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नई दिल्ली: आज DNA में हम सबसे पहले आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं और वो ये कि आपके पड़ोस में कौन रहता है?. कल्पना कीजिए कि एक दिन आप सुबह सोकर उठते हैं. फिर चाय पीते हैं और चाय पीने के बाद टहलने के लिए घर से बाहर चले जाते हैं, लेकिन जैसे ही आप अपने घर का गेट खोलते हैं तो बाहर अंधाधुंध गोलियां चलने लगती हैं.
ऐसी स्थिति में आप यही सोचेंगे कि अचानक से यहां क्या हो गया, लेकिन सोचिए इस दौरान जब आपको ये पता चलेगा कि ये गोलियां आपके पड़ोस में रहने वाले लोग चला रहे हैं तो आपका क्या हाल होगा?
मुमकिन है कि आप बुरी तरह डर जाएंगे और ये डर आपको इसी सवाल पर ले आएगा कि आपके पड़ोस में कौन लोग रहते हैं? कोलकाता में भी कुछ ऐसा ही हुआ. 9 जून को कोलकाता के सबसे सुरक्षित इलाक़ों में से एक न्यू टाउन के एक रिहायशी इलाक़े में अंधाधुंध गोलियां चलने लगीं. इस पूरे कॉम्प्लेक्स में साढ़े 22 हज़ार फ्लैट हैं, जिनमें लगभग एक लाख लोग रहते हैं. ऐसे में गोलियां चलने से इलाक़े के लोग डर गए.
जब काफ़ी देर बाद गोलियां का शोर थमा तो लोगों को पता चला कि वहां सोसाइटी में उनके बीच लगभग 2 हज़ार किलोमीटर दूर पंजाब से आए दो बड़े गैंगस्टर छिपे हुए थे. इनमें एक गैंगस्टर का नाम था जयपाल भुल्लर, जिस पर 10 लाख रुपये का इनाम था और दूसरे गैंगस्टर का नाम था जसप्रीत जस्सी, जिस पर पांच लाख रुपये का इनाम था. ये दोनों इनामी बदमाश इस सोसाइटी में पांच पिस्तौल और ज़िन्दा कारतूस के साथ रह रहे थे.
सोचिए, किसी को पता भी नहीं था कि उनकी सोसाइटी के एक फ्लैट में इतनी गोलियां रखी हैं कि बदमाश काफ़ी देर तक पुलिस से मुठभेड़ कर सकते हैं और इसकी उम्मीद भी नहीं की जाती. आज कल के दौर में पड़ोस और पड़ोसियों की जानकारी रखना बुरा माना जाता है, लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था. पहले लोग पड़ोसियों से परिचित होते थे और उन्हें अपने सुख दुख का साथी मानते थे. अब ऐसा नहीं है.
आज का दौर ऐसा है कि बहुत से लोग ये नहीं जानते कि उनके पड़ोस में आखिर रहता कौन है? और ये बहुत ख़तरनाक हो सकता है.
हम इस एनकाउंटर की पूरी कहानी आपको बताएंगे लेकिन पहले आपको कुछ आंकड़े बताते हैं.
-भारत के शहरी इलाक़ों में 28 प्रतिशत लोग किराए के मकान में रहते हैं.
-वर्ष 1961 में यानी भारत को आज़ाद हुए जब 14 वर्ष हुए तो तब ये आंकड़ा 54 प्रतिशत था. ((Economic Survey 2017-18))
-यानी तब के मुक़ाबले आज ऐसे लोगों की संख्या कम हुई है, जो किराए पर रहते हैं क्योंकि, अब शहरों में बसे लोगों ने अपना वहीं घर खरीद लिया है.
-हालांकि आज भी नौकरी के लिए गांवों से शहर आने वाले लोग, पढ़ाई के लिए आने वाले छात्र और कई परिवार दूसरे कारणों से अलग अलग शहरों में जाकर रहते हैं और उनका पहला ठिकाना किराए का मकान होता है, लेकिन क्या सभी किराएदारों की वेरिफिकेशन कभी हो पाती है.
इसे आप चाहें तो दिल्ली के कुछ आंकड़ों से इसे समझ सकते हैं.
