DNA ANALYSIS: स्‍वेज नहर में विश्‍व के सबसे महंगे जाम से Egypt को कितना नुकसान, आंकड़ों से समझिए
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DNA ANALYSIS: स्‍वेज नहर में विश्‍व के सबसे महंगे जाम से Egypt को कितना नुकसान, आंकड़ों से समझिए

Suez Canal: हर रोज स्वेज नहर से लगभग 70 हजार करोड़ रुपये का सामान गुजरता है. इसका सरल मतलब हुआ, हर मिनट में 50 करोड़ रुपये के सामान की आवाजाही इस नहर से होती है और इससे मिस्र को प्रतिदिन 102 करोड़ रुपये की कमाई होती है. 

DNA ANALYSIS: स्‍वेज नहर में विश्‍व के सबसे महंगे जाम से Egypt को कितना नुकसान, आंकड़ों से समझिए

नई दिल्‍ली: आज हम भारत से लगभग साढ़े चार हज़ार किलोमीटर दूर मिस्र की स्वेज नहर में लगे सबसे महंगे ट्रैफिक जाम के बारे में आपको बताएंगे. स्वेज नहर में फंसा 400 मीटर लम्बा समुद्री जहाज अब पूरी तरह निकल चुका है और उम्मीद है कि अब नहर के उत्तरी और दक्षिणी छोर पर फंसे दूसरे समुद्री जहाजों की आवाजाही फिर से शुरू हो जाएगी. हालांकि अब भी इसमें कुछ समय लग सकता है क्योंकि,  इस नहर की गहराई और चौड़ाई ज्‍यादा नहीं है. 

  1. स्वेज नहर लगभग 150 साल पुरानी है.
  2. जिस रेगिस्तानी इलाके में ये नहर मौजूद है, वहां नहरों का इतिहास हजारों वर्षों से भी ज्‍यादा पुराना है.
  3. कई इतिहासकारों का मानना है कि इस इलाके में पहली नहर 1850 ईसा पूर्व में बनाई गई थी. 
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कच्चे तेल के कारोबार में उथल-पुथल

आज हम इस नहर में लगे ट्रैफिक जाम का सम्पूर्ण विश्लेषण करेंगे और आपको ये भी बताएंगे कि दुनिया और खास कर भारत इससे क्या सीख सकता है क्योंकि, ये वो नहर है जिसमें सिर्फ एक जहाज के फंसने से दुनियाभर के कुल व्यापार का 10 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित हुआ है और मिस्र को पिछले 7 दिनों में 700 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हो चुका है. यानी इस ट्रैफिक जाम की कीमत हर दिन लगभग 100 करोड़ रही है और सबसे ज्‍यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि इस एक नहर के बंद होने से कच्चे तेल के कारोबार में उथल पुथल मची हुई है, जिसका असर आप पर भी पड़ सकता है.

विश्‍व का सबसे महंगा जाम

सबसे पहले इस जहाज और ट्रैफिक जाम से जुड़ी कुछ खास बातें आपको बता देते हैं-

-जिस जहाज की वजह से स्‍वेज नहर में जाम लगा था, वो अब निकल चुका है. इस जहाज का नाम है, Ever Given है और ये जापान की कंपनी Evergreen Marine Corps का जहाज है, जिस पर 25 भारतीयों का एक क्रू भी सवार है. यानी भारत का इस जहाज से सीधा-सीधा कनेक्शन है.

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-ऐसा अनुमान था कि इस जहाज को निकलने में कई हफ्ते लगेंगे, जिससे यूरोप और एशिया के बीच होने वाला व्यापार तो प्रभावित होता ही साथ ही कच्चे तेल की कीमतें भी बढ़ जातीं, लेकिन बड़ी बात ये है कि सिर्फ 7 दिनों में ही ये जहाज वहां से निकल गया.

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-इसे निकालने के लिए 13 टग बोट्स की मदद ली गई. टग बोट छोटी लेकिन काफी शक्तिशाली नाव होती है, जो बड़े-बड़े जहाजों को खींच कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं. इसके अलावा इसे निकालने के लिए खास मशीनों का भी इस्तेमाल हुआ, जिन्होंने जहाज के नीचे से 30 हजार क्यूबिक मीटर मिट्टी और रेत खोदकर निकाली.

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-हालांकि नहर में फंसे इस जहाज को बाहर निकालने में ऊंची लहरें सबसे ज्‍यादा मददगार साबित हुईं. वो इसलिए क्योंकि, समुद्र में हाई टाइड आया हुआ था और जब ऐसा होता है तो समुद्र के पानी का स्तर बढ़ जाता है और ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगती हैं. इसी से ये जहाज जिस जगह पर धंसा हुआ था, वहां से ऊपर उठ कर तैरने लगा है और अब ये पूरी तरह बाहर निकल चुका है.

