छत्तीसगढ़ आमतौर पर नक्सली घटनाओं के कारण चर्चित रहा है, लेकिन कुछ समय यहां के पपीते की मिठास चर्चा में है.
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देवेश तिवारी/दरभा: तीरथगढ़ के करीब मदनपुर गांव की 43 महिलाओं को लगा कि घर बैठने से बेहतर है कुछ किया जाए. ऐसे में गांव के पास सरकारी जमीन खाली थी, वहां खेती करने का मन बनाया. मगर पथरीली जमीन जहां बड़ी बड़ी चट्टान थी उसे देखकर हौसला नहीं जुटा पाए. तभी जिला प्रशासन बस्तर और किसान कल्याण संघ ने हौसला दिया, और महिलाओं ने 10 एकड़ पत्थर से भरी बंजर जमीन को उपजाऊ बना दिया.
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40 ट्रक पत्थर हाथों से निकाले
बता दें कि दरभा में चट्टानी जमीन होने की वजह से पपीते की खेती करना एक नया प्रयोग था. शुरुआत में कुछ महिलाओं ने इस प्रयोग की असफलता की आशंका को देखते हुए काम छोड़ दिया, लेकिन समिति की 43 महिलाएं पूरी रुचि और चट्टानी इरादों के साथ अपने काम में डटी रहीं. यहीं नहीं महिलाओं ने फौलादी इरादें इतने मजबूत थे कि 40 ट्रक से अधिक पत्थर हाथों से चुनकर निकाले और इसी मात्रा में लाल मिट्टी यहां डाल दी.
बंजर भूमि बनी उपजाऊ
जमीन उपजाऊ होने लगी तो बस्तर किसान कल्याण संघ ने अमीना नस्ल के पपीतो की खेती करने पौधे उपलब्ध करा दिए. जिला प्रशासन ने सिंचाई और तार घेराव का प्रबंध कर दिया. इसका परिणाम आज उन्हें दिख रहा है जब उन्हें अच्छी फसल मिल रही है और उनकी कीमत भी अच्छी मिल रही है. अब यहां के पपीते दिल्ली और रायपुर के बाजार में मिठास बांट रहे हैं.
40 लाख रुपये का हुआ लाभ
बता दें कि जुलाई से अब तक लगातार फसल निकल रही है. अब तक समूह को 40 लाख रुपयों का लाभ हो चुका है, अभी भी फसल निकल रही है. यानी 11 महीनो में महिलाओं ने 1-1 लाख रूपये की आमदनी कर ली. उनका कहना है पपीता के बाद कुछ और उगाएंगे. लेकिन जिस जमीन को श्रम से हरा भरा किया है उस पर विरानी नहीं आने देंगे.