Lost son found: असली या नकली... सांप या रस्सी? रियल या फेक? ये सवाल है आज भी प्रासंगिक है. यहां बात उस फैमिली की जिनका बेटा 31 साल पहले महज 7 साल की उम्र में स्कूल से घर आते समय अगवा हो गया था. जानकारी के मुताबिक वो बहन के साथ स्कूल से लौट रहा था तभी बदमाश उसे VAN में अगवा करके ले गए थे. माना जाता है कि उस बच्चे ने बहुत बुरे दिन देखे होंगे. कभी पिटा होगा तो कभी भूखा सोया होगा. लेकिन इस स्टोरी में पहले कहा गया कि जब ऊपरवाला मेहरबान हुआ तो उसे मां-बाप समेत सब कुछ मिल गया. स्टोरी हैपी एंडिंग की तरफ बढ़ रही थी, तभी अचानक मामले में ट्विस्ट आ गया. जिसके बाद कहानी की सच्चाई पता लगाने के लिए दो-दो राज्यों की पुलिस काम कर रही है. 


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पहले कहा गया कि सालों की गुमनानी में रहने के बाद, अगवा लड़के को अगर कुछ याद था तो बस मां-बाप-बहन का नाम, शहर और मोहल्ले की धुंधली तस्वीरें. 30 सालों में उसके शहर की बसावट भी काफी हद तक बदल गई. किसी तरह दिन बीतते रहे और तमाम टूटी फूटी यादों की ओवरलैपिंग से बनी कहानी मिस्ट्री यानी अनसुलझी पहेली में बदल गयी है.


अब बड़ा सवाल ये है कि किसी शख्स की पहचान महज तीन दिन में कैसे बदल गई? अब कोई उसे मोनू शर्मा मान रहा है तो कुछ लोग भीम सिंह.


पुलिस की पड़ताल जारी


ये कहानी कैसे परवान चढ़ी ये बताने से पहले, ये जान लीजिए कि अभी पुलिस की जांच खत्म नही हुई है. वही कथित अगवा लड़का जो अब 38 साल का होगा. वह गाजियाबाद के एक पुलिस स्टेशन में दाखिल होकर दावा करता है कि 31 साल पहले सात साल की उम्र में उसका अपहरण हुआ था. प्रारंभिक 'जांच' के बाद, उसके 'खुलासे' से बने माहौल के चलते थाने में इमोशनल सीन बनता है. खुशी के आंसू निकलते हैं और थोड़ी ही पूछताछ के बाद उसका अपनी बिछुड़ी हुई फैमिली के साथ मिलन हो जाता है. अब कथित रूप से मां-बाप का वो बेटा लौट आया होता है, जिसके खोने का गम वो तीस साल से पाले बैठे थे. वो उसके मिलने की आस खो चुके थे. एक अर्सा बीत गया था, लेकिन एक मां के दिल ने कभी अपने दिमाग में ये ख्याल नहीं आने दिया कि उसके बेटे के साथ कुछ गलत हुआ होगा.


पुलिस इस पहेली का जवाब ढूंढने के लिए जांच कर रही है. अब ये इमोशनल जिसकी यूपी और उत्तराखंड के सीमाओं के बीच उलझी गई है. मोनू कहें या भीम वो पहली बार किसी तीसरे के जेहन यानी लाइम लाइट में इसी साल जुलाई की शुरुआत में आया था, जब देहरादून की पुलिस को उसकी खबर मिली.


ड्राइवर बना भगवान!


टीओआई की रिपोर्ट के देहरादून पुलिस के सामने उस लड़के ने अपनी पहचान बताते समय अपना नाम मोनू शर्मा बताया. उसने थाने में बताया- 'अज्ञात व्यक्तियों ने उसका अपहरण कर लिया था जो उसे राजस्थान में ले गए. वहां उसे बेच दिया गया. जिस परिवार ने उसे खरीदा वो चरवाहों की फैमिली थी. वहां उसे बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने को मजबूर किया गया था. आखिरकार उसे उत्तराखंड के एक ट्रक ड्राइवर ने बचाया, जो मवेशियों को खरीदने वहां गया था. 


पुलिस की पहल


पुलिस ने 31 साल से लापता शख्स की घर वापसी कराने का फैसला किया. उत्तराखंड पुलिस ने उसकी तस्वीर के साथ विज्ञापन जारी किया. जिस पर देहरादून के पटेल नगर निवासी बुजुर्ग आशा शर्मा की नजर पड़ी. उसने कहा कि ये उसका लापता बेटा है और इस तरह वो वहां चला गया.


कहानी में आया ट्विस्ट


इस घटनाक्रम के कुछ दिन बाद वही कथित लापता शख्स दो दिन पहले गाजियाबाद के खोड़ा थाने में पेश हुआ. इस बार उसने खुद की पहचान भीम सिंह के रूप में बताई. नई रीटेलिंग में, खोड़ा थाने में उसने किडनैपिंग की वही कहानी दोहराई. तो गाजियाबाद पुलिस ने उसकी तस्वीर जारी की तो एक और परिवार खुशी से झूम उठा, उन्हें महसूस हुआ कि उनका खोया लाल वापस मिल गया.


देहरादून वाली फैमिली का बयान


आशा के पति कपिल देव शर्मा ने कहा, उसके आने के बाद मुझे उस पर यकीन नहीं हुआ. मुझे हमेशा ये लगता था कि वो धोखेबाज है. वो अक्सर लड़ता था. हमसे प्रॉपर्टी की बात करता था. गाजियाबाद का केस सुनने के बाद, यकीन हो गया है कि वो धोखा दे रहा था. उसे पकड़ा जाना चाहिए ताकि वो किसी की भावनाओं से खिलवाड़ न कर सके. कपिल देव शर्मा ने ये भी आरोप लगाया कि दिल्ली की ओर जाने से पहले, उसने अपनी मजबूरी की मनगढ़ंत कहानी सुनाकर एक NGO से 8000 रुपये ले गया था.


इस एपिसोड को लेकर उत्तराखंड की ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल के इंसपेक्टर का कहना है कि जांच के लिए गाजियाबाद पुलिस से बात चल रही है. अबतक, ऐसा लगता है कि दोनों मामलों में कथित बिछड़ा बेटा यानी मोनू और भीम दोनों एक ही शख्स है. हम उसकी असली पहचान निर्धारित करने और उसके इरादे समझने के लिए काम कर रहे हैं. अगर धोखाधड़ी का केस निकला तो हम सुनिश्चित करेंगे कि अब कोई और फैमिली उसके धोखे का शिकार न हो.