Statue of Liberty से चार गुना बड़ा जहाज 

ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस जहाज को सीधी दिशा में खड़ा करना आसान नहीं था और इसकी वजह है इसकी लंबाई थी, जो 400 मीटर है यानी लगभग आधा किलोमीटर से कुछ ही कम. अगर इस जहाज को आसमान की तरफ सीधा करके खड़ा कर दें, तो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा Statue of Unity से ये दो गुना और Statue of Liberty से ये चार गुना बड़ा है. 

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आंकड़ों से समझिए मिस्र को कितना नुकसान

स्वेज नहर से इसके निकल जाने के बाद भी अभी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं क्योंकि, अब भी 400 से ज्‍यादा जहाज इस नहर से निकलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि, इस नहर की कुल लम्बाई 194 किलोमीटर है. ऐसे में दिनभर में सिर्फ 50 जहाज ही यहां से निकल सकते हैं. यानी फंसे हुए सभी जहाजों को निकलने में एक और हफ्ते का समय लग सकता है, जिससे मिस्र को काफी आर्थिक नुकसान होगा. इसे आप कुछ आंकड़ों से समझिए-

-हर रोज स्वेज नहर से लगभग 70 हजार करोड़ रुपये का सामान गुजरता है.

-इसका सरल मतलब हुआ हर मिनट में 50 करोड़ रुपये के सामान की आवाजाही इस नहर से होती है और इससे मिस्र को प्रतिदिन 102 करोड़ रुपये की कमाई होती है.

-यानी ये नहर मिस्र के लिए नोट छापने वाली किसी मशीन की तरह है और जिस तरह मशीन खराब हो जाए तो नोट छपना बंद हो जाते हैं, ठीक उसी तरह मिस्र को भी इस नहर के जाम होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है.

-अनुमान है कि पिछले 7 दिनों में मिस्र को लगभग 714 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जो और भी बढ़ सकता है. 

स्‍वेज नहर भारत के लिए क्‍यों महत्‍वपूर्ण?

ये नहर भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और यूरोप कॉन्टिनेंट से आने वाले जहाज इसी नहर से होकर गुजरते हैं और स्वेज नहर से भारत हर साल लगभग 14 लाख करोड़ रुपये का आयात निर्यात करता है. इनमें कच्चे तेल के अलावा, कपड़े, गाड़ियां, मशीनें और केमिकल्‍स अहम हैं. यानी इस ट्रैफिक जाम की वजह से इन चीजों की कमी हो सकती है और इनकी कीमतें भी आसामन छू सकती हैं. यानी सीधे सीधे इस ट्रैफिक जाम का असर आपकी जेब पर भी पड़ सकता है.

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अगर अभी कोई जहाज लंदन से मुंबई के लिए निकलता है तो उसे स्वेज नहर के रास्ते भारत आने के लिए 11 हजार 600 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना होगा, लेकिन अगर ये नहर बंद हो जाती है तो इसी जहाज के लिए ये दूरी 11 हजार से बढ़ कर 19 हजार 800 किलोमीटर हो जाएगी. इससे सफर न सिर्फ लगभग 8 हजार किलोमीटर लंबा हो जाएगा, बल्कि जहाज को मुंबई पहुंचने में 7 से 15 दिन ज्‍यादा लगेंगे. 

यानी ये नहर दूसरे देशों के साथ भारत के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है और अगर इस नहर पर कोई खतरा आता है तो इससे भारत की चिंताएं भी बढ़ जाती हैं. साथ ही ये नहर दुनिया के लिए भी महत्वपूर्ण लाइफ लाइन की तरह है क्योंकि, वर्ष 2020 में यहां से 19 हजार जहाज निकले थे, जिन पर लगभग 117 करोड़ टन का सामान लदा हुआ था. अब आप समझ गए होंगे कि हम क्यों कह रहे हैं कि ये नहर बहुत ज्‍यादा महत्वपूर्ण है.

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जब 8 साल तक बंद रही स्‍वेज नहर

भले ही स्वेज नहर में फंसा ये जहाज निकल गया हो लेकिन इस संकट ने पूरी दुनिया को 1967 के उस युद्ध की याद दिला दी है, जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में Six Day War के नाम से होता है क्योंकि, ये युद्ध 6 दिनों तक चला था और तब इस जंग में इजरायल अकेला खड़ा था और उसके सामने तीन देश थे, मिस्र, सीरिया और जॉर्डन.

