DNA ANALYSIS: जानिए नए भारत के लिए परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा क्या है?
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DNA ANALYSIS: जानिए नए भारत के लिए परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा क्या है?

आज की तारीख में फेक न्यूज, परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा बन चुका है और फेक न्यूज को आप तक पहुंचाने का काम सोशल मीडिया की मदद से हो रहा है. फेसबुक और वाट्सऐप जैसे मोबाइल ऐप, फेक न्यूज फैलाने का माध्यम बन चुके हैं और ये किसी परमाणु बम के धमाके से भी ज्यादा खतरनाक हैं.

DNA ANALYSIS: जानिए नए भारत के लिए परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा क्या है?

नई दिल्ली: आज हम हमारे समाज की एक ऐसी समस्या की बात करेंगे जिसके खतरनाक परिणाम हम सबको झेलने पड़ रहे हैं. ये समस्या है फेक न्यूज (Fake News) की. फेक न्यूज की वजह से कई जगहों पर दंगे हो चुके हैं. फेक न्यूज से किसी बड़ी हस्ती के निधन के बारे में झूठी खबर फैला दी जाती है. और फेक न्यूज की वजह से दो देश युद्ध के करीब पहुंच जाते हैं. कोई फेक न्यूज एक ही समय में लाखों लोगों को प्रभावित करता है.

वर्ष 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था. लेकिन आज हम समझने की कोशिश करेंगे कि लॉकडाउन के दौरान फेक न्यूज का बम किसने गिराया. इसलिए आज की तारीख में फेक न्यूज, परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा बन चुका है और फेक न्यूज को आप तक पहुंचाने का काम सोशल मीडिया की मदद से हो रहा है. फेसबुक और वाट्सऐप जैसे मोबाइल ऐप, फेक न्यूज फैलाने का माध्यम बन चुके हैं और ये किसी परमाणु बम के धमाके से भी ज्यादा खतरनाक हैं.

फेक न्यूज का खतरनाक स्वरूप
अब फेक न्यूज का एक और खतरनाक स्वरूप सामने आया है. लॉकडाउन के दौरान जरूर आपने भी प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें देखी होंगी. केंद्र सरकार के मुताबिक फेक न्यूज की वजह से ही बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर पलायन के लिए मजबूर हो गए थे यानी नए भारत के लिए फेक न्यूज सबसे बड़ा खतरा बन चुका है. आपको याद होगा कि लॉकडाउन के ऐलान पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि जो जहां पर है, वो वहीं पर रहे. लेकिन इसके अगले ही दिन दिल्ली से हज़ारों लोग अपने गांव जाने के लिए निकल पड़े थे. अब आप इस पलायन की असली वजह जान लीजिए.

- गृह राज्य मंत्री G किशन रेड्डी ने लोक सभा में बताया कि फेक न्यूज की वजह से मजदूरों के बीच घबराहट फैल गई और फिर वो पलायन के लिए मजबूर हो गए.

- गृह मंत्रालय के मुताबिक प्रवासी मजदूरों को लगा कि वो घर में रहेंगे तो खाना-पानी नहीं मिलेगा क्योंकि फेक न्यूज फैलाई गई कि लॉकडाउन अभी बहुत लंबा चलेगा.

- तृणमूल पार्टी की सांसद माला राय ने गृह मंत्रालय से पूछा था कि हजारों मजदूर लॉकडाउन के बाद पैदल वापस जाने के लिए क्यों मजबूर हुए? और कितने मजदूरों की उनके घर वापस लौटते समय मौत हुई थी?

- गृह मंत्रालय ने बताया कि अपने घर वापस जाने के दौरान कितने प्रवासी मजदूरों की जान चली गई इसका कोई आंकड़ा उनके पास मौजूद नहीं है.

- मंगलवार को गृह मंत्रालय ने लोकसभा में प्रवासी मजदूरों के पलायन पर ये लिखित जवाब दिया है.

- लोक सभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि केंद्र सरकार 'इस बारे में पूरी तरह से तैयार' थी और लॉकडाउन की अवधि के दौरान गरीबों के खाने-पीने, रहने और इलाज के सभी जरूरी उपाय किए गए थे, लेकिन लॉकडाउन लंबा चलने की अफवाह के कारण मजदूरों ने घर जाना ही बेहतर समझा.

