प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से 7वीं बार तिरंगा फहराकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का रिकॉर्ड तोड़ा. अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल किले पर 6 बार तिरंगा फहराने का मौका मिला था.
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने लाल किले से 7वीं बार तिरंगा फहराकर एक नया रिकॉर्ड बनाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का रिकॉर्ड तोड़ा है. जिन्हें लाल किले (Lal Quila) से 6 बार तिरंगा फहराने का मौका मिला था. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इस मामले में अभी पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के रिकॉर्ड से बहुत दूर हैं.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लालकिले से 17 बार झंडा फहराया था. उनकी बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ये मौका 16 बार मिला था. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का रिकॉर्ड है. जिन्हें 10 बार लाल किले से झंडा फहराने का मौका मिला था. मनमोहन सिंह का रिकॉर्ड वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तोड़ सकते हैं. अगर वो तीसरी बार भी देश के प्रधानमंत्री बन गए. दिलचस्प बात ये है कि चंद्रशेखर देश के इकलौते प्रधानमंत्री थे. जिन्हें लालकिले से एक बार भी झंडा फहराने का मौका नहीं मिला क्योंकि वो 8 महीने ही प्रधानमंत्री रहे और इन 8 महीनों में 15 अगस्त की तारीख ही नहीं आई. इस बार लालकिले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण बहुत खास रहा. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने लालकिले से राम मंदिर की बात की. अब तक राम मंदिर की बात करना हमारे यहां सांप्रदायिक बता दिया जाता था. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत बनाने पर इतना ज़ोर दिया है. उन्होंने Make in India के साथ साथ Make for World की बात की.
पीएम ने महिलाओं और पड़ोसी देशों पर बात की
पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने लालकिले से महिलाओं के sanitary pads की बात की. ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर कोई बात नहीं करता. जब भी कोई ऐसी बात कोई करता है तो उसकी हंसी उड़ाई जाती है. आपको याद होगा कि जब प्रधानमंत्री ने 2014 में देश को खुले में शौच से मुक्त करने की बात लालकिले से की थी तो लोगों ने उनका खूब मज़ाक उड़ाया था. लेकिन आज स्वच्छ भारत अभियान की कामयाबी को दुनिया मानती है. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य के मामले में नई क्रांति लाने की शपथ ली है. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन शुरू करने का ऐलान किया. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने ग्रामीण भारत को नए भारत से जोड़ने पर फोकस किया. जिसमें देश के सभी 6 लाख गांवों तक अगले एक साल में हाई स्पीड इंटरनेट पहुंचाया जाएगा.
पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने लालकिले से पड़ोसी देशों की नई परिभाषा दी और कहा कि पड़ोसी सिर्फ वो नहीं, जिनकी सीमाएं हमारी ज़मीन से मिलती हैं. पड़ोसी वो भी होते हैं, जिनसे हमारे दिल मिलते हैं. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने आतंकवाद और विस्तारवाद से एक साथ टकराने वाला इरादा लालकिले से बताया है. प्रधानमंत्री ने LoC और LAC की एक साथ बात करके, पाकिस्तान और चीन दोनों को कड़ा संदेश दे दिया. खासतौर पर चीन को एक तरह से प्रधानमंत्री ने लालकिले से ये कहकर चेतावनी दी कि भारत अपनी आज़ादी के साथ ही इन विस्तारवादी ताकतों के लिए चुनौती बन गया था और आज पूरे संकल्प के साथ ऐसी ताकतों को भारत करारा जवाब दे रहा है.
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की घोषणा
अब हम आपको उस योजना के बारे में जानना चाहिए. जिसकी घोषणा आज लालकिले से प्रधानमंत्री मोदी ने की है. इस योजना का नाम है - नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन. इस योजना की चार प्रमुख विशेषताएं होंगी, जिनके बारे में आपको आसान और सरल भाषा में समझना होगा. पहली विशेषता ये होगी कि देश के हर नागरिक को एक डिजिटल हेल्थ कार्ड मिलेगा. जिसके जरिये आपको अस्पताल में पर्ची बनवाने की भागदौड़ से आजादी मिलेगी. साथ ही डॉक्टरों की फीस और इलाज के खर्च का भुगतान भी इसी कार्ड से किया जा सकेगा. दूसरी विशेषता होगी पर्सनल हेल्थ रिकॉर्ड. इसमें आपकी उम्र, ब्लड ग्रुप, एलर्जी, और सर्जरी जैसी जानकारी रहेंगी. साथ ही आपको कब कौन सी बीमारी हुई थी. उसका क्या इलाज किया गया और किस डॉक्टर या अस्पताल से इलाज करवाया. ऐसी तमाम जानकारियां दर्ज होंगी. जिससे डॉक्टर को आपकी Health history जानने और उसके हिसाब से इलाज करने में आसानी होगी.
