Lungs Transplant: मुश्किलों के आगे जीत है,चोट की परवाह ना कर डॉक्टर ने मरीज को दिया जीवनदान
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Lungs Transplant: मुश्किलों के आगे जीत है,चोट की परवाह ना कर डॉक्टर ने मरीज को दिया जीवनदान

अगर आपके सामने परेशानियां आए तो पुणे के इस डॉक्टर से सीखने की जरूरत है. पुणे के डॉक्टर संदीप जाधव को चेन्नई के एक अस्पताल में लंग ट्रांसप्लांट करना था. जिस समय वो पुणे से चेन्नई के लिए रवाना हो रहे थे. उनकी एंबुलेंस हादसे का शिकार हो गई जिसमें वो चोटिल हो गए. लेकिन अपनी चोट की परवाह किए बगैर चेन्नई जा लंग्स को कामयाबी के साथ ट्रांसप्लांट किया. 

Lungs Transplant: मुश्किलों के आगे जीत है,चोट की परवाह ना कर डॉक्टर ने मरीज को दिया जीवनदान

Dr Sandeep Jadhav News:  आप अक्सर लोगों से सुनते होंगे क्या करें दिक्कतें इतनी अधिक हैं कि कुछ कर नहीं पाता, जिंदगी के हर मोड़ पर मुश्किलों से सामना होता रहता है. हिम्मत टूट चुकी है. अब लगता है कि कुछ नहीं हो पाएगा. लेकिन यहां जिस प्रसंग का हम जिक्र करने जा रहे हैं उसे पढ़ उन लोगों में हिम्मत आएगी जो हमेशा अपनी लाचारी का रोना रोते हैं. अब आपके दिल और दिमाग में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर वो प्रसंग क्या है. इस खास प्रसंग का नाता महाराष्ट्र के पुणे और चेन्नई दोनों जगहों से जुड़ा हुआ है.

पुणे के इस डॉक्टर की हो रही है चर्चा

पुणे के डॉक्टर संदीप जाधव ने जो कर दिखाया वो काबिलेतारीफ है. दरअसल हुआ यूं कि डॉ संदीप जाधव और उनकी टीम को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती एक शख्स का लंग ट्रांसप्लांट करना था. संदीप जाधव की अगुवाई वाली टीम एक ब्रेन डेड शख्स के लंग्स को लेकर चेन्नई जाने के लिए एयरपोर्ट की तरफ रवाना हो रही थी. रास्ते में उनकी एंबुलेंस जब हैरिस ब्रिज पर पहुंची उसी समय एंबुलेंस हादसे का शिकार हो गई. एंबुलेंस ने पहले दो गाड़ियों को टक्कर मारी और ब्रिज के दीवाल से जा टकराई. उस हादसे में डां संदीप जाधव और उनकी टीम चोटिल हो गई.

क्या है पूरा मामला

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक डॉ संदीप जाधव कहते हैं कि हादसे में उनके पैर और हाथ में चोट लग गई. यही नहीं सर्जरी करने वाली टीम के दूसरे डॉक्टरों को भी चोटें आईं. लेकिन फर्ज के सामने यह हादसा उनके लिए मामूली नजर आया. दूसरी गाड़ी के जरिए उनकी टीम पुणे के लोहेगांव एयरपोर्ट पहुंची और चेन्नई के लिए रवाना हो गए. डॉ संदीप जाधव बताते हैं कि जिस शख्स में लंग्स को ट्रांसप्लांट किया जाना था. वो पिछले 72 दिनों से एक्स्ट्राकॉरपोरियल मेंब्रेन ऑक्सीजीनेशन पर था. इसे हाई ग्रेड लाइफ सपोर्ट सिस्टम माना जाता है. अगर मरीज में सही समय पर ट्रांसप्लांट नहीं किया गया होता तो उसकी मौत हो जाती. 

सड़क हादसे के बारे में डॉ संदीप जाधव बताते हैं कि वो एंबुलेंस में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठे थे. हादसे में उनके पैर और हाथ और सिर में चोट आई थी. उन्हें खुद परेशानी हो रही थी. लेकिन उन्होंने फैसला किया कि मरीज की जिंदगी बचाना उनकी पहली प्राथमिकता है. बड़ी बात यह थी कि मरीज ऑपरेशन टेबल पर था. अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों को हमारा इंतजार था. अगर हम नहीं जाते तो ना सिर्फ मरीज अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता बल्कि प्रोफेशनल एथिक्स के खिलाफ भी होता. हादसे के तुरंत बाद हमारी टीम ने फैसला किया कि सबसे पहले हमारा फर्ज मरीज के लिए है और उससे किसी तरह का समझौता नहीं कर सकते.

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