जीवन में आप जो कर रहे हैं उसे करते हुए आप कितनी दूर जाएंगे इसकी कोई सीमा नहीं है. लेकिन जीवन में आपको कहां रुकना है, कहां बैकफुट पर जाना और कहां अपनी जगह दूसरों को मौका देना है ये आप जरूर तय कर सकते हैं.
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नई दिल्ली: आज हम क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की रिटायरमेंट का विश्लेषण करेंगे. क्रिकेट के मैदान पर जब कोई बल्लेबाज़ चौका या छक्का मारता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि गेंद हवा में कितनी दूर जाएगी. ये बल्लेबाज के शॉट और उसकी कलाइयों की ताकत पर निर्भर करता है. लेकिन एक बल्लेबाज ये भी अच्छी तरह जानता है कि वो हर गेंद को बाउंड्री के पार नहीं भेज सकता और कई बार उसे विकेट पर रुककर खेलना होता है और कई बार वो सिंगल रन लेकर उस बल्लेबाज को मौका देता है जिसकी फॉर्म उससे बेहतर होती है. यही जीवन का भी फलसफा है.
जीवन में आप जो कर रहे हैं उसे करते हुए आप कितनी दूर जाएंगे इसकी कोई सीमा नहीं है. लेकिन जीवन में आपको कहां रुकना है, कहां बैकफुट पर जाना और कहां अपनी जगह दूसरों को मौका देना है ये आप जरूर तय कर सकते हैं. भारत की क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और विकेट कीपर महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया है यानी वो रिटायर हो गए हैं. उन्होंने इसकी घोषणा शनिवार को की थी. आज हम धोनी के इसी फैसले को आधार बनाकर Art Of Retirement यानी संन्यास लेने की कला का एक विश्लेषण करेंगे.
संन्यास की घोषणा अपने पसंदीदा गाने के साथ
महेंद्र सिंह धोनी ने अपने संन्यास की घोषणा इंस्टाग्राम पर की और इसके साथ ही उन्होंने अपने क्रिकेट करियर की कुछ पुरानी तस्वीरों के साथ एक वीडियो पोस्ट किया जिसके पीछे वर्ष 1976 में आई मशहूर फिल्म 'कभी कभी' का एक गाना बज रहा था. इस गाने के बोल हैं- 'मैं पल दो पल का शायर हूं, पल दो पल मेरी कहानी है... ' इस गीत को साहिर लुधियानवी ने लिखा था. महेंद्र सिंह धोनी ने अपने रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए इस गाने को क्यों चुना ये भी आपको समझना चाहिए.
ये तमाम लाइनें एक शायर और कलाकार के नजरिए से कही गईं हैं. लेकिन इसका अर्थ ये है कि व्यक्ति की ख्याति चाहे कितनी भी हो जाए, उसकी प्रसिद्धी कितने भी नए मुकाम क्यों ना छू ले. जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. जिन लोगों ने अमरता की ख्वाहिश लेकर जीवन जिया वो भी पल दो पल के मेहमान हैं, उनकी कहानी भी पल दो पल की है. आप जीवन में जहां हैं, वहां आपसे पहले भी कोई था, कोई असफल रहा यानी किसी ने आहें भरीं तो किसी को सफलता के गीत को गाने का मौका मिला. लेकिन सबको एक दिन जाना होता है. आपकी सफलता, आपके कीर्तिमान और आपकी उपलब्धियां सब एक पल का किस्सा हैं और इस किस्से पर कभी न कभी ब्रेक जरूर लगता है.
हम आपको बताएंगे कि ये गलतफहमी पालना क्यों व्यर्थ है कि आपका जीवन और सफलता सदा के लिए है. यानी किसी को भी ये गलतफहमी और ये घमंड नहीं होना चाहिए कि वो सदा के लिए है. समय बदलता रहता है और हमेशा एक खिलाड़ी से बेहतर खिलाड़ी आता है, हमेशा एक कलाकार से बेहतर कलाकार आता है, पहले के मुकाबले बेहतर दर्शक होते हैं और समय का चक्र ऐसे ही चलता रहता है. ये फिलॉसफी अमर होने की लालसा से बिल्कुल विपरीत है. क्योंकि जब आप ये समझ जाते हैं कि आपके रिटायर होने का समय आ गया है तो आप रिटायरमेंट से आगे निकल जाते हैं. आप दूसरों के लिए जगह तो बनाते ही हैं. लोगों के दिलों में भी आपके लिए पहले से ज्यादा जगह बन जाती है. धोनी ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं और शायद यही वजह है कि उन्होंने अपने संन्यास की घोषणा अपने इसी पसंदीदा गाने के साथ की.