आपको याद होगा 28 और 29 मार्च को दिल्ली के आनंद विहार में हजारों प्रवासी मजदूर इकट्ठा हो गए थे. कोरोना वायरस के दौर में देश के राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और डिजाइनर पत्रकारों के लिए प्रवासी मजदूरों का पलायन सबसे पसंदीदा विषय बन गया था. कई बड़े पत्रकारों ने वहां से लाइव शो किए और केंद्र सरकार पर सवाल उठाया. तब किसी ने ये सवाल नहीं उठाया कि इन प्रवासी मजदूरों के पलायन की वजह क्या है.

मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर हजारों लोग जमा हो गए
इसी तरह 14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर हजारों लोग जमा हो गए थे. ये बताया गया कि ये प्रवासी मजदूर हैं जो अपने शहर और अपने गांव जाने के लिए रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए थे. किसी ने तब इनके इकट्ठा होने के बारे में जानकारी नहीं दी, पता लगाने की कोशिश नहीं की. लेकिन उस समय भी Zee News अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहा था. हमने आपको बताया था कि ऐसी कोशिश के पीछे कौन लोग हैं.

हमारी टीम ने दिल्ली और मुंबई में मौजूद उन प्रवासी मजदूरों से बात की जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान पलायन किया था और उन्होंने भी फेक न्यूज की पुष्टि की है.

आपको याद होगा लॉकडाउन लगाने के बाद भी प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें आ रही थीं. तब ऐसा लग रहा था मानो राज्य सरकारें इन लोगों को रोकने की कोशिश ही नहीं कर रही थी. शायद राज्य खुद ये चाहते थे कि प्रवासी मजदूर उनके यहां से वापस अपने घर चले जाएं. ऐसे हालात में फेक न्यूज ने प्रवासी मजदूरों के लिए हालात और खराब कर दिए.

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करोड़ों प्रवासी मजदूर फेक न्यूज से प्रभावित हुए 
भारत में लगभग 4 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं, ये वो लोग हैं जो अपने घर से दूर किसी और राज्य में जाकर नौकरी करते हैं और गृह मंत्रालय के मुताबिक इस वर्ष मई महीने तक ही लगभग 75 लाख मजदूर वापस अपने घर लौट चुके थे यानी हर 5 प्रवासी मजदूरों में से एक वापस अपने राज्य चला गया. संभव है कि ये सभी लोग फेक न्यूज का शिकार बन गए हों और ऐसा भी हो सकता है कि ये संख्या और भी ज्यादा हो.

यानी फेक न्यूज से सिर्फ दंगे ही नहीं होते, इसकी मदद से किसी देश की अर्थव्यवस्था और समाज को भी नुकसान पहुंचाया जा सकता है. आजकल बड़े देश इसी तरीके का युद्ध कर रहे हैं जिसे आप हाइब्रिड युद्ध भी कह सकते हैं. जिस देश को लक्ष्य बनाकर फेक न्यूज का ये हमला किया जाता है, उसमें उस देश का मीडिया, विपक्षी नेता और विपक्षी बुद्धिजीवी सभी शामिल हो जाते हैं. लेकिन इसमें नुकसान प्रवासी मजदूरों का होता है और फेक न्यूज हिंदू और मुसलमान में भेद नहीं करती है ये सबको समान रूप से प्रभावित करती है.

