उत्तर प्रदेश में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में फेल होने वाले छात्रों की संख्या को जोड़ ली जाए तो ये आंकड़ा 7 लाख 97 हजार से ज्यादा हो जाता है.
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नई दिल्ली: क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि भारत के जिस राज्य में हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है, उस राज्य में हिंदी विषय की परीक्षा में 8 लाख छात्र फेल हो गए हैं. कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम आए थे. जब हमने इन परिणामों का विश्लेषण किया तो हमें पता चला कि उत्तर प्रदेश में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं देने वाले 8 लाख छात्र अपनी मातृभाषा हिंदी में पास नहीं हो पाए.
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् की 10वीं कक्षा के हिंदी विषय की परीक्षा 28 लाख 75 हजार छात्रों ने दी थी और इनमें से करीब 5 लाख 27 हजार से ज्यादा छात्र इसमें फेल हो गए. यानी करीब 15 प्रतिशत छात्र फेल हो गए. इसी तरह 12वीं की बोर्ड परीक्षा में हिंदी विषय की परीक्षा 23 लाख 72 हजार छात्रों ने हिंदी की परीक्षा दी और करीब 2 लाख 70 हजार छात्र इसमें फेल हो गए. यानी करीब 10 प्रतिशत छात्र फेल हो गए.
उत्तर प्रदेश में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में फेल होने वाले छात्रों की संख्या को जोड़ ली जाए तो ये आंकड़ा 7 लाख 97 हजार से ज्यादा हो जाता है.
अगर रजिस्ट्रेशन के बावजूद हिंदी की परीक्षा ना देने वाले छात्रों की संख्या भी इसमें जोड़ ली जाए, तो ये संख्या साढ़े 10 लाख से ज्यादा हो जाती है. एक चौंकाने वाला आंकडा ये भी है कि उत्तर प्रदेश की 12वीं की बोर्ड परीक्षा में इस साल अंग्रेजी विषय में फेल होने वाले छात्रों की संख्या 5 लाख 2 हजार है, जबकि हिंदी में फेल होने वालों की संख्या 5 लाख 27 हजार है. यानी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी में फेल होने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है. पिछले साल का आंकड़ा भी कुछ ऐसा ही था.
हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी की दुर्गति
उत्तर प्रदेश की जनसंख्या करीब 21 करोड़ है और इनमें से 91 प्रतिशत यानी करीब 19 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है. लेकिन फिर भी उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में हिंदी की परीक्षा में छात्रों का फेल होना ये संकेत देता है कि हमारे देश में जो राज्य हिंदी का चिराग कहलाता है उसी चिराग के नीचे हिंदी की दुर्गति वाला अंधेरा है.
उत्तर प्रदेश में हिंदी की परीक्षा में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के फेल होने को लेकर जब हमने जांच की तो हमें पता चला कि जो छात्र फेल हुए हैं उनमें से ज्यादातर को हिंदी के सरल शब्द भी लिखने नहीं आते थे.
नाम ना बताने की शर्त पर कॉपियों की जांच करने वाले कुछ शिक्षकों ने बताया कि कई छात्र आत्मविश्वास जैसे शब्द भी नहीं लिख पाए और इसकी जगह उन्होंने अंग्रेजी के कॉन्फिडेंस शब्द का इस्तेमाल किया और वो भी गलत स्पेलिंग के साथ. कुछ छात्रों ने तो यात्रा के लिए अंग्रेजी के सफर (Suffer) शब्द का इस्तेमाल किया. जिसका अर्थ होता है सहना या भुगतना.
इतना ही नहीं पिछले वर्ष भी उत्तर प्रदेश बोर्ड की हिंदी की परीक्षा में 10 लाख छात्र और 2018 की परीक्षा में 11 लाख छात्र फेल हो गए थे.
इस साल CBSE की 12वीं की बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या 11 लाख 92 हजार थी. इसमें से 10 लाख 59 हजार छात्र पास हो गए. यानी CBSE की 12वीं की बोर्ड परीक्षा में जितने छात्र हर साल पास हो जाते हैं. उत्तर प्रदेश में उससे ज्यादा छात्र हर साल अकेले हिंदी की परीक्षा में ही फेल हो जाते हैं.
ये है असली वजह
आज जब हमने इसकी वजह जानने के लिए रिसर्च किया तो हमें पता चला कि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में करीब 1 लाख 50 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं. और अगर इसमें सहायक शिक्षकों के खाली पदों को भी जोड़ लिया जाए तो ये संख्या 2 लाख से ज्यादा हो जाती है. जाहिर है अगर छात्रों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षक ही नहीं होंगे तो छात्र का प्रदर्शन ऐसा ही होगा. हम इसमें छात्रों की नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था की गलती ज्यादा मानते हैं.
