DNA ANALYSIS: New Zealand में सांसद की संस्कृत में शपथ, हम इस भाषा को क्यों भूल रहे हैं?
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DNA ANALYSIS: New Zealand में सांसद की संस्कृत में शपथ, हम इस भाषा को क्यों भूल रहे हैं?

भारत में अक्सर अंग्रेजी बोलने वाले व्यक्ति को विद्वान समझा जाता है. हिंदी बोलने वाले लोगों को पिछड़ा हुआ माना जाता है और अगर कोई व्यक्ति संस्कृत (Sanskrit) भाषा में बोले तो हमारे समाज के कुछ लोग उन्हें कट्टर हिंदूवादी मानेंगे.

DNA ANALYSIS: New Zealand में सांसद की संस्कृत में शपथ, हम इस भाषा को क्यों भूल रहे हैं?

नई दिल्ली: भारत में अक्सर अंग्रेजी बोलने वाले व्यक्ति को विद्वान समझा जाता है. हिंदी बोलने वाले लोगों को पिछड़ा हुआ माना जाता है और अगर कोई व्यक्ति संस्कृत (Sanskrit) भाषा में बोले तो हमारे समाज के कुछ लोग उन्हें कट्टर हिंदूवादी मानेंगे. हमारे देश में अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा और प्रांतीय भाषाओं से ऊपर जगह दी जाती है और अंग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ मानने की यही मानसिकता हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था को भी खोखला कर रही है.

संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी यानी मां कहा जाता है. हिंदी सहित कई और भाषाओं का जन्म संस्कृत से ही हुआ है. इसके बाद भी हमारे देश में संस्कृत को महत्व नहीं दिया जाता है.

लेकिन आज हम आपको भारत से 12 हज़ार किलोमीटर दूर न्यूजीलैंड (New Zealand) की संसद से आई एक तस्वीर के बारे में बताना चाहते हैं. जहां भारतीय मूल के एक सांसद डॉक्टर गौरव शर्मा (Dr. Gaurav Sharma) ने संस्कृत भाषा में शपथ ली. 33 वर्ष के गौरव शर्मा हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर ज़िले से हैं. वह न्यूजीलैंड की संसद के सबसे युवा सांसदों में से एक हैं.

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गौरव शर्मा न्यूज़ीलैंड की हैमिल्टन वेस्ट सीट से चुने गए हैं. उन्होंने पहले न्यूजीलैंड की मूल भाषा में शपथ ली और उसके बाद संस्कृत भाषा में शपथ ली. गौरव शर्मा के मुताबिक भारत से बाहर संस्कृत में शपथ लेने वाले वो दूसरे व्यक्ति हैं और उनसे पहले सूरीनाम के राष्ट्रपति ने ऐसा किया था.

गौरव शर्मा से ट्विटर पर एक व्यक्ति ने पूछा कि उन्होंने शपथ हिंदी भाषा में क्यों नहीं ली? इस पर गौरव शर्मा ने जवाब दिया कि उन्होंने अपनी पहली भाषा पहाड़ी या पंजाबी में शपथ लेने पर विचार किया था. लेकिन सभी को खुश रखना मुश्किल है. संस्कृत से सभी भारतीय भाषाओं का आदर होता है, इनमें वो भाषाएं भी शामिल हैं, जो उन्हें बोलनी नहीं आती हैं. इसलिए उन्होंने संस्कृत को चुना.

कांग्रेस के MLA शकील अहमद ख़ान ने भी ली संस्कृत भाषा में शपथ
पिछले हफ्ते बिहार में भी कांग्रेस के MLA शकील अहमद ख़ान ने संस्कृत भाषा में शपथ ली थी.

शकील अहमद ख़ान का भी कहना है कि संस्कृत से ही सभी भाषाओं की शुरुआत हुई है और संस्कृत में शपथ लेकर उन्होंने कथित तौर पर हिंदू और मुसलमानों पर राजनीति करने वाली पार्टियों को एकता का संदेश दिया है.

संस्कृत के संस्कार की एक और तस्वीर कुछ दिनों पहले दक्षिण अमेरिका के एक देश सूरीनाम से भी आई थी. भारतीय मूल के चंद्रिका प्रसाद संतोखी इसी वर्ष जुलाई में सूरीनाम के राष्ट्रपति चुने गए थे और शपथ-ग्रहण के दौरान उन्होंने अपने हाथ में वेद लेकर संस्कृत भाषा को सम्मान दिया था.