सुखोई-35 से भी ज्यादा तेजी से फैली अफवाह
फेक न्यूज से सिर्फ दंगे ही नहीं फैलते बल्कि दो देशों के बीच युद्ध जैसे हालात भी पैदा हो सकते हैं. इसी महीने की 4 तारीख को सोशल मीडिया पर एक अफवाह फैली. इसमें चीन के एक फाइटर जेट सुखोई-35 को मार गिराने का दावा किया गया. इस फाइटर जेट को Su-35 भी कहा जाता है. ये बताया गया कि चीन का फाइटर जेट ताइवान की सीमा में घुस रहा था और ताइवान के एयर डिफेंस सिस्टम ने उसको मार गिराया. इस दावे के साथ 15 सेकेंड का एक फेक वीडियो भी शेयर किया गया. ये फेक न्यूज कुछ ही घंटों में दुनिया भर में पहुंच गई. सुखोई-35 दुनिया के सबसे तेज उड़ने वाले फाइटर जेट्स में से एक है, लेकिन अफवाह उससे भी तेजी से फैली. हमारे देश में भी कुछ न्यूज चैनलों ने बिना जांच-पड़ताल किए इस फेक न्यूज को दिखाया. हालांकि न तो चीन और न ही ताइवान ने इस खबर की पुष्टि की थी. इसमें लोगों की दिलचस्पी इतनी ज्यादा थी, कि इस खबर का खंडन प्रकाशित करने वाली वेबसाइट भी क्रैश हो गई थी.

प्रणब मुखर्जी के निधन की फेक न्यूज
पिछले महीने पद्मश्री जैसे पुरस्कारों से सम्मानित एक पत्रकार ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन की फेक न्यूज को ट्वीट कर दिया था और पत्रकारों के एक गैंग ने बिना एक पल गंवाए इस फेक न्यूज को रीट्वीट करना शुरू कर दिया. बाद में जब प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट किया तब उस फेक न्यूज को डिलीट किया गया था. ट्विटर पर इस पत्रकार के फॉलोअर्स की संख्या करीब 90 लाख है यानी जब ये लोग कोई बात कहते हैं या सोशल मीडिया पर कुछ लिखते हैं तो उससे लाखों-करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं लेकिन इन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है.

इसी तरह देश में कई संगठनों ने CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया. कई जगहों पर लोगों ने धरना और प्रदर्शन भी किया. लेकिन इसके खिलाफ देश में एक माहौल बनाने में फेक न्यूज का सहारा लिया गया. एक खास समुदाय के मन में ये डर बिठाया गया कि उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी. हालांकि सच्चाई ये है कि ये नागरिकता छीनने का कानून नहीं है, बल्कि भारत के पड़ोसी देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का कानून है.

इसी तरह 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू होने की घोषणा की थी. इसके तुरंत बाद दुकानों के बाहर खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. तब फेक न्यूज में कहा गया था कि लोगों को राशन का सामान नहीं मिलेगा.

आपने देखा होगा जम्मू-कश्मीर से जुड़े मुद्दों पर एक खास समुदाय के लोगों को भड़काने के लिए सीरिया और इराक की तस्वीरों का इस्तेमाल किया जाता है. फेक न्यूज के जरिए कश्मीर के हालात को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जाता है.

सोशल मीडिया के कारण तेज हुई झूठ की रफ्तार
अमेरिकी लेखक और व्यंगकार Mark Twain की एक बहुत मशहूर बात है- ‘A lie can travel half way around the world while the truth is putting on its shoes’ यानी जब तक सच अपने जूते पहन रहा होता है तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर काट चुका होता है. सोशल मीडिया के कारण झूठ की ये रफ्तार और भी तेज हो चुकी है. एक बार जब कोई झूठ फैल जाता है तो उसे रोकना बहुत मुश्किल होता है. लोग अक्सर उसे सच मान चुके होते हैं.

दुनिया में फेक न्यूज का चलन किस हद तक बढ़ गया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि Fake News शब्द को पिछले वर्ष ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में औपचारिक तौर पर शामिल कर लिया गया है.ऑक्सफोर्ड ने फेक न्यूज को परिभाषित करते हुए कहा है कि ये वो न्यूज होती है जिसमें गलत, झूठी और भ्रामक जानकारियां शामिल होती हैं. ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक, इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार वर्ष 1890 में किया गया था.

आधुनिक काल में फेक न्यूज का पहला मामला
माना जाता है कि आधुनिक काल में फेक न्यूज का पहला मामला वर्ष 1835 में सामने आया था. तब अमेरिका के एक अखबार The Sun ने चंद्रमा पर जीवन मिलने का दावा किया था. अखबार ने कुछ तस्वीरें भी प्रकाशित की थीं और उन तस्वीरों में मौजूद इंसानों के शरीर पर चमगादड़ की तरह पंख लगे हुए थे. कई हफ्तों तक इस अखबार को पढ़ने वाले लोग इन तस्वीरों को सच मानते रहे और ये घटना The Great Moon Hoax के नाम से प्रसिद्ध है. हालांकि इस फेक न्यूज की वजह से तब The Sun अखबार का सर्कुलेशन बहुत बढ़ गया था.

