कोरोना से सेब की मिठास हुई कम, किसान परेशान अब सरकार से गुहार
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कोरोना से सेब की मिठास हुई कम, किसान परेशान अब सरकार से गुहार

कश्मीरी सेब घाटी में बागों से उतारा जा रहा है. इस साल फसल मौसम की बदलती परिस्थितियों के कारण ज्यादा नहीं हो पाया है, लेकिन किसानों को उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद करने के लिए आगे आएगी.

कश्मीरी सेब (File Photo)

कश्मीर. कश्मीर(Kashmir) का सेब अपनी लालिमा के लिए, अपने स्वाद के लिए जाना जाता है. विश्व प्रसिद्ध कश्मीरी सेब घाटी(Kashmiri Apple) में बागों से उतारा जा रहा है. इस साल फसल मौसम की बदलती परिस्थितियों के कारण पिछले साल के मुकाबले ज्यादा नहीं हो पाया है, लेकिन किसानों को उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद करने के लिए आगे आएगी. 

पिछले साल 20  लाख मीट्रिक टन की तुलना में इस बार 16  लाख मीट्रिक टन सेब उत्पादन का अनुमान है, मगर हाई डेंसिटी सेब की पैदावार को भी अगर जोड़े तो यह पैदावार कुछ बढ़ सकती है.

कश्मीर घाटी(Kashmir Valley) में सेब के बागों में आज कल खूब हलचल दिख रही है. सुबह से ही किसान अपने परिवार और काम करने वाले लोगों के साथ सुबह सुबह बागों का रुख करते हैं.

फलों को पेड़ों से उतारा जा रहा हैं कुछ को डिब्बों में भरकर मंडियों में बेचा जाता हैं और कुछ लोकल बाज़ारों में बेचने के लिए लिया जाता है. पेड़ों पर खूब सेब की पैदावार है मगर इस बार मौसम की बदली परिस्थितियों के कारण सेब की क्वालिटी और पैदावार में भी बदलाव आया हैं, लेकिन किसान को उम्मीद हैं कि सरकार उसकी मदद के लिए सामने आएगी.

दशकों से सेब उगाने वाले किसान नजीर अहमद आज कल हर दिन सुबह की चाय अपने सेब के बाग़ में पीते हैं. नज़ीर के मुताबिक कश्मीर का सेब दुनिया भर में अपने स्वाद के लिए मशहूर हैं . वहीं अगर कोल्ड स्टोर होंगे तो सेब साल भर मिलेगा, क्योंकि कश्मीर के सेब की बहुत मांग होती हैं."

नज़ीर ने कहा की "इस बार उम्मीद हैं मगर सेब कम हैं, हर बार हम सुनते हैं की 2022 तक किसान की आमदनी अच्छी होगी अब दो साल हैं हम समझते हैं आने वाला वक़्त अच्छा होगा. यहाँ गाड़ियों की डिमांड ज्यादा है, हम चाहते हैं की सरकार को वहां से गाड़ियां भेजनी चाहिए. किराया भी ठीक रहेगा और हमको भी आसानी होगी."

सेब उगाने के लिए किसान को साल भर मेहनत करनी पड़ती हैं. नज़ीर के साथ उसका परिवार भी दिन भर काम करता हैं. इतनी मेहनत के बाद पैदावार इस वर्ष कम है, मगर किसान को उम्मीद है कि सरकार उनकी मदद के लिए सामने आएगी, क्योंकि सरकार भी समझती है कि किसान को कश्मीर में एक तो मौसम की खराबी और कोरोना के कारण काफी नुकसान हुआ.

सेब किसान शहीद का कहना हैं" इस साल उम्मीद है की सरकार समझेगी, हॉटीकल्चर वालों का नुक्सान हुआ है, इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि भाव अच्छा मिलेगा.

सरकार मानती हैं इस बार पैदावार कम है, क्योंकि अप्रैल मई मौसम की खराबी और पोलीनेशन में दिक्कत आयी. बहिर्वेस जो होती हैं वो बहार से आती हैं. सरकार इस साल भी मार्केट इंटरवेनशन स्कीम लागू(Market Intervention Price Scheme) कर रही हैं, ताकि किसान को अपनी फसल के लिए सही दाम कश्मीर में ही मिले.

इस वर्ष सेब उत्पादन में  20% की गिरावट की उम्मीद हैं, लेकिन यह भी उम्मीद है कि हाई डेंसिटी वाले सेब के पेड़ फायदेमंद साबित होंगे. इसके अलावा वे कश्मीरी सेब को देश के बाहर भी एक्सपोर्ट करने की प्रक्रिया में हैं.

पिछले साल कुछ देशों में इसे बेचा गया था जहाँ इसके स्वाद को काफी पसंद किया गया. बाहर की कम्पनियों की तरफ से डिमांड भी हैं.

निर्देशक हॉटीकल्चर विभाग आज़ाद भट्ट(Director Hospitality Department Azad Bhatt) कहते हैं " पिछले साल, मुंबई में, हमारा फल 90 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा गया था, वहां से वो दुबई ले जाया गया. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में, हमारे सेब के स्वाद की तरीफ़ी भी हुई.

आज़ाद भट्ट ने कहा, हमने एक बयार सेलर ग्रुप बनाया हैं और आज की तारीख में कश्मीर के फल की बड़ी डिमांड हैं".

J&K स्टेट्स इकोनॉमिक सर्वे 2017(J&K States Economic Survey 2017) के अनुसार, 3.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर फलों की खेती होती है, जिसमें सेब उगाने के लिए 48% का उपयोग किया जाता है. यह लगभग 34 लाख लोगों या कश्मीर में लगभग सात लाख परिवारों को पालता है. कश्मीर के हॉटीकल्चर को कश्मीर की आर्थिक व्यवस्था की रीड की हड्डी माना जाता हैं.

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