तीसरी विशेषता होगी Digi Doctor. इसमें देशभर के डॉक्टर अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकेंगे. जिसके बाद वो मरीजों को ऑनलाइन परामर्श दे सकेंगे. चौथी विशेषता होगी - हेल्थ फैसिलिटी रजिस्ट्री. इसमें अस्पताल, क्लिनिक लैब और स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित अन्य सुविधाएं एक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होंगी. इसके लिए सरकार एक App तैयार कर रही है. हालांकि अभी इस App का नाम तय नहीं हुआ है. अब सवाल ये है कि देश के सभी नागरिकों का डिजिटल रिकॉर्ड कैसे बनेगा ? इस योजना के तहत अस्पताल, क्लीनिक और डॉक्टरों को एक सेंट्रल सर्वर से जोड़ दिया जाएगा. लोगों का मेडिकल डेटा भी उसी सर्वर पर मौजूद रहेगा.
सिंगल क्लिक पर आपको मिल जाएगी अपने स्वास्थ्य की जानकारी
डिजिटल हेल्थ कार्ड बनवाने पर आपको एक Single Unique ID मिलेगी. जिसके जरिये आप खुद अपने रिकॉर्ड को अपडेट करेंगे. जब भी आप किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल में जाएंगे तो पिछले इलाज से जुड़े पर्चे और जांच की रिपोर्ट नहीं ले जानी पड़ेगी.
आपको डॉक्टर को बस अपनी Unique ID बतानी होगी और वो कहीं से भी बैठकर आपका सारा मेडिकल रिकॉर्ड देख सकेंगे. इससे आपको डॉक्टरों और मेडिकल टेस्ट के तमाम पर्चों को सहेजने के झंझट से निजात मिलेगी. ये योजना देश के नागरिकों और अस्पतालों के लिए ऐच्छिक होगी. यानी इस योजना में शामिल होने या न होने का फैसला वो खुद करेंगे. इस योजना का सबसे अधिक लाभ दूरदराज के गांवों मे रहने वाले लोगों को मिलेगा. जो आपात स्थिति में बिना अस्पताल गए डॉक्टर का परामर्श ले पाएंगे. इस योजना का मुख्य उद्देश्य पूरे देश का एक डिजिटल हेल्थ सिस्टम तैयार करना है । जिससे सरकार को स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने में मदद मिलेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आज कहा है कि भारत के हेल्थ सेक्टर में ये योजना नई क्रांति लेकर आएगी.
देश में तीन कोरोना वैक्सीन का चल रहा है ट्रायल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस समय देश में तीन वैक्सीन अलग-अलग क्लिनिकल ट्रायल फेज में हैं. पहली वैक्सीन का नाम है - Co-vaxine (को-वैक्सीन)..जिसे Indian Council of Medical Research यानी ICMR और भारत बायोटेक ने मिलकर तैयार किया है. देश के कुल 12 Centres पर इस वैक्सीन का पहला ट्रायल पूरा हो चुका है और सितंबर में इसके दूसरे चरण के ट्रायल शुरु हो जाएंगे. दूसरी वैक्सीन का नाम है - ZyCoV-D (जायकोव-डी)..भारत की Drug Pharma Company..Zydus Cadila (जायडस कैडिला) ने 6 अगस्त से इस वैक्सीन के दूसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल शुरु कर दिये हैं.
