DNA on Supreme Court gives clean chit to Narendra Modi in Gujarat Riots: सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में हुए गुजरात दंगों (Gujarat Riots) पर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. उन्हें विवादों में फंसाने की साजिश पिछले 20 साल से लगातार चल रही थी.
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DNA on Supreme Court gives clean chit to Narendra Modi in Gujarat Riots: आपने 2002 के गुजरात दंगों (Gujarat Riots) के बारे में तो सुना ही होगा. ये वो दंगे हैं, जिनका राजनीतिक इस्तेमाल करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पिछले 20 सालों में न जाने कितनी बार फंसाने की कोशिश हुई. कभी अदालतों में फर्जी मुकदमे डाल कर, कभी मानव अधिकारों का नाम लेकर, कभी SIT से जांच करवा कर और कभी मीडिया में झूठी खबरें छपवा कर.
पिछले 20 साल से चल रही थी नरेंद्र मोदी के खिलाफ साजिश
पिछले 20 सालों में देश का कोई ऐसा मंच नहीं होगा, जहां नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का ट्रायल ना हुआ हो. गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अब तक का सबसे बड़ा फैसला सुनाया है, जिसमें अदालत ने ना सिर्फ़ मोदी को क्लीन चिट दी है बल्कि ये भी माना है कि गुजरात दंगों (Gujarat Riots) के मामले को इतने वर्षों तक कुछ खास लोगों ने जानबूझकर जिन्दा रखा और इसका दुरुपयोग भी किया.
#DNA : मोदी को बदनाम करने वाले एक्सपोज़@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) June 24, 2022
ऐसे सभी लोगों पर अब कार्रवाई होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस अहम फैसले के दो पन्नों में गुजरात दंगों पर Zee News की कवरेज और मेरा यानी सुधीर चौधरी का जिक्र भी किया है. आपको शायद पता नहीं होगा कि गुजरात दंगों के दौरान मैंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का एक इंटरव्यू किया था. उस इंटरव्यू को तब हमारे देश के मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर छापा और बाद में कांग्रेस की सरकार ने और SIT ने इसी इंटरव्यू के आधार पर मोदी को फंसाने की पूरी कोशिश की थी. इसलिए हमें उन तमाम लोगों को एक्सपोज़ करने की जरूरत है, जिन्होंने गुजरात दंगों के खून से अपनी किस्मत चमकाने की कोशिश की.
गुजरात के वर्ष 2002 में हुए दंगों में मिला इंसाफ
ये मामला 2002 के गुजरात दंगों (Gujarat Riots) के समय अहमदाबाद की Gulbarg Society में भड़की हिंसा से जुड़ा है. जिसमें कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या हुई थी. यानी हमारे देश में 20 साल तक एक लॉबी ने नरेन्द्र मोदी को लगातार बदनाम किया और उन्हें परेशान करने की कोशिश की. इसके लिए न्यायपालिका का सहारा लिया गया. मानव अधिकारों को लेकर हमारे देश में जो संस्थाएं हैं, उनका सहारा लिया गया.
मीडिया का सहारा लिया गया और इसमें पुलिस की भी मदद ली गई. इस लॉबी ने इस केस में अपनी पूरी ताकत झोंक दी, क्योंकि वो किसी भी तरह नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को फंसाना चाहती थी. हालांकि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि इस केस में मोदी की कोई भूमिका नहीं थी. अदालत ने अपने फैसले में चार बड़ी बातें कहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट की SIT जांच में भी निकले थे बेगुनाह
पहली ये कि SIT ने मुश्किल परिस्थितियों में भी अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया. उसके द्वारा फाइल की गई Closure रिपोर्ट में कोई खामी नहीं निकाली जा सकती. यानी अदालत ये कह रही है कि SIT ने बिना किसी पक्षपात के काम किया और मोदी को क्लीन चिट देने का उसका फैसला सही था.
दूसरी बात, इस मामले को सनसनीखेज बनाने के लिए उस समय के गुजरात के कुछ अधिकारियों की ओर से झूठी और भ्रामक जानकारियां फैलाई गई. लेकिन SIT ने अपनी जांच में इस झूठ को पूरी तरह एक्सपोज़ कर दिया कि Gulbarg Society में हुई हिंसा सुनियोजित थी. खासतौर पर संजीव भट्ट, हरेन पांड्या और आर. बी. श्रीकुमार जैसे अधिकारियों ने मोदी के खिलाफ झूठ फैलाया और लोगों को गुमराह करने की कोशिश की.
और तीसरी बात, अदालत ने ये कही कि इस पूरे मामले को एक खास मकसद के तहत 16 वर्षों तक जिन्दा रखा गया. इसके लिए SIT की जांच से लेकर अदालत की कानूनी प्रक्रिया तक सभी पर सवाल उठाए गए. ये सबकुछ एक खास मकसद के तहत हुआ. अदालत ने कहा है कि ऐसे करने वाले सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
गुलबर्ग सोसायटी में हो गई थी 69 लोगों की हत्या
इसके अलावा अदालत ने ये भी कहा है कि गुजरात दंगों के समय नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने बिना वक्त गंवाए, केन्द्रीय सुरक्षाबलों और सेना को मदद के लिए बुला लिया था और उन्होंने उस दौरान दंगों को रोकने के लिए बहुत मेहनत की थी. लेकिन इतने वर्षों तक हमारे देश के एक खास वर्ग ने यही झूठ फैलाया कि तब ये दंगे जानबूझ-कर होने दिए गए थे. लेकिन अदालत ने इन तमाम बातों को गलत माना है. यानी इस मामले में देश की एक लॉबी किसी भी तरह नरेन्द्र मोदी को फंसाना चाहती थी और इसके लिए उसने सारे हथकंडे अपनाए.