-वर्ष 2020 में दिल्ली में तीन हज़ार 440 मकान मालिकों पर इसलिए केस दर्ज हुआ था क्योंकि, उन्होंने अपने किराएदारों की पुलिस वेरिफिकेशन नहीं कराई थी.
-इसके अलावा ऐसे 226 लोगों पर केस दर्ज हुआ था, जिन्होंने घर में काम करने वाले लोगों की Police Verification नहीं कराई थी.
-और 26 कैफे ओनर्स पर इसलिए कार्रवाई हुई थी क्योंकि, उन्होंने बिना वेरिफिकेशन के बिना लोगों को कैफे में इंटरनेट इस्तेमाल करने दिया.
संभव है कि आज आपमें से बहुत से लोगों को ऐसा लग रहा हो कि ये तो कभी न कभी आपने भी किया है, लेकिन एक बार के लिए सोचिए कि अगर इस वजह से किसी आतंकवादी को घर किराए पर मिल जाए, वो किसी घर में नौकर बन कर काम करने लगे या बिना वेरिफिकेशन के किसी कैफे में इंटरनेट इस्तेमाल करे और हमले की योजना बनाए तो क्या होगा?
इससे ऐसे लोगों को हमारे देश में रह कर हम पर हमले करने में आसानी होगी और ऐसा होता भी है. हमारे पास ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें वर्ष 2008 का बाटला हाउस एनकाउंटर प्रमुख है. हम इसके बारे में भी आपको बताएंगे लेकिन पहले आपको कोलकाता में हुए इस एनकाउंटर की पूरी कहानी बताते हैं.
इस एनकाउंटर में मारे गए पहले गैंगस्टर का नाम है जयपाल भुल्लर उर्फ़ मनजीत सिंह. इस गैंगस्टर पर देशभर में 50 से ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं. पंजाब और राजस्थान में इस पर बैंक लूटने के केस दर्ज हैं और आरोप है कि 15 मई को इसने पंजाब में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.
इस घटना के बाद ही ये गैंगस्टर पंजाब पुलिस से भाग कर कोलकाता आ गया था और उसने यहां छिपने के लिए एक ऐसा रिहायशी कॉम्प्लेक्स चुना, जहां इस पर कोई शक नहीं कर सकता था और ऐसा हुआ भी. ये कुछ दिनों तक वहां अपने साथी के साथ आराम से रहा और पकड़ में नहीं आया. यहां तक कि इसके पड़ोस में रहने वाले लोगों को भी इसकी ज़रा भी भनक नहीं थी कि ये एक गैंगस्टर है.
आप सोच रहे होंगे कि पुलिस से भाग रहे एक इनामी बदमाश को वीआईपी इलाके में फ्लैट किराए पर कैसे मिल गया?
तो इस काम में एक ब्रोकर ने उसकी मदद की. ब्रोकर ने किराए पर ये फ्लैट तो सुमित नाम के एक शख़्स को दिलाया, लेकिन यहां पर ये दोनों गैंगस्टर रहे थे. इस दौरान इन गैंगस्टर्स के पास 7 लाख रुपये, 5 पिस्तौल और ज़िन्दा कारतूस थे, लेकिन उन्होंने आसानी से सिस्टम की आंखों में धूल झोंकी दी. हालांकि पुलिस को बाद में इसकी ख़बर मिली और मुठभेड़ में दोनों गैंगस्टर मारे गए.
यहां एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि एनकाउंट में मारा गया गैंगस्टर जयपाल भुल्लर उर्फ़ मनजीत सिंह एक ज़माने में हैमर थ्रो में राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी रह चुका है. उसके पिता पंजाब पुलिस में रिटायर्ड इंस्पेक्टर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद वो ग़लत रास्ते पर निकल गया और कई बार जेल भी गया. लेकिन इस बार उसने जो किया, वो डराने वाला था.
सोचिए, साढ़े 22 हज़ार फ्लैट्स में रहने वाले लोग गोलियों की आवाज़ें सुन रहे थे और उन्हें बाद में यही अफसोस हो रहा था कि आख़िर उन्हें कैसे पता नहीं चला कि उनके पड़ोस में कौन रहता है.