करोड़ों लोगों के लिए बने प्रेरणा
महेंद्र सिंह धोनी ना तो सचिन तेंदुलकर की तरह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज रहे और न ही वो सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर थे. लेकिन फिर भी उन्हें उनके प्रयासों और पुरुषार्थ के लिए याद किया जाएगा. एक छोटे से शहर से संबंध रखने वाले 39 साल के महेंद्र सिंह धोनी 16 वर्षों तक भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे. लेकिन इस दौरान उन्होंने सफलता का सपना देखने वाले देश के करोड़ों लोगों को जो सिखाया आज उसके बारे में भी जानने का दिन है. और इन Life Lessons के लिए आपको क्रिकेट का शौकीन होने की भी जरूरत नहीं है.
उनसे पहली सीख ये मिलती है कि आपको हमेशा एक Match Finisher की भूमिका निभानी चाहिए. धोनी बिल्कुल ऐसा ही करते थे यानी जीवन में जो चुनौतियां आएं उनसे डरकर बीच रास्ते में ही हथियार मत डालिए, बल्कि एक Match Finisher की तरह जीतकर ही दम लीजिए.
दूसरी बात आप उनसे ये सीख सकते हैं कि आपको किसी का अनुसरण नहीं करना है बल्कि अपना रास्ता खुद बनाना है. अनुसरण करके आप किसी की सस्ती कॉपी तो बन सकते हैं. लेकिन अपनी खुद की पहचान नहीं बना सकते.
तीसरी बात आप उनसे ये सीख सकते हैं कि कुछ भी असंभव नहीं है. धोनी ने अपने 16 वर्ष के करियर में भारत को कई ऐसे मैच जिताए जिनमें हार निश्चित थी. इसलिए जीवन के स्कोर बोर्ड पर चुनौतियों का रन रेट कितना ही ज्यादा क्यों न हो जाए, आपको मैदान में डटे रहना चाहिए.
महेंद्र सिंह धोनी से चौथी बात आप ये सीख सकते हैं कि अपना दिल हमेशा बड़ा रखिए. महेंद्र सिंह धोनी भारत के सबसे सफलतम कप्तानों में से एक रहे हैं. लेकिन जब टीम में युवा जगह बनाने लगे तो उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए कप्तानी छोड़ दी और विराट कोहली जैसे युवा खिलाड़ियों को मौका दिया. आज भी हमारे देश में लोग अपने पद और कुर्सी को वर्षों तक नहीं छोड़ना चाहते हैं. लेकिन युवा पीढ़ी पर भरोसा दिखाने के लिए आपका दिल बड़ा होना चाहिए और महेंद्र सिंह धोनी ने यही बड़ा दिल बार बार दुनिया को दिखाया.
पांचवी बात आप उनसे ये सीख सकते हैं कि एक सफल व्यक्ति के तौर पर आप मैदान से या अपने पद से तो रिटायर हो सकते हैं. लेकिन आप लोगों के दिलों से रिटायर नहीं होते और लोगों के दिलों में वही बना रह सकता है जो पुरुषार्थ के दम पर सफलता अर्जित करता है.
धोनी से छठी और आखिरी बात आप ये सीख सकते हैं कि करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए आपको कई बार अपनी जगह छोड़नी पड़ती है.
संयम और सूझबूझ से हर चुनौती को हराया
आर्ट ऑफ रिटायरमेंट इस पर बात पर आधारित नहीं है कि आपकी उम्र क्या हो गई है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि किसी सिस्टम में अब आपकी प्रासंगिकता कितनी रह गई है. मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद 95 वर्ष की उम्र में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. इसी तरह कई खिलाड़ी भी तब तक संन्यास नहीं लेते जब तक उन्हें टीम में जगह देना बंद ना कर दिया जाए.