महाभारत काल में फेक न्यूज
शायद संसार की पहली और सबसे बड़ी फेक न्यूज महाभारत काल से जुड़ी है. महाभारत के युद्ध में अश्वथामा और उनके पिता द्रोणाचार्य ने पांडवों की सेना को तितर-बितर कर दिया था. पांडवों के लिए पिता और पुत्र की इस जोड़ी को रोकना मुश्किल हो गया था. पांडवों की सेना की हार देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा. इस योजना के तहत यह बात फैला दी गई कि "अश्वत्थामा मारा गया". जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया-"अश्वत्थामा मारा गया परन्तु हाथी". लेकिन उन्होंने बड़े धीमे स्वर में "परन्तु हाथी" कहा. योजना के तहत श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया, जिसके शोर से गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'परन्तु हाथी' नहीं सुन पाए.

पांडवों ने जान-बूझकर युधिष्ठिर को चुना, क्योंकि उन्हें पता था, युधिष्ठिर की छवि अच्छी है, उनकी बात पर द्रोणाचार्य जरूर भरोसा करेंगे.
अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनकर द्रोणाचार्य ने अपने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आखें बंद कर शोक अवस्था में बैठ गए. गुरु द्रोणाचार्य को निहत्था पाकर द्रौपदी के भाई ने तलवार से उनका सिर काट दिया. इसके बाद पांडवों की जीत होने लगी. हालांकि आज भी कुछ लोग कृष्ण और युधिष्ठिर की फेक न्यूज वाली इस कूटनीति पर सवाल उठाते हैं. लेकिन हमें लगता है कि कलयुग में फैलाई जा रही फेक न्यूज ज्यादा खतरनाक है.

मानव सभ्यता के लिए खतरा
फेक न्यूज कितनी खतरनाक होती है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसे अब मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़े खतरों में गिना जाने लगा है. अमेरिका में Doomsday Clock को विनाश के पल से 2 मिनट पीछे सेट करते हुए कहा गया है कि फेक न्यूज, जलवायु परिवर्तन और परमाणु बम, वो मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से दुनिया तबाही की तरफ बढ़ रही है. डूम्स डे का अर्थ है, तबाही वाला दिन और माना जाता है कि इस घड़ी की सुईंया तबाही वाले पल के जितनी करीब होती है. सभ्यता का विनाश भी उतना ही करीब होता है यानी Fake News एक देश के राजनीति और सामाजिक ताने बाने को ही नहीं बिगाड़ती, बल्कि पूरी की पूरी मानव सभ्यता के लिए खतरा बन जाती है.

फेक न्यूज का सच
अब सवाल ये है कि सोशल मीडिया पर फैलाई गई किसी फेक न्यूज का सच कैसे पता करें? क्योंकि चैनल, अखबार या किसी परिचित करीबी लोगों की तरफ से आए मैसेज या पोस्ट पर लोग शक नहीं करते हैं. लोग सोचते हैं कि ये मैसेज शायद ठीक ही होगा और यहीं पर आपको सावधान हो जाने की जरूरत है. क्योंकि फर्जी खबरों के मायाजाल में कोई भी फंस सकता है. इसके लिए आपको सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखना है.

 सोशल मीडिया पर फर्जी पोस्ट के तीन पक्ष होते हैं. एक पोस्ट करने वाला, दूसरा सर्विस प्रोवाइडर यानी ये खबर सोशल मीडिया के किस प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की गई है और तीसरा पोस्ट को Like या Share करने वाले.

- फेक न्यूज की पहचान के लिए आपको ये देखना चाहिए कि खबर आई कहां से हैं. इसकी शुरुआत कहां से हुई.

- इसके बाद आपको इंटरनेट सर्च इंजन की मदद से खबर की जांच करनी चाहिए.