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इस युद्ध में इजरायल ने स्वेज नहर के उत्तरी छोर पर कब्‍जा कर लिया था जबकि दक्षिणी छोर पर मिस्र अपना नियंत्रण रखने में सफल रहा था. तब ये युद्ध तो 6 दिनों में समाप्त हो गया था लेकिन इसकी वजह से ये नहर 8 वर्षों तक बंद रही थी. इस दौरान 15 जहाज वहां फंस गए थे. इनमें एक जहाज तो युद्ध के दौरान नहर में डूब भी गया था. यानी ये वो नहर है, जिसके इतिहास में कई जहाज भी डूबे हुए आपको मिल जाएंगे.

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हालांकि इस बार का संकट उतना बड़ा नहीं है क्योंकि, ये संकट कुछ ही दिनों में खत्म हो जाएगा और मिस्र के लिए इससे निपटना ज्‍यादा मुश्किल भी नहीं है और इसकी वजह है 2004 की एक घटना. तब स्वेज नहर में कच्चे तेल से लदा एक समुद्री जहाज फंस गया था और तीन दिन तक ये नहर बंद रही थी.

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मिस्र ने शुरू की जांच 

मिस्र मौजूदा घटनाक्रम को मामूली नहीं मान रहा है और उसने इसकी जांच शुरू कर दी है. जांच इस बात की हो रही है कि ये जहाज स्वेज नहर में कैसे फंसा. एक दलील तो ये है कि तेज रफ्तार हवाओं की वजह से जहाज की दिशा बदली और ये तिरछा हो कर वहां फंस गया और दूसरी आशंका ये है कि इसमें जहाज के क्रू मेंबर्स से कोई गलती हुई, जो भारतीय हैं.

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25 भारतीय इस जहाज पर सवार हैं और खबरें हैं कि इनमें से कुछ भारतीयों को हाउस अरेस्‍ट करके तब तक मिस्र में रखा जा सकता है, जब तक इस मामले की जांच पूरी नहीं जाती है. खबरें हैं कि अगर जांच में ये बात साबित हुई कि जहाज क्रू मेंबर्स की किसी गड़बड़ी की वजह से स्वेज नहर में फंसा था तो इन भारतीयों पर आपराधिक धाराएं भी लग सकती हैं. सरल शब्दों में कहें तो इस गलती को मिस्र अपराध मानेगा.

स्वेज नहर से जुड़ी कुछ रोचक बातें-

- मौजूदा स्वेज नहर लगभग 150 साल पुरानी है लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जिस रेगिस्तानी इलाके में ये नहर मौजूद है, वहां नहरों का इतिहास हजारों वर्षों से भी ज्‍यादा पुराना है.

- कई इतिहासकारों का मानना है कि इस इलाके में पहली नहर 1850 ईसा पूर्व में बनाई गई थी. 

- हालांकि मध्य युग में जब यूरोप और एशिया के बीच समुद्री व्यापार काफी बढ़ गया तब उस समय कई देशों का ध्यान इस नहर की तरफ एक बार फिर गया.

- फ्रांस के शासक नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वेज नहर के किनारों पर व्यापारिक संभावनाओं को पहले ही देख लिया था और यही वजह है कि उन्होंने वर्ष 1799 में इंजीनियर्स की एक टीम इस इलाके में भेजी थी. हालांकि तब इन्हें इसमें ज्‍यादा सफलता नहीं मिली.

- मौजूदा स्वेज नहर को बनाने के लिए वर्ष 1858 में एक कंपनी बनाई गई थी, जिसने 10 वर्षों में इसे बनाया था और 15 लाख लोगों ने इसमें काम किया था.

- वर्ष 1956 में मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति अब्दिल नासीर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण किया था. मतलब इस नहर पर मिस्र के अधिकार को आधिकारिक रूप दिया था. 

- हालांकि फ्रांस, ब्रिटेन और इजरायल ने इसका विरोध करते हुए मिस्र पर हमला कर दिया था और स्वेज नहर पर कब्‍जा कर लिया था.

- जनवरी 1957 में संयुक्त राष्ट्र ने हस्तक्षेप करते हुए अपनी Peace Keeping Forces को इस इलाके में नियुक्त किया था. ये इतिहास में पहली बार हुआ था जब संयुक्त राष्ट्र की Peace Keeping Forces किसी इलाक़े में तैनात की गई थी.

- ये पहली बार हुआ था जब संयुक्त राष्ट्र ने इस तरह कदम उठाया. 10 वर्षों तक ये Peace Keeping Forces यहां पर रहीं.

- 1967 के बाद युद्ध के बाद जब जून 1975 में इजरायल और मिस्र के बीच समझौते हुआ, तब से ये नहर दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों में से एक बन गई.

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