नहीं रहे पूर्व सांसद, प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि बालकवि बैरागी
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नहीं रहे पूर्व सांसद, प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि बालकवि बैरागी

बालकवि बैरागी का जन्म जन्म 10 फरवरी, 1931 को मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गांव में हुआ था. उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया. 

फोटो- Youtube

नई दिल्ली : 'चाहे सभी सुमन बिक जाएं, चाहे ये उपवन बिक जाएं, चाहे सौ फागुन बिक जाएं, पर मैं अपनी गंध नहीं बेचूंगा.' जैसी पक्तियां लिखने वाले बालकवि बैरागी अपनी गंध को खुद में ही समेटे रविवार की शाम इस दुनिया को रुखसत कर गए. कलम के साथ-साथ राजनीति पर भी गहरी पकड़ रखने वाले बैरागी ने मनासा में अपने निवास पर शाम 6 बजे अंतिम सांस ली. बताया जा रहा है कि नीमच में एक कार्यक्रम में शामिल होकर आने के बाद उन्होंने अपने घर पर कुछ देर आराम किया, इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई. 

  1. 10 फरवरी, 1931 को मनासा तहसील के रामपुर गांव में हुआ था जन्म
  2. नीमच में एक कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद घर पर हुआ निधन
  3. महज 9 साल की उम्र में चौथी कक्षा में लिखी थी पहली रचना 'व्यायाम'

उनके निधन की खबर से साहित्य और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई. 

बालकवि बैरागी का जन्म जन्म 10 फरवरी, 1931 को मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गांव में हुआ था. उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया. कविताएं लिखना तो उन्होंने कम उम्र से ही शुरू कर दिया था, कॉलेज के समय में उन्होंने राजनीति में भी सक्रिय रूप से भागीदारी लेनी शुरू कर दी थी. वे मध्य प्रदेश की अर्जुन सरकार में खाद्य मंत्री रहे और फिर राज्यसभा सदस्य रहे. मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें  कवि प्रदीप सम्मान भी प्रदान‍ किया था. इसके अलावा भी उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.

चौथी कक्षा में लिखी पहली कविता
बेव दुनिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जब वह चौथी कक्षा में पढ़ते थे, तब उन्होंने पहली कविता लिखी. और उस कविता का शीर्षक था 'व्यायाम'. उन्होंने बताया कि उनका बचपन में नाम नंदरामदास बैरागी था और इस कविता के कारण ही उनका नाम नंदराम बालकवि पड़ा, जो आगे चलकर केवल बालकवि बैरागी हो गया. बालकवि बैरागी कलम के जादूगर होने के साथ-साथ मधुर कण्ठ के स्वामी भी थे.

प्रसिद्ध रचनाएं
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में हैं करोड़ों सूर्य, सूर्य उवाच, दीवट (दीप पात्र) पर दीप, झर गये पात, गन्ने मेरे भाई!!, जो कुटिलता से जियेंगे, अपनी गंध नहीं बेचूंगा, मेरे देश के लाल, नौजवान आओ रे, सारा देश हमारा आदि शामिल हैं. उन्होंने बाल रचनाएं भी की जो शिशुओं के लिए पांच कविताएं नामक शीर्षक से पांच खंडों में प्रकाशित हुईं. 

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