नक्सली बताकर बेगुनाह को भेज दिया जेल, 9 महीने बाद असली नक्सली ने दिलाई रिहाई
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नक्सली बताकर बेगुनाह को भेज दिया जेल, 9 महीने बाद असली नक्सली ने दिलाई रिहाई

आम व्यक्ति को निर्दोष होते हुए भी बेवजह 9 माह जेल में काटने पड़े, क्योंकि उसका नाम नक्सली के नाम से मिलता-जुलता था.

नक्सली बताकर बेगुनाह को भेज दिया जेल, 9 महीने बाद असली नक्सली ने दिलाई रिहाई

रंजीत बारठ/सुकमा: वो पुलिस के सामने गुहार लगाता रहा कि उसका नक्सल संगठन से कोई वास्ता नहीं है. वह अपनी बीमार पत्नी और बच्चों की दुहाई देता रहा. पुलिस के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहता रहा कि उसका नक्सलियों से कोई कनेक्शन नहीं लेकिन पुलिस ने उसकी एक न सुनी. बिना उचित जांच पड़ताल किये उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. मामला सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित गांव मिनपा का है, जहां पुलिस की चूक से 42 वर्षीय पोड़ियाम भीमा को निर्दोष होते हुए भी बेवजह 9 माह जेल में काटने पड़े. पुलिस ने स्थायी गिरफ्तारी वारंट कराने के चक्कर में एक जैसे नाम पर निर्दोष को जेल भेजा दिया. 

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बता दें कि इस मामले का खुलासा तब हुआ जब प्रकरण का मूल आरोपी खुद ही न्यायालय पहुंचकर सरेंडर कर दिया. 9 माह बाद कोर्ट ने जेल में बंद ग्रामीण को निर्दोष पाया और उसे रिहा कर दिया. इस मामले में कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को दोषी कर्मचारियों के खिलाफ लापरवाही के संबंध में कार्यवाही करने के भी निर्देश दिये हैं. पुलिस ने ग्राम मिनपा निवासी पोड़ियाम भीमा को 5 जुलाई 2021 को गिरफ्तार किया था.

क्या है मामला...
दरअसल मिनपा निवासी कुंजाम देवा, कवासी हिड़मा, करटम दुला, पोड़ियाम कोसा, पोड़ियाम जोगा, पोड़ियाम भीमा और कवासी हिड़मा पर आरोप है कि 28 अक्टूबर 2014 को ग्राम रामाराम स्थित बड़े तालाब के पास सुरक्षाकर्मियों की हत्या करने की मंशा से फायरिंग किया गया. इस मामले में 28 जनवरी 2016 को चिंतागुफा पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुकमा के समक्ष प्रस्तुत किया. कोर्ट ने सभी आरोपियों को निर्दोष मानते हुए 29 जनवरी 2016 को जमानत पर मुक्त कर दिया. जमानत पर रिहा होने के बाद लंबे समय तक आरोपियों ने कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई. नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से वे पेशी में हाजिर नहीं हो सके. इसके बाद 4 फरवरी 2021 को अभियुक्त कुंजाम देवा, कवासी हिड़मा, करटम दुला, पोड़ियाम कोसा, पोड़ियाम जोगा, कवासी हिड़मा और पोड़ियाम भीमा के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया.

ऐसे हुआ खुलासा
दंतेवाड़ा न्यायालय द्वारा मिनपा निवासी कुंजाम देवा समेत 7 अभियुक्तों के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था. जिसमें पोड़ियाम भीमा पिता देवा निवासी पदीपारा मिनपा भी शामिल है. स्थायी गिरफ्तारी वारंट के परिपालन में पुलिस ने ग्राम मिनपा के ही पोड़ियाम भीमा पिता देवा निवासी जुहूपारा को 5 जुलाई 2021 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल भेजने से पूर्व पुलिस ने गिरफ्तारी पत्रक की बरीकि से तस्दीक नहीं की गई. अब 3 मार्च 2022 को मूल आरोपी पोड़ियाम भीमा निवासी पदीपारा मिनपा अपने अन्य 6 साथियों के साथ दंतेवाड़ा न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. अपर सत्र न्यायाधीश (नक्सल कोर्ट) कमलेश कुमार जुर्री ने न्यायालय के समक्ष सरेंडर आरोपी का गिरफ्तारी पत्रक में उल्लेखित पहचान चिन्ह का मिलान किया. जिसमें दाहिने सीने में तिल एवं पीठ में चोट के निशान देखा गया, जो गिरफ्तारी पत्रक से मिलान हो रही थी.

निर्दोष को काटना पड़ गई जेल
सुकमा जिले के मिनपा गांव के 42 साल के पोड़ियाम भीमा की कहानी छत्तीसगढ़ के पुलिसिया तंत्र की हर खामी को बयान करती है. पुलिस की एक छोटी सी चूक ने पोड़ियाम भीमा और उसके परिवार को आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर कर दिया. पोड़ियाम भीमा (निर्दोष) ने बताया कि वनोपज और खेतीबाड़ी कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है. घर में पत्नी के बीमार होने की वजह से दो बच्चों की देखरेख भी उसकी जिम्मेदारी है. 2 जुलाई 2021 को शाम करीब 6 बजे मिनपा में खुले नये कैंप से कुछ सीआरपीएफ जवानों के साथ पुलिस उसके घर पहुंची. बिना कुछ कहे जिस हाल में था वैसे ही उसे उठा ले गई. कैंप पहुंचने के बाद उससे उसका नाम और पता पूछा गया. पूछताछ के दौरान पुलिस जवानों ने नक्सलियों का साथ देने का आरोप लगाते हुए उसके साथ मारपीट की. जिसके बाद उसे जेल भेज दिया. इधर पोड़ियाम भीमा के जेल चले जाने के बाद परिजनों को बुराहाल हो गया. आर्थिक तंगी के साथ मानसिक प्रताड़ना भी झेलना पड़ा.

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एक जैसे नाम की वजह से दिक्कत  
इस मामले के अधिवक्ता बिचेम पोंदी ने बताया कि ग्रामीण आदिवासी शिक्षा के अभाव में कानून की जानकारी नहीं रखते हैं, इस कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बचाव नहीं कर पाते हैं. वहीं दूसरी ओर प्रत्येक गांव में एक नाम व सरनेम के एक से अधिक व्यक्ति होते हैं. ऐसे में किसी अपराध में गिरफ्तार कर जेल भेजने के पहले पुलिस अधिकारी को बारीकी से उसका तस्दीक करना चाहिए. जांच अधिकारी के लापरवाही का परिणाम पोडियम भीमा लगभग एक वर्ष तक निर्दोष होकर भी जेल में भुगता है. यह तब ज्ञात हुआ है जब इसी नाम का मूल आरोपी न्यायालय के समक्ष स्वत: उपस्थित होकर जमानत कराने कराने आया.

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