- किसी खबर को तब तक शेयर ना करें, जब तक आप उसकी सच्चाई को लेकर पूरी तरह भरोसा ना कर लें। यानी आंख बंद करके किसी अटैचमेंट को डाउनलोड या ओपन न करें और अगर आपने किसी भड़काने वाली खबर को शेयर किया तो Information Technology Act, 2000 के आर्टिकल 66-A के तहत आपको 3 साल की जेल भी हो सकती है.

भारत में 20 करोड़ घरों में लगभग 85 करोड़ लोग टीवी देखते हैं. इसलिए ये फेक न्यूज टीवी के जरिए भी फैलती हैं. भारत में भी कुछ पत्रकार  बेहिचक होकर फर्जी खबरें फैलाते हैं. लेकिन उन पर कभी कड़ी कार्रवाई नहीं होती. फर्जी खबरें किसी की मौत का कारण भी बन सकती हैं. इसके बावजूद लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते. इसलिए हमारे न्यूज़रूम में मौजूद हर पत्रकार को तथ्यों की जांच करने की आदत है. लेकिन हमें लगता है कि सिर्फ पत्रकारों को ही नहीं, अब आपको भी इसकी आदत डालनी चाहिए. क्योंकि फेक न्यूज अब कोरोना वायरस से भी ज्यादा संक्रामक रोग बन गया है.

फेक न्यूज के खिलाफ कानून
दुनिया के कई देश फेक न्यूज के खिलाफ कानून बना चुके हैं. इनमें रूस, फ्रांस, जर्मनी, श्रीलंका और सिंगापुर जैसे देश शामिल हैं.

- रूस में फेक न्यूज फैलाने पर 4 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है.

- फ्रांस में फेक न्यूज फैलाने पर एक साल की सजा और 40 लाख रुपए का जुर्माना है.

- जर्मनी में फेक न्यूज को लेकर सजा बहुत सख्त है. यहां सोशल मीडिया वेबसाइट पर 400 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. इसके अलावा 24 घंटे के अंदर सोशल मीडिया से फेक न्यूज को हटाना होगा.

- मलेशिया की सरकार ने भी मार्च, 2018 में एंटी फेक न्यूज कानून पास किया था, लेकिन इसका वहां की जनता ने काफी विरोध किया था. इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया गया था.

झूठी खबरों के फैलने की ताकत 70 प्रतिशत ज्यादा
Fake News फैलाने के लिए सोशल मीडिया बड़ा हथियार है. ट्विटर पर सच्ची खबरों की तुलना में झूठी और फर्जी खबरों के फैलने की ताकत 70 प्रतिशत ज्यादा होती है और इसकी वजह से सच्ची खबरों और सूचनाओं को खोज पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. लेकिन भारत में इसके खिलाफ कोई कानून नहीं है.

भारत में फेक न्यूज का संक्रमण
भारत, दुनियाभर में वाट्सऐप का सबसे बड़ा बाजार है. वर्ष 2019 के आंकड़े के अनुसार यहां 40 करोड़ से ज्यादा लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. वाट्सऐप की घुसपैठ परिवारों के अंदर तक है. लिहाजा इससे भी बहुत तेजी से झूठी खबरें आप तक पहुंचा दी जाती हैं. इनमें फर्जी खबरों के अलावा फर्जी तस्वीरें और वीडियो भी शामिल होते हैं. अगर आप फेक यानी नकली सामान खरीदना नहीं चाहेंगे तो फेक न्यूज को क्यों सुनना, देखना और शेयर करना चाहेंगे. लेकिन भारत में फेक न्यूज का संक्रमण तेजी से फैल रहा है.

फेक अकाउंट्स की मदद से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश
इसी वर्ष फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए थे. फेसबुक के एक पूर्व कर्मचारी ने दावा किया है कि फेक अकाउंट्स की मदद से इस चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी.

भारत में 35 करोड़ से ज्यादा लोग सोशल ​मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. उन पर 24 घंटे, हफ्तों के सातों दिन फेक न्यूज वाला खतरा मंडरा रहा है. फेक न्यूज के खिलाफ हमारा 137 करोड़ की आबादी वाला देश कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है. भारत को सबक लेने की जरूरत है क्योंकि 137 करोड़ की आबादी वाले देश में फेक न्यूज राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये बड़ा खतरा बन सकती है.

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