यादा सरकार के पास होना चाहिए। पराली के मामले में किसानों की मजबूरी कोई नहीं समझता। महंगी मशीनें, बायो डीकम्पोज़र लाने की बातें सलाह के तौर पर दी जाती हैं, लेकिन इसका खर्च कौन उठाएगा, इसका जवाब कोई नहीं देता।

पराली जलने से रोकना है तो सरकार को खुद आगे आकर, किसानों से पराली लेनी होगी। घर-घर जाकर अगर कूड़ा लिया जा सकता है तो फिर पराली का पर्मानेंट इलाज क्या इस उपाय से नहीं हो सकता? सोनीपत के किसान खुशीराम ने पिछले साल उदाहरण दिया। उनके मुताबिक पिछले साल सरकार पराली खरीद रही थी, इसलिए कम जली थी।

हरियाणा सरकार किसानों को पराली काटने वाली मशीन खरीदने पर 80 फीसदी सब्सिडी देती है.. लेकिन इस मशीन को अपने खेत में पराली काटने के लिए चला रहे अशोक चौहान की माने तो मशीन सब्सिडी के बाद काफी महंगी है और छोटे किसानों की पहुंच से बाहर है। ऐसे में पराली जलाना ही किसान के पास एकमात्र विकल्प रह जाता है। मशीन से कटे धान पर तो ये पराली वाली मशीन ठीक से काम भी नहीं करती>

किसानों की तरह ही पर्यावरण विशेषज्ञों की माने तो पराली संकट के लिए किसानों से ज्यादा जिम्मेदार राज्य सरकारें हैं। और पराली संकट को रोकने के लिए सरकारों को ही ऐसे उपाय बनाने होंगे, जिससे खुद किसान पराली जलाना छोड़ दें।

पराली जलना, प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। हालांकि ये इकलौता कारण नहीं है। यहां ये भी समझना होगा कि पराली जलाना, किसानों का शौक नहीं है। उन्हें भी पराली के धुएं से समस्या है। लेकिन वो ये भी जानते हैं कि पहले फसलों की कीमत कम, उसपर भी पराली के लिए महंगी मशीनों खरीदने का बोझ उठाने से बेहतर है, जलाना। तो इस समस्या हल राज्य सरकारों के पास ही है। पराली की समस्या, राज्य की समस्या है...और राज्य सरकार को भी इससे निपटने के प्रयास करने होंगे

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