मामले का खुलासा होने पर कैग ने भी आपत्ति जताई है. इनमें भोपाल की एक परियोजना अधिकारी सुधा विमल का नाम मोतियापार्क में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में भी दर्ज हुआ है. जिनके खाते में बैरसिया, बरखेड़ी, चांदबड़ और गोविंदपुरा के साथ रायसेन के उदयपुरा परियोजना के पैसे जमा कराए जाने का खुलासा हुआ है.
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भोपाल: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को मिलने वाली मानदेय की राशि को अधिकारियों द्वारा खुद के खाते में डालने का मामला सामने आया है. इस बात का खुलासा विधानसभा टेबल पर पेश हुई कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट से हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 से 2016 के बीच भोपाल और रायसेन के परियोजना अधिकारियों ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका को मिलने वाले मानदेय 3.19 करोड़ रुपए डाटा एंट्री ऑपरेटर और कंप्यूटर ऑपरेटरों के खाते में जमा करा दिए. ऐसे 89 खातों के बारे में पैसे जमा कराने का मामला सामने आया है.
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कैग ने जताई आपत्ति
मामले का खुलासा होने पर कैग ने भी आपत्ति जताई है. इनमें भोपाल की एक परियोजना अधिकारी सुधा विमल का नाम मोतियापार्क में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में भी दर्ज हुआ है. जिनके खाते में बैरसिया, बरखेड़ी, चांदबड़ और गोविंदपुरा के साथ रायसेन के उदयपुरा परियोजना के पैसे जमा कराए जाने का खुलासा हुआ है.
जानें क्या है पूरा मामला?
विधानसभा की टेबल कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के दौरान आंगनबाड़ी में काम करने वाली महिलाओं को 6 हजार रुपए मानदेय मिलता था. लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की तरफ से उनके बैंक खातों में 1.13 लाख रुपए तक के भुगतान नहीं किए गए. रिपोर्ट के मुताबिक कार्यकर्ताओं के मानदेय की राशि कई कर्मचारियों की बेटी के खाते में भी भेजे गए हैं. इसके अलावा यह पैसा परियोजना कार्यालय में काम करने वाले दिलीप जेठानी और काशी प्रसाद के खाते में भी भेजने का आया है.
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एक बिल पर हुआ दो भुगतान
कैग रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2016 से लेकर अगस्त 2018 तक भोपाल के डीपीओ ने 44 बैंक खातों में 39.61 लाख रुपए गलत तरीके से जमा कराए थे. जिसमें 23 खाते परियोजना के शामिल थे. इसके अलावा एक बिल पर दो भुगतान भी किए गए.
रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल के डीपीओ ने बच्चों को दिए जाने वाले फ्लेवर्ड दूध का भुगतान 4.73 लाख रुपए जिस डेट और बिल क्रमांक से किया, उसी तारीख और क्रमांक से 14.01 लाख रुपए का और भी भुगतान किया गया.
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मामले में डीपीओ ने कैग को दिया ये जवाब
मामले का खुलासा होने पर डीपीओ ने कहा कि फर्जी हस्ताक्षर से किसी ने ऐसा किया होगा और इस राशि की वसूली करके शासन के खाते में जमा करा दी गई. डीपीओ ने कहा कि अधिकारियों के कई फर्मों और परिवार के खाते में 65.72 लाख रुपए डाले गए. इस बात का खुलासा विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ के जिला कार्यक्रम अधिकारी और परियोजना कार्यालय के दस्तावेजों की जांच में पता चला है.
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आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और मानदेय सहायिकाओं के नाम पर जिन खातों में यह पैसा जमा कराया गया वो संदीप कंप्यूटर और ऑफसेट मुरैना फर्मों के नाम पर और कर्मचारियों के परिजनों के नाम पर थे.
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