हिंदी विषय में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के फेल होने की दूसरी बड़ी वजह ये भी है कि हिंदी भाषी राज्य होने की वजह से ज्यादातर छात्र ये मान लेते हैं कि उन्हें हिंदी लिखना, बोलना और पढ़ना आता है. इसलिए वो हिंदी विषय की परीक्षा में फेल नहीं हो सकते.
शोध में पता चलीं ये बातें
वर्ष 2012 में हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर द्वारा किए गए शोध में पाया गया था कि जिन छात्रों की पकड़ अपनी मातृभाषा पर अच्छी होती है वो दूसरे विषयों में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं.
इसी तरह संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNESCO द्वारा किए गए शोध पाया गया कि जिन बच्चों की शुरुआती 8 वर्षों की पढ़ाई लिखाई उनकी मातृभाषा में होती है वो दूसरे विषयों को तेजी से सीखने लगते हैं और कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे बच्चों के मस्तिष्क का विकास भी तेजी से होता है.
लेकिन समस्या ये है कि हिंदी भाषा को हमारे देश में हीन भावना की नजर से देखा जाता है. जबकि अंग्रेजी भाषा में बात करने को शान समझा जाता है. अंग्रेजी में बात करने वाले नेता जल्द ही लोगों के बीच लोकप्रिय हो जाते हैं और जो नेता जमीन से जुड़े होते हैं जिन्हें अंग्रेजी बोलना नहीं आता उन्हें आउटडेटेड मान लिया जाता है. आम लोग भी एक दूसरे के साथ भाषा के आधार पर अपना व्यवहार बदल लेते हैं.
अंग्रेजों ने हमें करीब 200 वर्ष तक गुलाम बना कर रखा और उन्होंने भारत को इंडिया कहा था. ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमसे नफरत करने वाले और हमें गुलाम बनाने वालों ने हमें जो नाम दिया हमने उसी नाम को सहर्ष स्वीकार कर लिया और आज आजादी के 72 वर्ष बाद भी हम उसी नाम को मेडल की तरह पहनकर घूम रहे हैं.
हमारे DNA का हिस्सा
यही मानसिकता, एक हीन भावना बनकर हमारे DNA का हिस्सा बन गई है. आज लोग बड़े गर्व से ये कहते हैं कि मेरी हिंदी खराब है (My Hindi is bad). अगर सामने वाला अंग्रेजी में बात कर रहा हो, तो लोग खुद को तुच्छ समझकर टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करने की कोशिश करते हैं. यहां तक कि किसी कंपनी के कॉल सेंटर पर कॉल करने के बाद अंग्रेजी में बात करने के लिए फोन पर एक दबाना होता है और हिंदी के लिए दो दबाना होता है और अगर ये विकल्प ना हो तो फिर लोग कस्टमर केयर ऑफिसर यानी ग्राहक सेवा अधिकारी की अंग्रेजी के सामने अपने सारे भाषाई हथियार डाल देते हैं.
भारत में हो रहा हिंदी का पतन
हिंदी- भारत में 52 करोड़ लोगों की भाषा है और पूरी दुनिया में करीब 59 करोड़ लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं. लेकिन इसके बावजूद भारत में हिंदी का पतन दुख पहुंचाता है. लेकिन अंग्रेजी के मामले में ऐसा नहीं है. इंग्लिश प्रोफिसिएंसी इंडेक्स के मुताबिक भारत दुनिया के उन 11 देशों में शामिल है जहां अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ रखने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. किसी देश में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या के मामले में भारत अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है. भारत में लगभग 12 करोड़ लोग अंग्रेजी बोलने में सक्षम हैं.
हिंदी भाषा की उत्तपत्ति संस्कृत से हुई और संस्कृत करीब 5 हजार वर्ष पुरानी भाषा है. संस्कृत भाषा को दुनिया की ज्यादातर भाषाओं की जननी माना जाता है और यूरोपियन देशों में बोली जाने वाली भाषाएं संस्कृति से ही निकली हैं. लेकिन आधुनिक हिंदी साहित्य की शुरुआत करीब 700 से 800 वर्ष पहले हुई थी. इसके बाद जब मुगल और दूसरे विदेशी आक्रमणकारी भारत आए तो हिंदी में फारसी और दूसरी विदेशी भाषाओं का इस्तेमाल बढ़ने लगे और हिंदी हिंदुस्तानी में बदल गई. आज हिंदी भारत के करीब 10 राज्यों की प्रमुख भाषा है.
