DNA ANALYSIS: Farmers Protest, राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा देश के किसानों का इस्तेमाल?
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DNA ANALYSIS: Farmers Protest, राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा देश के किसानों का इस्तेमाल?

Farmers Protest: बंद का समर्थन करनी वाली पार्टियों मे सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस (Congress) है.  ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक फायदे के लिए देश के किसानों (Farmers) का इस्तेमाल किया जा रहा है. क्या संविधान को संसद की जगह सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया गया है.

DNA ANALYSIS: Farmers Protest, राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा देश के किसानों का इस्तेमाल?

नई दिल्ली: किसान आंदोलन (Farmers Protest) का आज 13वां दिन है. किसान संगठनों ने 8 दिसंबर यानी आज भारत बंद (Bharat Bandh) का ऐलान किया है. 26 नवंबर को किसान जब दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे तब उन्होंने कहा था कि उनका आंदोलन राजनीति से दूर है. जब किसान, सरकार से बात करने पहुंचे तब भी उनके साथ कोई राजनीतिक पार्टी (Political Parties) नहीं थी. लेकिन आज भारत बंद को 20 राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया है. किसान आंदोलन के समर्थन में आईं ये पार्टियां किसानों की हितैषी हैं या फिर ये पार्टियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए ऐसा कर रही हैं? ये किसानों का समर्थन है या केवल भारत का विरोध आज हम इसका विश्लेषण करेंगे?

सबसे पहले बात उन राजनीतिक पार्टियों की करते हैं. जिन्होंने भारत बंद (Bharat Bandh) का समर्थन किया है. 

24 प्रतिशत सांसदों की पार्टियां भारत बंद के साथ
बंद का समर्थन करनी वाली पार्टियों मे सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. मौजूदा लोकसभा में कांग्रेस के 51 सांसद हैं. समाजवादी पार्टी और NCP के भी 5 सांसद हैं, इसके अलावा आम आदमी पार्टी का 1, बहुजन समाजवादी पार्टी के 10, शिरोमणि अकाली दल के 2 सांसद हैं. शिवसेना जो कि भारत बंद का समर्थन कर रही है, उसके पास लोकसभा में 18 सांसद हैं. भारत बंद का समर्थन करने वाली दूसरी पार्टियों के 40 सांसद हैं. अगर इन सांसदों की संख्या जोड़ दी जाए. तो बंद को 133 सांसदों वाली 20 से ज़्यादा पार्टियों का समर्थन है. यानी लोकसभा के कुल 543 सांसदों में से सिर्फ 24 प्रतिशत सांसदों की पार्टियां भारत बंद के साथ हैं.

लोकतंत्र में बहुमत की इच्छा मानी जाती है. पर यहां जो सांसद अल्पमत में हैं. वो पूरा देश बंद कर देना चाहते हैं और जिस सरकार को देश के संविधान ने संप्रभुता के साथ फैसले लेने की ताकत दी. उसे संसद की जगह सड़क पर चुनौती दी जा रही है. इसके बावजूद ये विरोध कितना सही है या गलत इसका फैसला आप कर सकें. इसके लिए हम आपको दस साल पीछे ले जाना चाहते हैं.

 शरद पवार 10 वर्ष पहले इन्हीं सुधारों की बात कर रहे थे
वर्ष 2010 में देश में यूपीए की सरकार थी. कृषि मंत्री शरद पवार थे. तब उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखे थे. इन पत्रों में शरद पवार ने मुख्यमंत्रियों से मंडी कानून में बदलाव करने की अपील की थी. किसानों को अपनी वस्तुएं कहीं भी बेचने की छूट देने की बात कही थी. मौजूदा कृषि कानून में वही सुधार किए गए हैं. जिनकी बात शरद पवार 10 वर्ष पहले कह रहे थे. लेकिन आज शरद पवार कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं.

ऐसे में ये सवाल सबके मन में उठता है कि क्या राजनीतिक फायदे के लिए देश के किसानों का इस्तेमाल किया जा रहा है. क्या संविधान को संसद की जगह सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया गया है.

