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नई दिल्ली: तालिबान (Taliban) ने कल कहा था कि इस बार के उसके शासन में महिलाओं को ज्यादा आजादी और इस्लाम के मुताबिक अधिकार दिए जाएंगे, लेकिन कुछ ही घंटों में तालिबान एक्सपोज हो गया. वहां एक महिला को सिर नहीं ढंकने पर मार दिया गया. इन हालातों से एक बार फिर वहां की महिलाओं को लेकर चिंता लाजमी है.
अफगानिस्तान (Afghanistan) के बल्ख प्रांत की महिला गवर्नर सलीमा मजारी को तालिबान के आतंकवादियों ने बन्धक बना लिया है. सलीमा मजारी ने कुछ दिन पहले कहा था कि वो तालिबान के डर से अफगानिस्तान छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी. लेकिन उन्हें दुनिया ने अकेला छोड़ा दिया और अब कोई नहीं जानता कि वो जिन्दा हैं या उन्हें मार दिया गया. वहीं आज तालिबान ने अफगानिस्तान में एक महिला की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसने अपने घर से बाहर निकलते वक्त हिजाब नहीं पहना था. इससे पता चलता है कि तालिबान का शासन आने से अफगानिस्तान में महिलाओं का दमन बढ़ जाएगा और उनकी हत्याएं होंगी.
दुनिया की 775 करोड़ की आबादी में महिलाओं की आबादी 382 करोड़ है. आज इन 382 करोड़ महिलाओं को अफगानिस्तान की पौने दो करोड़ महिलाओं की आजादी के लिए एकता दिखानी होगी.आज जब हम अफगानिस्तान की महिलाओं के बारे में सोचते हैं तो जो पहली तस्वीर हमारे दिमाग में आती है, उसमें महिलाएं सिर से पैर तक नीले और काले बुर्के में होती हैं लेकिन अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति हमेशा से ऐसी नहीं थी.
1960 और 1970 के दशक में अफगानिस्तान महिलाओं को लेकर काफी उदार था. उस समय वहां महिलाएं Skirts पहन सकती थीं. दफ्तर जा सकती थीं. अस्पतालों में काम कर सकती थीं. अपने दोस्तों के साथ पार्क में घूमने जा सकती थीं और उन्हें फिल्में देखने की भी इजाजत थी. ये बात उस समय की है, जब अफगानिस्तान पर तालिबान जैसी मुजाहिदीन ताकतें हावी नहीं थीं. वर्ष 1979 में जब सोवियत संघ ने तख्तापलट करते हुए अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट सरकार बनवाई, तब भी महिलाओं पर ज्यादा पाबंदियां नहीं थी. लेकिन 1990 के दशक में सबकुछ बदल गया. 1996 में तालिबान की सरकार बनने के बाद महिलाओं पर शरिया कानून थोप दिए गए और जिन लड़कियों ने इसका विरोध किया, उनकी हत्या कर दी गई या उनका वर्षों तक दमन किया गया.
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शरिया कानून के तहत बुर्का और हिजाब नहीं पहनने पर उस समय चौराहों पर महिलाओं को कोड़े मारने की सजा भी दी गई. लेकिन दुनिया ने कभी इन महिलाओं के दर्द को नहीं समझा और महिलाओं के उत्थान और अधिकारों की बातें करने वाली अंतराष्ट्रीय संस्थाएं, नेता और एनजीओ ने भी कभी इस पर कुछ नहीं कहा और स्थिति आज भी वैसी है. आज कई देश ये कह रहे हैं कि महिलाओं को लेकर तालिबान का रुख बदला है. तालिबान ने कहा है कि वो महिलाओं को आजादी देगा. बुर्के की अनिवार्यता को खत्म कर देगा, लेकिन हिजाब जरूरी होगा. इस्लाम के मुताबिक महिलाओं को काम करने के अवसर भी दिए जाएंगे. और लड़कियों को पढ़ने लिखने से भी नहीं रोका जाएगा. लेकिन तालिबान ये आजादी कुछ शर्तों के साथ देगा.
महिलाओं की आजादी के लिए तालिबान की शर्त ये है कि ये आजादी इस्लाम के हिसाब से मिलेगी. यानी देर सवेर महिलाओं को शरिया कानून मानने ही होंगे और जो नहीं मानेगा उसकी हत्या कर दी जाएगी. तालिबान का खौफ अफगानिस्तान की महिलाओं में साफ देखा जा सकता है. अफगानिस्तान की एक लड़की ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है. इसमें ये लड़की रोते हुए कह रही है कि दुनिया ने उन्हें तालिबान के सामने मरने के लिए छोड़ दिया है.
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तालिबान ने रंग दिखाना शुरू किया
आज अफगानिस्तान के सरकारी न्यूज चैनल की महिला एंकर शबनम दरवान को तालिबानियों ने यह कहते हुए काम करने से रोक दिया कि अब सत्ता बदल गई है तुम घर जाओ. महिला पत्रकार का आरोप है कि उसने हिजाब भी पहना था और उसके पास आईडी कार्ड भी था लेकिन फिर भी उसे काम करने से तालिबानियों ने रोक दिया. आज अफगानिस्तान में महिला पत्रकार स्टूडियो और सड़क से तालिबान पर रिपोर्टिंग तो कर रही हैं, लेकिन उनके मन में ये डर भी है कि कहीं उनकी 20 साल की मेहनत को तालिबान की नजर ना लग जाए.
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