तीसरी वैक्सीन का नाम है - Covi-Shield (कोवि-शील्ड)..ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च पर तैयार हुई इस वैक्सीन पर पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया काम कर रहा है । इस वैक्सीन के तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल शुरु हो चुके हैं । ये वैक्सीन इस वर्ष के अंत तक लॉन्च हो सकती है. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से ऐलान किया है कि जैसे ही वैज्ञानिकों की तरफ से इन तीनों से भी जिस भी कोरोना वैक्सीन को मंजूरी दी जाती है. वैसे ही उसका बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन शुरु कर जाएगा. यानी ये वैक्सीन आप तक पहुंचाने की भी पूरी योजना बना ली गई है.
कोरोना काल ने स्वतंत्रता दिवस के जश्न का तरीका बदला
पिछली बार लालकिले पर इस कार्यक्रम में 10 हजार से ज्यादा लोग पहुंचे थे और आसपास का पूरा इलाका तिरंगे से रंगा था. लेकिन इस बार सीमित संख्या में लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रधानमंत्री मोदी, हर बार भाषण खत्म करने के बाद Protocol तोड़कर बच्चों से भी मिलते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. कोरोना संक्रमण के खतरे की वजह से इस बार बच्चों को नहीं बुलाया गया. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगे कपड़ों में स्कूली बच्चे नजर नहीं आए. स्कूली बच्चों की जगह इस बार 500 NCC कैडेट्स को बुलाया गया था.
कार्यक्रम में शामिल होने वाले मेहमानों की संख्या भी पिछले साल के मुकाबले काफी कम रखी गई. VVIP मेहमानों की संख्या पिछली बार की तुलना में 20 प्रतिशत ही थी. लेकिन इस बार लगभग 1500 कोरोना वॉरियर्स को न्योता दिया गया था. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जहां इस जगह पर लोगों को खड़े होने की भी जगह नहीं मिलती थी, वहां पर इस बार Social Distancing का पालन करते हुए लोग खड़े थे. सुरक्षाबलों को भी खास दिशा निर्देश दिए गए थे. सीमित संख्या में पहुंचे जवानों ने भी Social Distancing का पालन किया. जबकि पिछली बार 20 हजार से ज्यादा जवानों को यहां पर तैनात किया गया था.
एक घंटा 26 मिनट तक चला पीएम का भाषण
लालकिले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक घंटे 26 मिनट का भाषण दिया है. इसमें प्रधानमंत्री ने सबसे ज़्यादा 32 बार आत्मनिर्भर शब्द बोला, जो चीन से टकराव के बीच देश का सबसे चर्चित शब्द भी है. 25 बार उन्होंने कोरोना का ज़िक्र किया, जो इस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है. उन्होंने 22 बार किसान शब्द बोला और 21 बार महिलाओं का ज़िक्र किया. उन्होंने 18 बार विकास, 15 बार ग्रामीण और 15 बार गरीब शब्द का ज़िक्र किया. सीमा पर टकराव के माहौल की झलक भी प्रधानमंत्री के भाषण से मिली. उन्होंने 11 बार सीमा, 10 बार सेना, 6 बार लद्दाख का ज़िक्र किया. प्रधानमंत्री का भाषण 86 मिनट का था . लेकिन ये लालकिले से उनका सबसे लंबा भाषण नहीं था. 2016 में उन्होंने सबसे ज़्यादा 94 मिनट तक भाषण दिया था. करीब करीब इतनी ही देर, उन्होंने पिछले वर्ष भी लालकिले से भाषण दिया था. जब वो लोकसभा चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में आए थे. लालकिले से उनका सबसे छोटा भाषण 57 मिनट का था, जो उन्होंने 2017 में दिया था.