कुछ दिनों पहले मुम्बई में घर किराए पर दिलाने वाले ब्रोकर्स पर एक सर्वे किया गया था. इस सर्वे में पता चला था कि सिर्फ़ 20 प्रतिशत ब्रोकर्स ही किराएदारों की पुलिस वेरिफिकेशन कराते हैं
हमें लगता है कि बाकी किराएदारों की पुलिस वेरिफिकेशन नहीं कराना आम नागरिकों की सुपारी देने के जैसा है क्योंकि, इस लावपरवाही के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं. जैसे
-एक आतकंवादी को रहने के लिए घर मिल सकता है.
-एक बदमाश आसानी से पुलिस की नज़रों से छिप सकता है.
-ऐसे लोग, जिन पर इनाम है और जो फरार हैं, वो छिप सकते हैं.
-और बड़ी बात ऐसे लोगों के पास काफ़ी हथियार और गोलियों हो सकती हैं.
जो किसी भी समाज में शांति भंग करने के लिए काफ़ी हैं और ऐसा पहले हो भी चुका है. हम आपको कुछ उदाहरण बताते हैं.
-इसी साल मार्च के महीने में दिल्ली में कुख्यात गैंगस्टर कुलदीप मान उर्फ़ फज्जा एक रिहायशी अपार्टमेंट में हथियार के साथ छिपा हुआ था. तब पड़ोस में रहने वालों को इसकी ज़रा सी भी ख़बर नहीं थी कि उनके यहां एक कुख्यात अपराधी रह रहा है, जो तीन दिन पहले ही पुलिस की कस्टडी से फरार हुआ था. हालांकि पुलिस छानबीन करती हुई, उस तक पहुंची और एनकाउंटर में ये गैंगस्टर मारा गया.
-मार्च 2020 में भी दिल्ली का गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ़ गोगी गुरुग्राम के एक रिहायशी इलाक़े में छिपा हुआ था. तब भी इलाक़े के लोगों को इसकी कोई ख़बर नहीं थी. उन्हें तो इसका तब पता चला जब वहां एनकाउंटर के दौरान गोलियों की आवाज़ सुनी गईं. इस एनकाउंटर में पुलिस को इस गैंगस्टर के पास से 6 पिस्तौल और 70 ज़िन्दा कारतूस बरामद हुए थे. यानी रिहायशी इलाक़े में मौत का सामान रखा हुआ था.
-वर्ष 2008 के बाटला हाउस एनकाउंटर से भी ऐसा ही हुआ था. तब सितम्बर 2008 में चार आतंकवादी दिल्ली के जामिया नगर की बाटला हाउस बिल्डिंग में छिपे हुए थे. इन आतंकवादियों ने 13 सितम्बर को ही दिल्ली में बम धमाके किए थे और इन बम धमाकों के बाद ये सभी आतंकी चैन से जामिया नगर में एक फ्लैट में किराए पर रह रहे थे. 19 सितम्बर को जब पुलिस को इन आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली तो पुलिस की टीम वहां पहुंची और इस दौरान पुलिस और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई.
उस समय इस मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए थे और दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए थे.
कहने का मतलब ये है कि ये आतंकी और गैंगस्टर रिहायशी इलाक़ों में इसलिए छिपते हैं ताकि ये पुलिस की दबिश होने पर आम नागरिकों की आड़ लेकर वहां से भाग सकें या खुद को बचाने के लिए आम लोगों को अपनी ढाल बना सकें. ये बात हम इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि, बाटला हाउस एनकाउंटर के दौरान ऐसा ही हुआ था. तब 2 आतंकी मुठभेड़ से बच कर भाग निकले थे, लेकिन बाद के वर्षों में ये पकड़े गए.
ये तमाम घटनाएं हमें उसी सवाल पर लेकर आती हैं कि क्या आपको पता है कि आपके पड़ोस में कौन रहता है?
क्योंकि, अगर कोलकाता की इस मुठभेड़ में इन गैंगस्टर को फ्लैट किराए पर देने से पहले जांच की गई होती, सही से पुलिस वेरिफिकेशन होती तो शायद ये वहां छिपते ही नहीं और मुठभेड़ के दौरान इतने लोगों की जान जोखिम में नहीं आती.