Gyanvapi Controversy: 1936 में भी ज्ञानवापी मामले में हुई थी सुनवाई, बिना हिंदू पक्ष को पार्टी बनाए मुस्लिम वकील चाहते थे ऐसा
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Gyanvapi Controversy: 1936 में भी ज्ञानवापी मामले में हुई थी सुनवाई, बिना हिंदू पक्ष को पार्टी बनाए मुस्लिम वकील चाहते थे ऐसा

Gyanvapi Controversy Varanasi: वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद मामले में मुस्लिम पक्ष दावा करता है कि दीन मोहम्मद के मुकदमे के साथ ही ज्ञानवापी से जुड़े विवाद का निपटारा कोर्ट ने किया था. लेकिन हिंदू पक्ष का दावा है कि दीन मोहम्मद केस में हिंदुओं की ओर से कोई शामिल ही नहीं था.

Gyanvapi Controversy: 1936 में भी ज्ञानवापी मामले में हुई थी सुनवाई, बिना हिंदू पक्ष को पार्टी बनाए मुस्लिम वकील चाहते थे ऐसा

Gyanvapi Controversy Varanasi: इन दिनों वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी सुर्खियों में है. साथ ही 90 साल पुराना दीन मोहम्मद का केस भी सुर्खियों में है. यह वही मामला है जिसमें मुस्लिम पक्ष ने पूरी जमीन को वक्फ बोर्ड को सौंपने की बात कही थी और खास बात ये है कि इस मामले में हिंदू पक्ष को पार्टी ही नहीं बनाया गया था.

क्या है पूरा मामला?

इस मामले में मुस्लिम पक्ष दावा करता है कि दीन मोहम्मद के मुकदमे के साथ ही ज्ञानवापी से जुड़े विवाद का निपटारा कोर्ट ने किया था. लेकिन हिंदू पक्ष का दावा है कि दीन मोहम्मद केस में हिंदुओं की ओर से कोई शामिल ही नहीं था. इसलिए उस मुकदमे से संबंधित कोई भी तथ्य हिंदुओं पर लागू नहीं है.

वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग

बता दें कि दीन मोहम्मद, मोहम्मद हुसैन और मोहम्मद जकारिया ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ऑफ इंडिया के जरिए 11 अगस्त 1936 को केस दर्ज किया था. इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी परिक्षेत्र की आराजी नंबर-9130 का कुल रकबा 1 बीघा, 9 बिस्वा और 6 धूर है. बता दें कि आराजी उस नंबर को कहते हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड में उस जमीन के सामने दर्ज है. इस याचिका में मांग की गई थी कि मुसलमानों के कब्जे में जो है उसे और संपूर्ण जगह को वक्फ संपत्ति घोषित किया जाए.

हाई कोर्ट तक पहुंचा था मामला 

इसके अलावा दलील में दूसरी अपील यह थी कि पूरी आराजी पर कोर्ट वादीगण की संपत्ति नहीं पाती तो कस्टमरी अधिकार के तहत उन्हें पूरी जमीन पर नमाज पढ़ने और अन्य धार्मिक आयोजन करने की इजाजत दी जाए. हालांकि निचली अदालत ने जब पूरी जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने से इनकार कर दिया तो दीन मोहम्मद ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की. इसके बाद हाई कोर्ट ने भी यह अर्जी खारिज कर दी थी.

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कोर्ट ने माना औरंगजेब ने ही मंदिर तोड़ा

दैनिक भास्कर में छपी खबर के अनुसार हाई कोर्ट के फैसले में यह स्पष्ट लिखा था कि सिविल जज ने मस्जिद की उत्पत्ति की विस्तृत पड़ताल की. इस पड़ताल के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि मस्जिद को हिंदू मंदिर को तोड़कर ही बनाया गया है. कोर्ट ने यह भी माना कि उस मंदिर को औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में तोड़ दिया था. 

हाई कोर्ट ने 1809 से पहले के मुद्दों पर क्यों नहीं की चर्चा

गौरतलब है कि इस आदेश में हाई कोर्ट ने यह भी लिखा था कि साल 1809 से ही इस मामले की पड़ताल की जाए. साल 1809 में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच मस्जिद के इलाके में दंगा भी हुआ था. खास बात ये है कि उस समय सरकार के सचिव ने 23 मार्च 1810 को बनारस के जिला मजिस्ट्रेट को यह लिखा कि मिस्टर वाटसन (जो तत्कालीन वाराणसी के मजिस्ट्रेट थे) ने यह राय दी थी कि मुसलमानों को मस्जिद परिसर से पूरी तरह से बाहर कर दिया जाए. हालांकि, काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट ने इसे नहीं माना था.

हिंदुओं को पार्टी नहीं बनाया गया था

यहां गौर करने वाली बात ये है कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने हिंदुओं को पार्टी ही नहीं बनाया था. उन्होंने ज्ञानवापी कूप समेत सभी चीजों पर अपना दावा ठोक दिया था. इस वजह से इस मुकदमे के तथ्य हिंदू पक्षकारों पर लागू नहीं हैं और रेस जुडिकेटा का सिद्धांत नहीं लागू होगा.

क्या है रेस जुडिकेटा का सिद्धांत?

उल्लेखनीय है कि रेस जुडिकेटा का सिद्धांत कहता है कि किसी भी मामले में दो पक्षों के बीच यदि कोई मुकदमा होता है तो भविष्य में उनके वारिस उन मुद्दों को दोबारा अपने किसी दावे में नहीं उठा सकते.

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