अगर आपकी क्षमताएं सिस्टम के लिए प्रासंगिक नहीं हैं, तो फिर भले ही आप 30 वर्ष के हों या 80 वर्ष के आपको रिटायरमेंट के बारे में सोचना चाहिए. हमारे देश में कई ऐसे राजनेता और पत्रकार हैं जो कभी रिटायर ही नहीं होना चाहते. भले ही सिस्टम को उनकी जरूरत हो या ना हो. दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें सिर्फ इसलिए रिटायर नहीं होना चाहिए क्योंकि वो इसी सिस्टम में वैल्यू एडिशन करते हैं यानी इसे बेहतर बनाते हैं.
धोनी जैसे खिलाड़ी हर पल अपनी कला को निखारते हैं और इसी के दम पर वो अपनी टीम को मुश्किल मैच जिताने में सफल हो जाते हैं. वर्ष 2007 में World T20 के फाइनल मैच में जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर देकर मैच जिताना हो, या 2011 के World Cup में नाबाद रहते हुए छक्का मारकर टीम को जिताना हो. धोनी ने बताया कि संयम और सूझबूझ से हर चुनौती को हराया जा सकता है.
अमूल का वो रचनात्मक विज्ञापन
महेंद्र सिंह धोनी के साथ Zee News के भी खट्टे मीठे संबंध रहे हैं. हमने कई बार उनकी आलोचना भी की है, Zee News के साथ हुए विवाद के बाद उनकी IPL टीम चेन्नई सुपर किंग्स (Chennai Super Kings) पर प्रतिबंध भी लग गया था. लेकिन एक खिलाड़ी के तौर पर धोनी ने भारत और भारत की टीम के लिए जो कुछ भी किया, हम उसे सलाम करना चाहते हैं. हमें लगता है कि अब ये पुराने मतभेद भुलाने का भी समय है. लेकिन जब कुछ वर्ष पहले हमारे साथ महेंद्र सिंह धोनी का विवाद हुआ था तो उस समय इस विवाद पर अमूल ने एक रचनात्मक विज्ञापन जारी किया था.
रिटायरमेंट की सही उम्र क्या होनी चाहिए?
धोनी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया है लेकिन अभी वो IPL में खेलते रहेंगे. यानी धोनी ने बहुत समझदारी से अपने रिटायरमेंट का फैसला लिया है. लेकिन रिटायरमेंट की सही उम्र क्या होनी चाहिए ? क्या अपनी सफलता के चरम पर रिटायरमेंट लेना चाहिए ? या फिर जहां तक हो सके वहां तक अपने काम को खींचना चाहिए? ये सवाल आपके मन में जरूर आते होंगे, लेकिन आप कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए होंगे. भारत के लोग इस सवाल से डर जाते हैं. क्योंकि वो अपनी हर सफलता और कमाई गई वस्तुओं को कसकर पकड़े रहना चाहते हैं.
लेकिन आज हम कुछ उदाहरणों के जरिए इस मुश्किल सवाल का जवाब देना चाहते हैं. महेंद्र सिंह धोनी ने सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलना छोड़ा है. लेकिन अभी उन्हें जीवन की लंबी पारी खेलनी है और हो सकता है कि वो क्रिकेट के प्रति अपने प्रेम का इजहार अब दूसरे तरीकों से करने लगें. बहुत सारे लोग खिलाड़ियों को एक प्रोडक्ट की तरह देखने लगते हैं और मानते हैं कि जब तक वो खिलाड़ी मैदान पर है तभी तक उसकी पहचान है. एक मशहूर टीवी विज्ञापन में पूर्व क्रिकेटर युवराज सिंह ने भी एक बार कहा था कि जब तक बल्ला चलता है तब तक ठाठ है और उसके बाद क्या होगा. इस सवाल के जवाब पर वो चुप हो जाते हैं. लेकिन अपने रिटायरमेंट के सवाल पर आपको चुप्पी साध लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि, इसका जवाब बहुत सरल है.
इसका पहला जवाब ये है कि अगर आपकी प्रासंगिकता और सिस्टम में आपकी जरूरत बनी हुई है तो आपको रिटायरमेंट के दायरे में बंधने की जरूरत नहीं है और दूसरा जवाब ये है कि अगर आप अपने काम और अपनी कला से प्यार करते हैं तो आप मानकर चलिए कि आपके जीवन के ऑफर लेटर पर नोटिस पीरियड जैसी कोई बात नहीं लिखी है.
