रिसर्च में बताया है कि जो लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं या बेहद कम करते हैं, उनमें कोरोना का संक्रमण घातक साबित हो सकता है. ऐसे लोगों को संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है.
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नई दिल्लीः कोरोना संक्रमण से देश में हालात काफी बिगड़ गए हैं. लेकिन इस संक्रमण में एक बात नोटिस करने वाली ये रही कि गांवों में या शहर के निम्न वर्गीय तबके पर इस महामारी का असर गंभीर असर नहीं पड़ा है, जितना मध्यवर्ग या फिर उच्च वर्ग पर पड़ रहा है. हाल ही में अमेरिका में हुई एक रिसर्च में इस बात का जवाब मिल गया है.
शारीरिक श्रम नहीं करने वाले लोगों के लिए घातक है कोरोना
अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोना पर की अपनी एक रिसर्च में बताया है कि जो लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं या बेहद कम करते हैं, उनमें कोरोना का संक्रमण घातक साबित हो सकता है. ऐसे लोगों को संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है. साथ ही ऐसे मरीजों में मौतों का आंकड़ा भी ज्यादा रहा. वहीं शारीरिक श्रम करने वाले लोग अगर संक्रमित हो भी गए तो कोरोना उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाता है.
ये वजह भी हैं प्रमुख
ब्रिटिश जर्नल ऑफ सपोर्ट मेडिसिन में प्रकाशित इस रिसर्च में बताया गया है कि धूम्रपान, मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों में भी कोरोना संक्रमण गंभीर होने का खतरा है. लेकिन शारीरिक रूप से सक्रिय ना रहने वाले लोगों में संक्रमण का खतरा उक्त बीमारियों से पीड़ित मरीजों से भी ज्यादा है.
रिसर्च से ये बात भी साफ हो गई है कि गांवों में क्यों कोरोना संक्रमण उतना घातक नहीं है, जितना वह शहरों में है. दरअसल गांव के लोगों की जीवनशैली शारीरिक श्रम वाली रही है. जिसके चलते कोरोना ग्रामीण इलाकों में ज्यादा नुकसान नहीं कर पाया.
माना जा रहा है कि यही वजह है कि अमेरिका समेत विकसित देशों में कोरोना का संक्रमण बेकाबू होने की प्रमुख वजह यही हो सकती है. क्योंकि जीवन शैली और तकनीक के चलते यूरोपीय, अमेरिका आदि देशों में लोग ज्यादा शारीरिक श्रम नहीं करते हैं. जिसके कारण वहां संक्रमण बेकाबू भी हुआ.