Bastar Seat History: बस्तर में 5 बार निर्दलीय जीते चुनाव, 2019 में कांग्रेस ने बीजेपी के गढ़ में लगाई थी सेंध
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Bastar Seat History: बस्तर में 5 बार निर्दलीय जीते चुनाव, 2019 में कांग्रेस ने बीजेपी के गढ़ में लगाई थी सेंध

Bastar Lok Sabha Constituency: बस्तर लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है. यह सीट 2019 तक कई सालों से बीजेपी के पास थी, लेकिन 2019 में कांग्रेस ने जीत हासिल की. इस सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र हैं. चलिए इस सीट का समीकरण समझते हैं....

Bastar Lok Sabha Seat History

Bastar Lok Sabha Seat History: देश में कभी भी लोकसभा चुनाव की घोषणा हो सकती है. इसके चलते सभी राजनीतिक पार्टियां पूरी तैयारियों में जुटी हुई हैं. छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. बस्तर लोकसभा सीट, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है. खास बात है कि ये देश उन चुनिंदा लोकसभा सीटों में होगी, जहां 5 बार स्वतंत्र उम्मीदवारों ने चुनाव जीते हैं. इसके अलावा कांग्रेस और भाजपा जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की भी विजय हुई है. छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट की बात करें तो ऐतिहासिक रूप से ये भाजपा का गढ़ था. हालांकि, 2019 के चुनावों में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ. मोदी लहर में भी यहां पर कई सालों बाद कांग्रेस विजयी हुई. 

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बस्तर लोकसभा सीट

बस्तर लोकसभा सीट में पांच जिले शामिल हैं: कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा. बता दें कि बस्तर लोकसभा सीट में कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा सहित आठ विधानसभा सीट शामिल हैं. 

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2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में, भाजपा पांच सीटों पर विजयी हुई, जिनमें कोंडागांव (एसटी), नारायणपुर (एसटी), जगदलपुर, चित्रकोट (एसटी), और दंतेवाड़ा (एसटी) शामिल हैं. इन सीटों से लता उसेंडी, केदार नाथ कश्यप, किरण सिंह देव, विनायक गोयल और चैतराम अटामी क्रमशः विधायक हैं. वहीं, कांग्रेस ने बीजापुर (एसटी), कोंटा (एसटी) और बस्तर (एसटी) सीटों पर जीत हासिल की. इन निर्वाचन क्षेत्रों में क्रमशः  विक्रम मंडावी, कवासी लखमा और लखेश्वर बघेल ने विजय हासिल की थी.

सीट का नाम विधायक पार्टी
कोंडागांव (एसटी) लता उसेंडी BJP
नारायणपुर (एसटी) केदार नाथ कश्यप BJP
बस्तर (अनुसूचित जनजाति) लखेश्वर बघेल कांग्रेस
जगदलपुर किरण सिंह देव BJP
चित्रकोट (अजजा) विनायक गोयल BJP
दंतेवाड़ा (एसटी) चैतराम अटामी BJP
बीजापुर (एसटी) बीजापुर विक्रम मंडावी कांग्रेस
कोंटा (अनुसूचित जनजाति) कवासी लखमा कांग्रेस

 

बस्तर लोकसभा सीट का इतिहास

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1952 के पहले चुनाव में, यहां से एक स्वतंत्र उम्मीदवार मुचाकी कोसा की जीत हुई थी. खास बात ये थी कि मुचाकी कोसा ने 83.05% वोट हासिल करके इतिहास रच दिया था. जो एक रिकॉर्ड है. इसके बाद 1957 में कांग्रेस की जीत हुई थी. 1957 में, कांग्रेस को यहां पहली जीत सुरती किस्तैया ने दिलाई दी. हालांकि, इस बाद के 3 चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई.1962 में लखमू भवानी की जीत के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत का सिलसिला फिर शुरू हुआ. 1967 में, एक अन्य स्वतंत्र उम्मीदवार झाड़ू राम सुंदर लाल विजयी हुए. वहीं, उसके बाद 1971 में लंबोदर बलियार चुनाव जीते. वो भी एक निर्दलीय उम्मीदवार थे. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस पहली बार देश सत्ता से बाहर हुई. 1977 में जनता पार्टी को बहुमत मिला था. बस्तर में भी जनता पार्टी के दृग पाल शाह ने जनादेश हासिल किया था.