उदाहरण के लिए इटली के मशहूर पेंटर Michelangelo, 89 वर्ष तक जीवित रहे और आखिरी समय तक पेंटिंग बनाते रहे. वो कहते थे कि उनका जीवन खुद एक मास्टर पीस है.
इसी तरह हिंदी फिल्मों के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की मृत्यु 69 वर्ष की उम्र में हुई थी. लेकिन वो जीवन के आखिरी वर्षों तक फिल्मों में काम करते रहे. इसी तरह देव आनंद ने भी 88 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली. लेकिन वो भी आखिर तक काम करते रहे. इन कलाकारों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि इनकी फिल्में देखने के लिए एक दर्शक आ रहा है या हजारों दर्शक आ रहे हैं. ये लोग बस अपना काम करते रहे. इसी तरह अमिताभ बच्चन 77 वर्ष की उम्र में भी फिल्में कर रहे हैं और आज भी पहले जितने ही प्रासंगिक बने हुए हैं यानी आपके रिटायरमेंट का फैसला सिर्फ आपके हाथ में है और कोई भी चुनौती या थकावट आपको इस्तीफा देने पर मजबूर नहीं कर सकती.
लेकिन इसका अर्थ ये भी नहीं है कि आप जीवन भर भौतिक सुख सुविधाओं को पकड़ कर रखें और रिटायरमेंट सिर्फ इसलिए न लें क्योंकि आपको आपके पद, प्रतिष्ठा और सम्मान के खो जाने का डर है.
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स जब रिटायर हुए तो उन्होंने कहा कि मैं रिटायर नहीं हो रहा, बल्कि सिर्फ अपनी प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय कर रहा हूं.
दुनिया की एक ब़ड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के फाउंडर जैक मा ने पिछले साल सिर्फ 55 साल की उम्र में रिटायरमेंट ले लिया था. उस समय जैक मा के पास तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की निजी संपत्ति थी, जबकि उनकी कंपनी की नेट वर्थ 30 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा थी.
ज्यादातर लोग कभी रिटायर नहीं होना चाहते
ये सुनकर भारत में ज्यादातर लोग हैरान होंगे और वो ये भी पूछेंगे कि अगर सब कुछ इतना शानदार चल रहा था तो इस आदमी को रिटायरमेंट लेने की क्या जरूरत थी ? ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में रिटायरमेंट को एक अभिशाप समझा जाता है. यहां ज्यादातर लोग कभी रिटायर नहीं होना चाहते और अगर कोई अपनी सफलता के शिखर पर हो, तब तो वो रिटायरमेंट के बारे में बात तक नहीं करना चाहता. हमारे देश में फिल्म स्टार हों या क्रिकेटर, वो बहुत मुश्किल से रिटायरमेंट लेते हैं. फिल्म स्टार की फिल्में जब तक फ्लॉप होनी शुरू न हो जाएं, वो रिटायर होने के बारे में नहीं सोचता और खिलाड़ी भी तब तक संन्यास नहीं लेता, जब तक उसे टीम से बाहर निकालने की नौबत ना आ जाए. कोई नेता तब संन्यास लेता है जब वो लगातार चुनाव हारने लगता है और उद्योगपतियों के दिमाग में भी रिटायरमेंट का ख्याल तब आता है जब उनकी कंपनी दीवालिया होने लगती है. शायद भारत के लोगों को ये पता ही नहीं है कि रिटायरमेंट की सही उम्र क्या है?
भारत ने हजारों साल पहले दुनिया को दिया रिटायरमेंट का विचार
जैक मा और बिल गेट्स जैसे उद्योगपति रिटायर होकर मार्गदर्शक बन गए. लेकिन भारत में कोई मार्गदर्शक मंडल में शामिल नहीं होना चाहता क्योंकि, लोगों के मन में सब कुछ हासिल कर लेने की इच्छा कभी नहीं मरती. हमारे शास्त्रों में बुढ़ापे में वानप्रस्थ का नियम था यानी सारे बुज़ुर्ग, नई पीढ़ी को मौका देने के लिए एक उम्र के बाद वन में चले जाते थे. लेकिन कलयुग में वो वन में जाकर त्याग करने के बजाए रिसॉर्ट बना लेते हैं और पैसा कमाते हैं. यानी भारत ने रिटायरमेंट का विचार दुनिया को हजारों वर्ष पहले ही दे दिया था. लेकिन आधुनिक युग में रिटायर होने की कोई प्रथा नहीं थी, क्योंकि 18वीं शताब्दी तक पूरी दुनिया में लोगों की औसत उम्र 26 से 40 वर्ष के बीच हुआ करती थी और ज्यादातर लोग बूढ़े होने से पहले ही मर जाया करते थे और आखिर तक काम करते रहते थे. उम्र बढ़ने के साथ साथ लोगों ने रिटायरमेंट पर विचार शुरू किया क्योंकि, एक उम्र के बाद शरीर काम करना बंद कर देता है और लोग चाहकर भी काम नहीं कर पाते.
