यह गांव राजस्थान की सीमा से लगे सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और राजगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गांव में घरों की दीवारों पर संस्कृत में ही श्लोक लिखे गए हैं और घरों के नाम भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं.
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हरीश दिवेकर/राजगढ़: मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में एक ऐसा गांव है जिसके हर घर में संस्कृत भाषा बोली जाती है. इस गांव के बच्चे और बुजुर्ग फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं. इस गांव का नाम हे झिरी. यह गांव राजस्थान की सीमा से लगे सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और राजगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गांव में घरों की दीवारों पर संस्कृत में ही श्लोक लिखे गए हैं और घरों के नाम भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं. मध्य प्रदेश का झिरी गांव पूरे देश में 'संस्कृत गांव' के नाम से मशहूर है.
जी मीडिया संवाददाता ने गांव वालों से ही यह जानने की कोशिश कि उन्हें संस्कृत भाषा की इतनी अच्छी जानकारी कैसे हुई? झिरी गांव के लोगों ने जी मीडिया संवाददाता को बताया कि साल 1978 से ही यहां नियमित रूप से संघ की शाखा लगती आ रही है. साल 2003 में संघ की जिला बैठक में यह तय हुआ कि आखिर शाखा के माध्यम से गांव में और सामाजिक बदलाव किस प्रकार लाया जा सकता है?
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ग्रामीणों के मुताबिक इस प्रश्न के जवाब में झिरी गांव के ही निवासी और उस समय के जिला कार्यवाहक उदयसिंह चौहान ने यह सझाव दिया कि ग्रामीणों को संस्कृत भाषा सिखाई जाए. उनके इस सुझाव को मानते हुए संस्कृत भारती ने संस्कृत की एक महिला ज्ञाता और एक आचार्य को झिरी गांव में भेज दिया. उनके रहने की व्यवस्था गांव के ही दो अलग-अलग परिवारों में की गई. संस्कृत भारती से आईं महिला विद्वान विमला पन्ना और बाला प्रसाद तिवारी द्वारा 2004 से ही नियमित रूप से झिरी गांव में संस्कृत का अध्यापन कार्य शुरू किया.
जी मीडिया संवाददाता ने उदयसिंह चौहान से भी संपर्क किया. वह गांव में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर के प्राचार्य हैं. उन्होंने बताया कि विमला पन्ना और बाला प्रसाद तिवारी की मेहनत का परिणाम जल्द दिखने लगा और देखते-देखते गांव के लोगों ने संस्कृत में बात करना शुरू कर दिया. साल 2007 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालाक कुप्पी सुदर्शन का प्रवास भी झिरी गांव में हुआ.
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उदयसिंह चौहान के मुताबिक झिरी गांव के लोगों ने संस्कृत भाषा को पूरी तरह अपना लिया है. इस गांव के लोगों को यह भाषा मीठी लगती है. इस भाषा में बातचीत करने से अपनापन लगता है. हर शाम गांव में नियमित रूप से संस्कृत की कक्षा लगती है. गांव के सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं.
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