Sakat Chauth Vrat Katha: पुत्रों के दीर्घायु और आरोग्य की कामना के लिए महिलाएं यह व्रत रखती हैं और रात में में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं. तो चलिए आज जानते हैं सकट चौथ की पौराणिक कथा इस प्रकार है.
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Sakat Chauth Vrat Katha: हिंदू धर्म के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी या सकट चतुर्थी पर्व मनाया जाता है. इस बार ये त्यौहार 10 जनवरी को मनाया जाएगा. कहते हैं कि पुत्रों के दीर्घायु और आरोग्य की कामना के लिए महिलाएं यह व्रत रखती हैं और रात में में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं. तो चलिए आज जानते हैं सकट चौथ की पौराणिक कथा इस प्रकार है.
आवां से जीवित निकल बच्चा
कहते हैं कि किसी गांव में एक कुम्हार राजा के लिए मिट्टी के बर्तन बनाया करता था. मगर कई बाप आवां न पकने की वजह से वो राजा को समय पर बर्तन नहीं सका, तो राजा को इसकी शिकायत की गई. राज के पूछने पर पंडित ने कहा कि हर बार आवां लगाने के समय किसी एक बच्चे की बलि देनी होगी. राजा की आज्ञा से हर परिवार को बारी-बारी से बच्चे के बलि देना अनिवार्य कर दिया गया.
इसी तरह कई दिनों तक यह सिलसिला चलता है और एक वृद्ध महिला ने अपने एक मात्र सहारे की बारी आने के पहले सुपारी और दूब का बीड़ा उठा कर अपने बेटे को देते हुए कहा कि तुम भगवान का नाम लेकर आवां में बैठ जाना, सकट माता तुम्हारी रक्षा करेगी. इस तरह सकट चौथ के दिन वृद्ध महिला के बेटे का नंबर आया तो उसने वैसा ही किया जैसा उसकी मां ने कहा था और वृद्धा मां खुद भी सकट माता से प्रार्थना करने लगी.
लेकिन, अचानक एक बड़ा चमत्कार हुआ और जल्दी आवों भी पक गया और वो बालक भी सकुशल बाहर निकल आया. इतना ही नहीं, आवां में पहले बैठाए गए बालक भी सकुशल निकल आए और तभी से सकट चतुर्थी के दिन सभी लोग इस व्रत को रखते हैं ताकि उनके बच्चे दीर्घायु हों.