अटारी बॉर्डर से राष्ट्रपति भवन, सब जगह दिखा कोरोना संक्रमण का असर
कोरोना वायरस की वजह से आज भारत और पाकिस्तान के अटारी-वाघा बॉर्डर पर भी स्वतंत्रता दिवस का जश्न फीका रहा। पहली बार ऐसा हुआ कि यहां पर Beating retreat ceremony बिना दर्शकों के हुई. आम तौर पर हज़ारों दर्शक यहां पर मौजूद होते हैं और इन दर्शकों के बीच देशभक्ति का यहां पर जबरदस्त माहौल रहता है. लेकिन कोरोना की वजह से अटारी बॉर्डर पर Beating retreat ceremony इस वर्ष मार्च से ही बंद है और आज स्वतंत्रता दिवस पर नाममात्र के ही दर्शक थे. दोनों देशों के जवानों ने एक दूसरे को मिठाई भी नहीं दी. इसी तरह से हर वर्ष आज के दिन राष्ट्रपति भवन में होने वाले 'At Home' कार्यक्रम में बहुत कम मेहमान पहुंचे. आम तौर पर इस कार्यक्रम की गेस्ट लिस्ट में करीब डेढ़ हज़ार लोग शामिल होते हैं, लेकिन इस बार लगभग 90 मेहमान ही बुलाए गए थे. इन 90 मेहमानों में भी 25 लोग corona warriors थे. जिनमें डॉक्टर, नर्स, Health Workers और सफाई कर्मचारी शामिल थे. इस बार मेहमानों को अपना परिवार साथ लाने की अनुमति नहीं थी. कार्यक्रम में सोशल डिस्टेसिंग का पूरा पालन किया गया।
देश को अनुशासनहीनता की चुकानी पड़ी बड़ी कीमत
आजादी के बाद हम अनुशासन में नहीं रह पाए जिसकी वजह से लंबे संघर्ष के बाद मिली आजादी अराजकता में बदल गई. आज हम अपने चारों तरफ जो अराजकता और समस्याएं देखते हैं वो इसी अनुशासन हीनता का नतीजा हैं . लेकिन आप में से ज्यादातर लोगों को शायद इस बात का एहसास नहीं होगा कि अंग्रेजों से हमे जो आजादी मिली थी. उसमें सबसे बड़ी भूमिका अनुशासन की थी. सितंबर 1920 में गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी और अंग्रेजों से पहली बार पूर्ण स्वराज मांगा था. इस शांतिपूर्ण आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत को परेशान कर दिया था. लेकिन 2 साल बाद गोरखपुर के चौरी चौरा में भीड़ ने एक पुलिस चौकी को आग लगा दी और इसमें 22 पुलिस कर्मी मारे गए. लोगों ने अनुशासन तोडा और गांधी जी ने इससे आहत होकर ये आंदोलन वापस ले लिया. अगर लोगों के अनुशासन तोड़ने पर आंदोलन को इस तरह अचानक वापस नहीं लेना पड़ता तो हो सकता है कि भारत को जो आजादी 1947 में मिली वो दो दशक पहले ही मिल जाती. यानी भारत को अराजकता की एक घटना की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.
आज भी लोग अनुशासन का महत्व समझने को तैयार नहीं
लेकिन ऐसा लगता है कि भारत के लोग आजादी के बाद भी अनुशासन को अपने जीवन का हिस्सा नहीं बना पाए. हम आपको इसके कुछ उदाहरण देना चाहते हैं. आज भी हमारे देश में लाइन में लगना अपमान माना जाता है और किसी VIP से तो आप ये उम्मीद भी नहीं कर सकते कि वो लाइन में लगने को तैयार होगा. अगर कोई अनुशासित व्यक्ति लाइन तोड़ने वाले को उसकी गलती का एहसास भी करा दे तो नियम तोड़ने वाला व्यक्ति या तो लड़ने लगता है या फिर फिर अपनी हैसियत की धौंस जमाने लगता है. अनुशासन तोड़ने की इसी आदत की वजह से भारत सड़क दुर्घटनाओं के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर है । 2018 में 1 लाख 51 हज़ार लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई थी और इसके लिये अनुशासन हीनता सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी.
मिलावट को अनैतिक नहीं मानते लोग
इसी तरह भारत के लोग मिलावट को भी अनैतिक नहीं मानते. मिलावट भी हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है. Food Safety and Standards Authority of India यानी FSSAI की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बिकने वाले 68.7 प्रतिशत दूध की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरती. ये हाल तब है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ये चेतावनी दे चुका है कि अगर भारत में दूध की गुणवत्ता को नहीं सुधारा गया तो वर्ष 2025 तक भारत की 85 प्रतिशत आबादी को कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. इसी तरह जो लोग दफ्तरों में काम करते हैं उनमें से ज्यादातर स्वैच्छिक तौर पर अनुशासन में रहना नहीं चाहते. सरकारी अफसर तो छोड़िए प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कई कर्मचारी भी समय पर ऑफिस ना पहुंचने और नियमों के उल्लंघन के लिए बदनाम हैं और ये सबकुछ अनुशासन हीनता की वजह से होता है.