कांग्रेस का युग  
4 लगातार चुनावों में हार के सामना करने कांग्रेस के बाद 1980 चुनाव में पार्टी को यहां जीत मिली. पार्टी ने लक्ष्मण कर्मा को मैदान में उतारा था. जहां इस सीट पर उनकी निर्णायक जीत हुई. इसके बाद कांग्रेस ने अपनी जीत का सिलसिला 1996 तक जारी रखा. 1984 में यहां मनकूराम सोढ़ी की एंट्री हुई. जिन्होंने लगातार तीन चुनावों 1984,1989 और 1991 के चुनाव में जीत हासिल की थी. बता दें कि मनकूराम सोढ़ी बस्तर के कद्दावर नेता थे. वह पांच बार विधायक और तीन बार सांसद और कई वर्षों तक बस्तर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.

फिर हुई निर्दलीय उम्मीदवार की जीत 
1996 के चुनाव में यहां पर पांचवी बार एक स्वतंत्र उम्मीदवार, महेंद्र कर्मा विजयी हुए. 1996 के लोकसभा चुनावों में, निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे महेंद्र कर्मा ने कुल 124,322 वोट हासिल किए थे. वहीं, कांग्रेस के मानकूराम सोढ़ी ने 110,265 वोट हासिल किए थे. जबकि, भाजपा ने राजाराम टोडेम को मैदान में उतारा, जिन्हें 84,523 वोट मिले थे.

भाजपा की एंट्री
1998 में इस सीट पर भाजपा की एंट्री हुई. 1998 में पार्टी ने अपनी पहली जीत हासिल की और 2014 तक अपनी पकड़ बरकरार रखी. बलिराम कश्यप ने 1998 से लगातार चुनाव जीते. बलिराम कश्यप बस्तर के कद्दावर नेता थे वे कई बार विधायक और मप्र सरकार में मंत्री रहे. वह 12वीं, 13वीं, 14वीं और 15वीं लोकसभा के सदस्य थे. उन्हें बस्तर के बाला साहेब ठाकरे के नाम से जाना जाता था. 2011 में उनके निधन के बाद पार्टी ने यहां उनके बेटे को मैदान में उतारा है. जहां दिनेश कश्यप ने 2011 का उपचुनाव और 2014 का आम चुनाव जीता. 

कांग्रेस का सूखा हुआ खत्म
2019 के चुनावों में, बस्तर सीट पर भाजपा का लंबे समय से चला आ रहा कब्ज़ा ख़त्म हो गया और कांग्रेस विजयी हुई.  2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दीपक बैज ने भाजपा के बैदुराम कश्यप पर 38,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी.

आठ विधानसभा क्षेत्रों वाला बस्तर लोकसभा क्षेत्र अपनी आदिवासी आबादी और प्राकृतिक सुंदरता के कारण अद्वितीय महत्व रखता है. काकतीय राजवंश के शासन और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध सहित अपने समृद्ध इतिहास के साथ, बस्तर सांस्कृतिक विरासत और लचीलेपन का प्रतीक बना हुआ है.

बस्तर जातीय समीकरण
बस्तर लोकसभा क्षेत्र में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. 2014 के आकाड़ो के अनुसार, लगभग 12.98 लाख मतदाताओं में से 387,112 पुरुष थे जबकि 382,801 महिलाएँ थीं.  बस्तर सीट  जनजातीय आबादी  मतदाताओं की संख्या 70% है. वहीं शहरी मतदाता 15.23% है. 20.64 लाख से अधिक की आबादी के साथ, यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है.

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