सीमित संसाधनों के बीच छत्तीसगढ़ के एक गुरुकुल में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतिभाएं तैयार हो रही हैं. आदिवासी बच्चों के अंदर जिम्नास्ट एवं एथलेटिक्स के लिए ऊर्जा भरी जा रही है.
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दुर्गेश सिंह बिसेन/ पेंड्रा: राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के उत्कृष्ट प्रदर्शन के बीच पेंड्रा के गुरुकुल मैदान में ग्रामीण आदिवासी छात्रों को जिमनास्टिक और एथलेटिक्स जैसे कठिन खेलों में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है. सीमित संसाधनों के बीच आदिवासी ग्रामीण बच्चों को जिस तरह से इन कठिन खेलों में प्रशिक्षित किया जा रहा है, निश्चय ही यह खिलाड़ी देश का भविष्य बनने को तैयार हो रहे हैं.
आदिवासी बच्चों को जिमनास्टिक की ट्रेनिंग
दशकों पहले मध्य प्रदेश शासन काल में ही खेल प्रतिभा निखारने के लिए गुरुकुल खेल परिसर बनाया गया था. वनांचल में रहने वाले ग्रामीण आदिवासी बच्चों को खेल के साथ जोड़कर उनके एवं देश के भविष्य के रूप में आगे लाने के लिए विद्यालय एवं माहौल तैयार किया जा रहा है.
खेलकूद में पारंगत करने के लिए हो रहा प्रशिक्षण
गुरुकुल खेल परिसर के जिम्नेजियम प्रशिक्षण हाल में एथलेटिक्स और जिमनास्टिक का प्रशिक्षण पाते शहरी बच्चे नहीं हैं बल्कि बैगा, भैना, गोंड जैसे आदिवासी समाज के बच्चे हैं जिन्हें छात्रावासों में रखकर पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है. वर्षों के प्रशिक्षण के बाद छात्र आज इस तरह के करतब दिखाने में सक्षम हो सके हैं.
कठिन परिश्रम से हो रहा संभव
यह देखने में भले ही आसान लगता हो पर इसे करना बहुत ही मुश्किल और कठिन है. इसके लिए लगातार प्रशिक्षण के साथ-साथ लगन एवं कठिन परिश्रम की आवश्यकता है. जमीन पर बंदरों की तरह लगातार पलटी मारते हुए गुलाटी मारना हो या हाथ के बल चलना हो या हवा में उछल कर पूरे शरीर को घुमाकर जिमनास्टिक की इन कठिन विधाओं को दिखाना हो, निश्चय ही छात्रों और प्रशिक्षकों के कठिन परिश्रम से संभव हो सका है. छात्र भी अपने प्रशिक्षकों की मेहनत से पूरी तरह संतुष्ट हैं. वे पहले भी देश एवं प्रदेश स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके हैं. साथ ही अपने भविष्य को लेकर छात्रों ने कहा था या नहीं है.
सीमित संसाधनों में बेहतरीन प्रदर्शन
जिम्नास्ट के मुख्य प्रशिक्षक मोहन कुमार थापा संसाधनों को लेकर वैसे तो संतुष्ट हैं पर फिर भी उनका कहना है कि गद्दे नए मिल जाते. कुछ फटे हैं, उनकी रिपेयरिंग हो जाती है. कुछ और सामान मिल जाता तो प्रशिक्षण में आसानी होती, पर फिर भी इन संसाधनों के बीच छात्रों को आने वाले राज्य स्त्री खेलों के लिए तैयार किया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों से निकल कर आए बच्चों के मन से सबसे पहले डर हटाया जाता है ताकि वे कूदने, फांदने एवं जिम्नास्ट के खेलों के प्रति उत्साहित होकर आगे बढ़ें. उसके बाद उन्हें बेसिक सिखा कर आगे ट्रेंड किया जाता है.
जीवन की पहली आवश्यकता स्वस्थ शरीर
'शरोरामायं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् शरीर कर्तव्य पालन का पहला साधन है. कालिदास का यह कथन पूर्णत: सत्य है. जीवन की पहली आवश्यकता स्वस्थ शरीर ही है. अच्छे स्वास्थ्य के अनेक साधन हैं जैसे-व्यायाम, खेलकूद, जिम्नास्टिक आदि और सरकार को यदि राज्य और देश का नाम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाना है. ऐसे प्रशिक्षण केंद्र में विशेष ध्यान देना होगा ताकि यहां से निकले हुए छात्र देश एवं विदेश में जिले एवं प्रदेश का नाम रोशन कर सकें.
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