भाषा की मदद से आज भी भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए...
सूरीनाम की जनसंख्या लगभग 6 लाख है और वहां का हर तीसरा व्यक्ति भारतीय मूल का है. इन लोगों को लगभग दो सौ वर्ष पहले अंग्रेज़ भारत से सूरीनाम और आस-पास के देशों में लेकर आए थे और संस्कृत भाषा की मदद से ही ये लोग आज भी भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए हैं.

हालांकि भारत में सारा ज़ोर अंग्रेज़ी सीखने पर दिया जाता है. हमारे देश के बच्चों की पूरी ऊर्जा एक विदेशी भाषा के अध्ययन में ही ख़र्च हो रही है. सच्चाई ये है कि मातृभाषा के ज्ञान से पहले अंग्रेजी सीखने वाला व्यक्ति मौलिक विचारों से दूर हो जाता है.

देवताओं की भाषा संस्कृत
संस्कृत से भारत की दूसरी भाषाओं के साथ साथ  महान विचारों की भी शुरुआत हुई है. उदाहरण के लिए अहिंसा, एक संस्कृत शब्द है, संस्कृत में कहा जाता है अहिंसा परमो धर्म. यानी अहिंसा की सबसे बड़ा धर्म है. महात्मा गांधी ने अहिंसा की मदद से ही अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया था. प्राचीन भारत में विद्वान संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते थे और इसे देव-भाषा यानी देवताओं की भाषा भी कहा जाता है.

हिंदू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी संस्कृत को विद्वानों की भाषा माना गया है.

दुनिया के सबसे पुराने साहित्य ऋग वेद, साम वेद, अथर्व वेद और यजुर वेद संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं.

सिर्फ 24 हज़ार लोगों का संस्कृत को मातृभाषा मानना सोचने का विषय
वर्ष 2001 में देश के 14 हज़ार से अधिक लोग संस्कृत को अपनी मातृ-भाषा मानते थे. हालांकि वर्ष 2011 में ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 24 हज़ार से ज़्यादा हो गई. यानी संस्कृत के लिए ये एक अच्छी ख़बर है. लेकिन ये संख्या अब भी बहुत कम है जिस देश की बोल चाल और साहित्य की भाषा कभी संस्कृत हुआ करती थी. उस देश में सिर्फ 24 हज़ार लोगों का संस्कृत को मातृभाषा मानना सोचने का विषय है.

भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक
अगर आप ये मानते हैं कि संस्कृत एक प्राचीन यानी पुरानी भाषा है और ये आउटडेटेड हो चुकी है, तो इस विचार को बदल दीजिए. एक स्टडी के मुताबिक संस्कृत बोलने और सीखने से मस्तिष्क ज्यादा बेहतर तरीके से काम करता है. इससे याददाश्त भी तेज़ होती है. यानी संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को गणित और विज्ञान जैसे विषयों में भी मदद मिल सकती है.

संस्कृत एक प्रकार से भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक है.

जर्मनी के 14 विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है...
जर्मनी के 14 विश्वविद्यालयों और ब्रिटेन की चार यूनिवर्सिटीज में संस्कृत पढ़ाई जाती है. हर वर्ष इन यूनिवर्सिटीज में दुनिया भर के छात्र दाखिला लेते हैं.

भारत के अलावा चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया, यूरोप और अमेरिका सहित दुनिया के 17 देशों में संस्कृत पढ़ाई जाती है.

चीन, तिब्बत, थाईलैंड और इंडोनेशिया की भाषाओं में भी संस्कृत से मिलते जुलते शब्द हैं.

अब हम आपको ब्रिटेन की रहने वाली ग्रैब्रिएला के एक वीडियो के बारे में बताना चाहते हैं. उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ओरिएंटल स्टडीज में डिग्री ली है. उनका एक वीडियो है जिसमें वो संस्कृत के श्लोक गा रही हैं और ये वीडियो पूरी दुनिया में बहुत मशहूर हुआ है. ये वीडियो विदेशें में संस्कृत की लोकप्रियता को दिखाता है. 

कहते हैं नई भाषा सीखने की कोई उम्र नहीं होती है. इसलिए अगर आप भी चाहें तो आज से अंग्रेजी की गुलामी छोड़कर संस्कृत को सीखने की कोशिश कर सकते हैं.

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