हिंदी और संस्कृत की प्राचीन पहचान मिटाने की कोशिश
इतना ही नहीं हमारे देश भारत को इंडिया नाम भी विदेशियों ने ही दिया है. इतिहासकार मानते हैं कि सबसे पहले ग्रीस के लोगों ने भारत को इंडिका कह कर बुलाया और बाद में धीरे-धीरे ये नाम इंडिया में बदल गया. आज भी भारत में एक वर्ग ऐसा है जो अपनी पहचान को भारत से नहीं बल्कि इंडिया से जोड़कर देखता है और अंग्रेजों को अपना वैचारिक पूर्वज मानता है. ऐसे ही लोगों की वजह से इंडिया और भारत के बीच की खाई लगातार बड़ी हो रही है.
भारत के संविधान के पहले आर्टिकल में भी लिखा है- India, That is Bharat, shall be a union of states’. यानी विदेशियों का दिया हुआ नाम आखिरकार भारत के संविधान का भी हिस्सा बन गया.
इसके अलावा सिंधु नदी के नाम पर भारत का नाम हिंदुस्तान भी पड़ा. सिंधु का उच्चारण फारसी भाषा में हिंदू किया जाता है और कई लोग मानते हैं कि इसी वजह से भारत को हिंदुस्तान भी कहा जाता है.
लेकिन भारतीय पुराणों और ग्रंथों में भी भारत को अलग-अलग नाम दिए गए हैं. इनमें मेलुहा, भारत, भारत वर्ष. आर्यावर्त, और जम्बूद्वीप जैसे नाम शामिल हैं.
सनातन संस्कृति में जब भी कोई पूजा पाठ या हवन होता है और इस दौरान जब संकल्प लिया जाता है तो आपके नाम और शहर के नाम के साथ जम्बूद्वीपे भरतखंडे भी कहा जाता है. ये इस बात का प्रमाण है कि भारत को किसी जमाने में जम्बूद्वीप के नाम से भी जाना जाता था. यानी विदेशियों ने ना सिर्फ हमारे देश का नाम बदला बल्कि हिंदी और संस्कृत की प्राचीन पहचान को भी मिटाने की कोशिश की.
हालांकि एक अच्छी बात ये है कि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगभग 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और 52 करोड़ हिंदी भाषियों की वजह से हिंदी का बाजार बहुत बड़ा हो गया है.
और अब विदेशों में हिंदी सीखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. दुनिया की 9 बड़ी यूनिवर्सिटीज में हिंदी के अलग विभाग हैं और इनमें हिंदी सीखने वाले विदेशी छात्रों की संख्या हजारों में है.
यही वजह है कि अंग्रेजी की मशहूर ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में हर साल हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के कई शब्द शामिल किए जाते हैं. इस साल जनवरी में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में भारतीय भाषाओं के 26 शब्द शामिल किए गए थे. जिनमें आधार, डब्बा, चॉल, हड़ताल और शादी जैसे शब्द शामिल हैं.
उत्तर भारत में बोले जाने वाले शब्द 'जुगाड़' को भी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल किया जा चुका है. यानी आने वाले समय में आप कई विदेशी नेताओं को जुगाड़ वाले बयान देते हुए सुन सकते हैं. हो सकता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी दिन ये कहें कि वो चीन से निपटने का जुगाड़ कर रहे हैं.
हमारी शिक्षा व्यवस्था की ऐसी बुरी स्थिति क्यों
हमारे यहां के स्कूलों में रटने की प्रतियोगिता होती है, यहां रटने को ही ज्यादा नंबर लाने की गारंटी माना जाता है. यहां तक कि जो छात्र 12वीं कक्षा तक अंग्रेजी पढ़ते हैं वो भी आगे चलकर ठीक से अंग्रेजी नहीं बोल पाते.
हमें बार बार यही सिखाया जाता है कि अगर नौकरी नहीं मिली तो आपकी पढ़ाई बेकार है. यानी आप कुछ सीखें या ना सीखें, नौकरी मिलना जरूरी है. लेकिन समाज में जितने भी सफल व्यक्ति हैं, उन्होंने रटने की बजाय, चीजों को अलग तरीके से सीखने और समझने की कोशिश की और उसी के जरिए अपनी जिंदगी को बनाया.
हिंदी के बड़े कवि और लेखक उत्तर प्रदेश से
जिस उत्तर प्रदेश में हिंदी का ये हाल है, वहां हिंदी के बड़े-बड़े कवि, लेखक और साहित्यकार हुए हैं इनमें मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, हरिवंश राय बच्चन, सोहनलाल द्विवेदी जैसे नाम शामिल हैं. इसलिए उत्तर प्रदेश में हिंदी की ये स्थिति बहुत दुख पहुंचाने वाली है. भारत में कई फिल्मों में भी हिंदी और अंग्रेजी के बीच इस द्वंद को दिखाया गया है.