गुजरात दंगों से जुड़े जिस मामले में मोदी को इतने वर्षों तक बदनाम करने की कोशिश हुई, वो मामला 28 फरवरी 2002 का है. जब अहमदाबाद की Gulbarg Society में हिंसा भड़की थी. ये हिंसा गोधरा कांड के सिर्फ 24 घंटों के अन्दर हुई थी. इसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी समेत कुल 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद वर्ष 2006 में अहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने ये आरोप लगाया कि Gulbarg Society में भड़की हिंसा एक बड़े षडयंत्र का हिस्सा थी. इसमें नरेन्द्र मोदी और उनकी कैबिनेट के कुछ मंत्री भी शामिल थे.
CBI के पूर्व डायरेक्टर आर.के राघवन ने की जांच
इस शिकायत पर तब काफ़ी राजनीतिक हंगामा हुआ और वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने एक Special Investigation Team यानी SIT का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता CBI के पूर्व डायरेक्टर आर.के राघवन कर रहे थे. तब इस SIT को इस बात की जांच करनी थी कि अहमदाबाद की Gulbarg Society में भड़की हिंसा में गुजरात की तत्कालीन सरकार और नरेन्द्र मोदी की भूमिका थी या नहीं.
उस समय इसने गुजरात के बड़े बड़े पुलिस अधिकारियों को बुला कर पूछताछ की थी. वर्ष 2010 में नरेन्द्र मोदी भी पूछताछ के लिए SIT के सामने पेश हुए थे. उस समय SIT ने गांधीनगर में मोदी से 9 घंटे की लम्बी पूछताछ की थी. इस दौरान उनसे 108 सवाल पूछे गए थे.
सीएम मोदी जांच में अपनी बोतल भी साथ ले जाते थे
आर.के राघवन खुद अपनी Autobiography में बताते है कि उस दिन मोदी ने इन सभी सवालों का जवाब दिया था. इस दौरान वो अपनी पानी की बोतल भी साथ लाए थे और उन्होंने SIT की चाय पीने से भी इनकार कर दिया था. SIT ने चार वर्षों तक इस मामले की जांच की और वर्ष 2012 में अपनी Closure Report में ये कहा कि उसे इस केस में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है, इसलिए वो उन्हें क्लीन चिट देती है.
ये बात उस समय की है, जब देश में UPA की सरकार थी और प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह थे. इस Investigation Team के प्रमुख आर.के. राघवन ने ये आरोप लगाया था कि जब उन्होंने मोदी (Narendra Modi) को इस केस में क्लीन चिट दी तो उनकी फोन टैपिंग की गई और उन पर दबाव भी बनाया गया.
SIT की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग
इसके बाद किसी ना किसी तरह इस मामले को जिंदा रखने की कोशिश की गई. वर्ष 2013 में जाकिया जाफरी ने गुजरात की एक अदालत में एक याचिका दायर की. इस याचिका में उन्होंने SIT की उस रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की, जिसमें मोदी को क्लीन चिट दी गई थी. लेकिन गुजरात की इस अदालत ने भी इस रिपोर्ट को सही माना और जाकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी. इस हिसाब से ये मामला यहां खत्म हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
जाकिया जाफरी अपनी इसी मांग को लेकर वर्ष 2017 में गुजरात हाई कोर्ट पहुंची. लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने वही फैसला दिया, जो गुजरात की निचली अदालत ने दिया था. यानी हाई कोर्ट ने SIT की रिपोर्ट को इस मामले में पूरी तरह सही माना. इसके बाद जाकिया जाफरी ने वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर वर्ष 2021 में सुनवाई शुरू हुई और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी ये कह दिया है कि इस हिंसा में नरेन्द्र मोदी की कोई भूमिका नहीं थी. इस मामले को राजनीति द्वेष के तहत इतने वर्षों तक ज़िन्दा करके रखा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सच को सामने ला दिया और बड़ी बात ये है कि इस फैसले में Zee News और मेरा ज़िक्र भी है. जिससे आप ये समझ सकते हैं कि ज़ी न्यूज़ उस समय भी था और ज़ी न्यूज़ आज भी है. जब हम पत्रकार होते हैं तो हम इतिहास को सिर्फ बनते हुए ही नहीं देखते बल्कि हमारी आंखें, हमारा अनुभव और हमारी मौजूदगी इतिहास का एक दस्तावेज़ तैयार कर रहे होते हैं, जो हमेशा हमारे साथ रहता है. गुजरात दंगों के वक्त भी मेरे अन्दर इतिहास का एक दस्तावेज़ तैयार हुआ और आज मैं इसका सबसे बड़ा गवाह हूं. गुजरात में जब दंगे (Gujarat Riots) हो रहे थे, तब मैं वहीं था.
तीस्ता सेतलवाड़ दायर करती थी पिटीशन
इस मामले में खास बात ये है कि तीस्ता सेतलवाड़ ने ही जाकिया जाफरी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की और वो किसी भी तरह इस मामले को जीवित रखना चाहती थीं. हर बार जब अदालत SIT की रिपोर्ट को सही मानता था, तब तीस्ता सेतलवाड़ उसे चुनौती देती थीं और नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ एक Propaganda चलाया जाता था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में उनकी मंशा को लेकर सवाल उठाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जिन लोगों पर कार्रवाई की बात कही है, उनमें तीस्ता सेतलवाड़ भी हैं.