विरोधाभास की लाइन
अब हम आपके साथ पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का एक ट्वीट शेयर करेंगे. जो 27 जुलाई 2016 को लिखा गया था. पंजाब में तब अकाली दल की सरकार थी. इस ट्वीट में अमरिंदर सिंह ने लिखते हैं कि यदि अकाली दल की सरकार Retail Agri Business Project को ​कैंसिल नहीं करती तो पंजाब के किसानों की आमदनी तीन गुना हो जाती. अगस्त 2006 में पंजाब के मुख्यमंत्री और एक बड़े कॉर्पोरेट घराने के बीच समझौता हुआ था. इसमें कंपनी किसानों से 3000 करोड़ के एग्री प्रोडक्ट्स खरीदती. तब सरकार ने कहा था कि इससे 1 लाख 50 हजार किसानों को फायदा मिलेगा और किसानों की आय तीन गुना हो जाएगी. लेकिन वर्ष 2009 में प्रदेश की अकाली दल सरकार ने इसे रद्द कर दिया था. यानी जो अमरिंदर सिंह आज किसानों के लिए नए कानून का विरोध कर रहे हैं. वो खुद किसानों के लिए वैसी ही सुविधा देने का प्रोजेक्ट लाए थे. ऐसे विरोधाभास की लाइन लगी है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसान बिलों के खिलाफ धरने पर बैठे किसानों से मिलने सिंघु बॉर्डर गए. लेकिन दिल्ली सरकार ने 23 नवंबर 2020 को एक दस्तावेज जारी किया था. इसके मुताबिक, केन्द्र सरकार का कृषि कानून दिल्ली में लागू हो चुका है.

अब आप समझ सकते हैं कि किसानों के साथ खड़ी राजनीतिक पार्टियां कैसे अपने लिए ज़मीन तैयार कर रही हैं.

देश विरोधी ताकतें, किसान आंदोलन की आड़ में देश को कमजोर कर रहीं
अब हम देश के किसानों को सावधान के करने के लिए कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका से आ रही समर्थन की आवाजों का सच दिखाना चाहते हैं. हमने बार बार बिना डरे देश को ये बताया कि किसान आंदोलन में कैसे खालिस्तानी घुसपैठ हो रही है. विदेश में देश विरोधी ताकतें, किसान आंदोलन की आड़ में देश को कमजोर कर रही हैं. पर लोगों ने हमें ही गलत साबित करना चाहा. उनके लिए देश की संप्रभुता से महत्वपूर्ण कनाडा के प्रधानमंत्री हो गए. जिनका नाम जस्टिन ट्रूडो है. उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन किया था. लेकिन जब कनाडा में लोग अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करते हैं, तब जस्टिन ट्रूडो के विचार बदल जाते हैं.

इसी वर्ष फरवरी में कनाडा की सड़कों पर लोग प्रदर्शन कर रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने रेलवे क्रॉसिंग्स को बंद कर दिया गया था. ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित थी. धीरे धीरे ये प्रदर्शन कनाडा के कई शहरों में फैल गया. जस्टिन ट्रूडो आज भारत में प्रदर्शन की वकालत कर रहे हैं. लेकिन इसी वर्ष फरवरी में कनाडा में हो रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को उन्होंने अस्वीकार्य बताया था. 

किसान आंदोलन के विदेशी समर्थन की सच्चाई
रविवार को लंदन में भारतीय हाई कमीशन के सामने किसानों के समर्थन में एक रैली निकाली गई और यहां भी खालिस्तान समर्थन के पोस्टर दिखाई दिए. भारत के विरोध में नारे भी लगाए गए. आज आपको इन नारों को भी सुनना चाहिए ताकि किसान आंदोलन के विदेशी समर्थन की सच्चाई आप समझ सकें.

अब हमको किसानों के समर्थन में 3 दिसंबर को लिखे गए एक पत्र की जानकारी देना चाहते हैं. इसमें ब्रिटेन के 36 सांसदों के हस्ताक्षर हैं. इन्हें भी भारत में किसानों के प्रदर्शन की बहुत चिंता है.

इस पत्र में ब्रिटेन के जिन सांसदों ने दस्तखत किए हैं उनमें सबसे पहला नाम लेबर पार्टी की सासंद डेबी अब्राहम्स का है. लेबर पार्टी की ये वही सासंद हैं, जिन्होंने पीओके के दौरे के लिए 30 लाख पाकिस्तानी रुपए लिए थे. जिसके बदले उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार के हनन का मुद्दा उठाया था. इस पत्र में लेबर पार्टी के सांसद जेरेमी कॉर्बिन का भी नाम शामिल है. जो जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने का लगातार विरोध करते रहे हैं. चिट्ठी में ज्यादातर उन सांसदों का नाम है जो भारत विरोध के लिए जाने जाते हैं.

कल हरियाणा के किसान संगठनों ने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मुलाकात की. Farmer Producer Organization यानी FPO की तरफ से कृषि मंत्री को एक पत्र सौंपा गया है. जिसमें कहा गया कि वो कृषि कानूनों के समर्थन में हैं. पत्र में ये भी कहा गया कि किसान संगठनों द्वारा सुझाए गए. कुछ संशोधनों के साथ इस कृषि कानून को जारी रखा जाए.

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