आधिकारिक तौर पर रिटायरमेंट की शुरुआत 1889 में जर्मनी में हुई थी, जब वहां के तत्कालीन चांसलर ने रिटायरमेंट के लिए 70 वर्ष की उम्र निर्धारित की थी और रिटायर होने वाले लोगों को पेंशन जैसी सुविधाएं भी मिलती थीं. लेकिन उस जमाने में ज्यादातर लोग 60 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाते थे इसलिए मोटे तौर पर ये सिर्फ एक राजनैतिक फायदे के लिए उठाया गया कदम था.
लेकिन 1929 में जब अमेरिका में आर्थिक मंदी आई और कैलिफोर्निया के एक डॉक्टर Francis Townsend ने बुजुर्गों की पीड़ा देखी तो उन्होंने ये मांग रखी कि बुजुर्गों को 60 वर्ष की उम्र में रिटायर कर देना चाहिए और उन्हें 200 डॉलर्स यानी 15 हजार रुपये की मासिक पेंशन भी दी जानी चाहिए. इस मांग को 50 लाख लोगों का समर्थन मिला और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति को एक सोशल सिक्योरिटी एक्ट पास करना पड़ा. इसके बाद रिटायरमेंट की उम्र 65 वर्ष तय की गई.
लेकिन रिटायरमेंट उम्र के दबाव में लिया जाए ये जरूरी नहीं है. ऐसा आप तभी कर सकते हैं जब आपको लगता है कि आपने अपना 100 प्रतिशत दे दिया है और अब आपको जीवन के दूसरे आयाम तराशने की जरूरत है.
उदाहरण के लिए 1982 के दौर में मशहूर अभिनेता विनोद खन्ना ने तब अचानक फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी थी जब वो आध्यात्मिक गुरु ओशो के आश्रम चले गए थे. उस समय विनोद खन्ना सफलता के चरम पर थे लेकिन मेडिटेशन यानी ध्यान को अपना हिस्सा बनाने के लिए उन्होंने 4 वर्षों तक फिल्मों से संन्यास ले लिया. इस दौरान उन्होंने ओशो के आश्रम में जूठी प्लेटें साफ करने से लेकर बागवानी तक का काम किया.
अभी रिटायर नहीं होना चाहते रॉजर फेडरर
यहां आपको एक और दिलचस्प बात बताते हैं. महेंद्र सिंह धोनी ने 39 वर्ष की उम्र में संन्यास ले लिया है. लेकिन टेनिस के महान खिलाड़ी रॉजर फेडरर 39 वर्ष का होने के बाद भी अभी रिटायर नहीं होना चाहते. वो 20 Grand Slam टाइटल जीत चुके हैं और वो अभी इस रिकॉर्ड को और बेहतर करना चाहते हैं. इसिलए रिटायरमेंट के सवाल का जवाब सिर्फ आप खुद दे सकते हैं और ये आपके उद्देश्य और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है.
कुल मिलाकर अगर आप पूर्णता से अपना कर्म करते हैं तो आपको कोई रिटायरमेंट के दायरों में नहीं बांध सकता. लेकिन यहां ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि जब आपको लगे कि आपके काम से आपको संतुष्टि मिल गई है, आपके जीवन में आनंद का प्रवेश हो गया है तो और अधिक हासिल करने की इच्छा को त्याग देना ही समझदारी है. जीवन में सफलता के लिए लंबी दूरी तक दौड़ लगाना नहीं बल्कि जीवन की गहराई में उतरना महत्वपूर्ण है और लंबाई और गहराई में से आप किसे चुनते हैं. इससे ही तय होता है कि आप कैसे जीवन का निर्माण कर रहे हैं.
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