Halal Free Campaign: दिवाली पर हलाल सर्टिफाइड सामानों के बहिष्कार के पीछे एक और दलील भी दी जा रही है. ये दलील है कि हलाल के जरिए एक समानांतर अर्थव्यवस्था चलाने की कोशिश की जा रही है.
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Diwali News: दिवाली से पहले आपको कई किस्म के ऑफर आते होंगे... BUMPER SALE जैसे विज्ञापन भी दिखते होंगे. लेकिन इस बार दिवाली को लेकर एक कैंपेन भी चल रहा है. इस कैंपेन का नाम है HALAL FREE DIWALI.
सोशल मीडिया पर अगर आप #HALALFREEDIWALI सर्च करेंगे... तो आपको इस कैंपेन का मकसद समझ आ जाएगा. इस अभियान से जुड़े लोग चाहते हैं कि दिवाली पर हलाल सर्टिफिकेट वाले सामानों का लोग बहिष्कार करें. कई ऐसी कंपनियां हैं जो मिठाई और नमकीन के पैकेट्स पर हलाल सर्टिफाइड लिखती हैं. ऐसी ही कंपनियों के सामान से दूर रहने की नसीहत कैंपेन के जरिए दी जा रही है.
महाराष्ट्र के सिंहदुर्ग के बाजारों में अगर आप जाएंगे...तो पेमेंट के लिए जितने QR CODE लगे मिलेंगे, उतने ही दिखेंगे HALAL FREE DIWALI के पोस्टर. आपको हलाल फ्री दिवाली कैंपेन से जुड़े QR CODE नजर आएंगे.
इस अभियान से जुड़े लोगों का कहना है...जब हिंदुओं या फिर गैर मुस्लिमों को हलाल खाने की कोई मजबूरी नहीं है तो फिर दिवाली पर ऐसी मिठाई और नमकीन क्यों खरीदी जाए जो हलाल सर्टिफाइड हो. यानी हलाल सर्टिफाइड चीजों का बहिष्कार किया जाए.
दिवाली के त्योहार पर हलाल सर्टिफाइड उत्पादों के बहिष्कार की अपील सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं हो रही. कर्नाटक में भी कुछ संगठन हलाल सर्टिफाइड सामान के बॉयकॉट की अपील कर रहे हैं.
क्या वाकई हलाल सर्टिफाइड सामानों से लोगों को दिक्कत है? क्या गैर मुस्लिम पर हलाल सर्टिफाइड सामान थोपे जाते हैं? इन्हीं सवालों को लेकर हम आम जनता के बीच गए और पूछा कि क्या इस दिवाली आप भी हलाल सर्टिफाइड सामान का बहिष्कार करेंगे और अगर करेंगे तो उसके पीछे वजह क्या है?
लोगों का कहना है कि जब हलाल की मुहर से उनका कोई लेना देना नहीं तो फिर हलाल सर्टिफाइड सामान क्यों खरीदना? लेकिन एक सवाल ये भी कि अगर हलाल सर्टिफिकेट वाला सामान खरीद भी लेंगे तो कौन सा बड़ा नुकसान हो जाएगा?
हमारे देश में नमक, मिठाई, मेवे, खाद्य तेल, चावल जैसे उत्पादों पर हलाल का ठप्पा लगता है. भारत में एक हलाल सर्टिफिकेट की फीस औसतन 51 हजार रुपए पड़ती है. इस सर्टिफिकेट में खाद्य पदार्थ से लेकर उसकी पैकेजिंग तक का सर्टिफिकेट दिया जाता है. भारत में अगर हलाल इकॉनॉमी की बात की जाए तो ये आंकड़ा 83 हजार करोड़ रुपए का है. माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में हलाल इकॉनॉमी का दायरा दोगुना हो सकता है.
हैरानी की बात ये है कि भारत में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता तय करने के लिए FSSAI जैसी संस्थाएं मौजूद हैं तो फिर हलाल सर्टिफिकेशन की क्या जरूरत है? सवाल ये भी पूछा जाता है कि हलाल की अनिवार्यता इस्लामिक देशों में है लेकिन भारत एक सेकुलर देश है तो फिर यहां हलाल की जरूरत क्यों?