Surajpur News: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में एक निजी स्कूल संचालक ने शिक्षा की मिसाल पेश की है. निजी स्कूल के संचालक संजय दास ने सरगुजा के विशेष पंडो समुदाय के बच्चों को फ्री में शिक्षित करने का जिम्मा उठाया है.
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Chhattisgarh News: इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां लोगों को अपने लिए समय निकालना मुश्किल हो रहा है. वहीं, छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले निजी स्कूल संचालक ने 'शिक्षा एक दान है' वाली कहावत को सच साबित कर दिखाया है. सरगुजा की विशेष जनजाति पंडो समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने के लिए संजय दास स्कूल का संचालन कर रहे हैं. वे बिना किसी सरकारी मदद के अब तक ऐसे सैकड़ों बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं, जिन्होंने आर्थिक मजबूरी के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी. इनमें से कई बच्चों ने 10वीं- 12वीं की परीक्षा पास की है तो कई ने सरकारी नौकरी पा ली है.
जानें संजय दास की कहानी
संजय दास ने करीब 13 साल पहले सूरजपुर के एक छोटे से गांव देवनगर में एक स्कूल का संचालन शुरू किया. इस दौरान उन्हें महसूस कि पैसे वाले बच्चे तो अच्छे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, लेकिन वह बच्चे जो शहर से दूर जंगलों में निवास करते हैं वे शिक्षा से वंचित हैं. तब उन्हें लगा कि शिक्षा का जितना अधिकार अन्य बच्चों का है, उतना ही इन पंडो जनजाति के बच्चों का भी है. बस फिर क्या था. उन्होंने दूर जंगलों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया.
गांव-गांव जाकर किया जागरूक
जहां चाह होती है वहीं राह होती है. विशेष जनजाति पंडो समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने के लिए संजय ने ठाना और बिना किसी सरकारी मदद के गांव-गांव जाकर इन बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया. इसके बाद उन्हीं के गांव में मुफ्त में पढ़ाना शुरू कर दिया.
सिर्फ 20 बच्चों से शुरू किया सफर
संजय का ये सफर सिर्फ 20 बच्चों के साथ शुरू हुआ था. अब तक उनके पढ़ाए हुए करीब 300 बच्चे 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास कर चुके हैं. इनमें से आठ बच्चे तो अब सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं, जबकि दर्जनों बच्चे प्राइवेट सेक्टर में अपना भविष्य बना रहे हैं. उनका यह अभियान अभी भी जारी है. 2024 अब तक में 109 बच्चों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है और उनकी कक्षाएं चल रही हैं.
खुद को बताते हैं पांडवों का वंशज
सरगुजा जिले के कई इलाकों में निवास करने वाले पंडो जनजाति के लोग खुद को पांडव के वंशज बताते हैं. वहीं इस जनजाति के लोग जंगल में ही रहना पसंद करते हैं.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें लिया था गोद
1952 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पंडो जनजाति को गोद लिया था, ताकि इस वर्ग को भी मुख्य धारा से जोड़ा जा सके. लेकिन आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी पंडो जनजाति के लोग जंगलों में ही रहना पसंद करते हैं. यही वजह है कि आज आधुनिक दुनिया में भी वह शिक्षा थे कोसों दूर हैं.
शिक्षा के लिए किया जागरूक
शिक्षा से वंचित पंडो जनजाति के लोगों के जिंदगी में मुस्कुराहट की वजह बनकर आए निजी स्कूल संचालक संजय दास ने इसके लिए काफी मेहनत की है. उन्होंने कई इलाकों में पहुंचकर लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया और बिना किसी शुल्क के मुफ्त में उन्हें शिक्षा दी. अब उनकी राह पर पंडो जनजाति के लोग अपने समुदाय के लोगों के उज्जवल भविष्य के लिए दूसरे लोगों को शिक्षित करने का संकल्प भी ले रहे हैं.
इनपुट- सुरजपुर से OP तिवारी की रिपोर्ट, ZEE मीडिया