MP का एक ऐसा गांव जहां कभी पुलिस केस या मुकदमा नहीं हुआ, आपस में सुलझ जाते हैं विवाद
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MP का एक ऐसा गांव जहां कभी पुलिस केस या मुकदमा नहीं हुआ, आपस में सुलझ जाते हैं विवाद

मंडला जिले में आने वाला मलपठार गांव में कोई विवाद नहीं होता, यहां की सारी समस्याएं गांववाले आपसी सहमति से सुलझा लेते हैं, यहां के लोग किसी भी विवाद को लेकर पुलिस के पास नहीं जाते.

मलपठार गांव, मंडला

मंडलाः आज के वक्त में छोटी-छोटी सी बात पर अक्सर लड़ाई शुरू हो जाती है. मामले पुलिस थाने तक पहुंच जाता हैं. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एक गांव ऐसा भी है जहां आजतक कोई  पुलिस केस या मुकद्दमा दर्ज हीं नहीं हुआ है. तो शायद आप विश्वास नहीं करेंगे. लेकिन यह हकीकत हैं मध्य प्रदेश के मंडला जिले में आने वाले गांव मलपठार का. जहां सारे विवाद गांव में ही सुलझा लिए जाते हैं. किसी भी विवाद को गांव के बाहर नहीं ले जाया जाता है.

आपस में सुलझा लेतें है सभी विवाद
मंडला जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर की दूर घने जंगलों के बीच बसा मलपठार गांव अपने आप में ही कई मायनो में अनोखा है. क्योंकि इस गांव के लोग बेहद सादगी से रहते हैं, गांव की आबादी कुल 358 हैं जहां ग्रामीणों के बीच कभी भी विवाद की स्थिति नहीं बनी. अगर थोड़ा बहुत कुछ होता भी है तो गांव के लोग आपस में उसे सुलझा लेते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने आपसी सहमति बना रखी है कि किसी भी विवाद को लेकर पुलिस के पास नहीं जाया जाएगा. सारे विवाद गांव में ही सुलझाए जाएंगे. खास बात यह है कि केवल समझौता बस नहीं होता है बल्कि गांव वाले सामूहिक तौर पर जो भी निर्णय लेते हैं, वह फैसला सभी को मानना होता है.

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दोषी पाए जाने पर मिलती है यह सजा
अगर गांव में कोई विवाद होता है तो उसके लिए पंचायत बैठती है. मामले में अगर कोई  दोषी पाया जाता है तो उसे पूरे गांव के लोगों को गुड़ और चना का प्रसाद खिलाना पड़ता है. जिस पक्ष की गलती सामने आती है, उससे मामूली जुर्माना 21 या 51 रुपये लिया जाता है, यह जुर्माना गांव की पंचायत में जमा कर दिया जाता है. यदि किसी के पास जुर्माने का पैसा नहीं होता है तो प्रसाद खिलाकर विवाद सुलझा लिया जाता है

गांव में लागू है शराबबंदी
गांव की सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि यहां शराबबंदी कई दशक से चली आ रही है. जबकि यह गांव आदिवासी बाहुल्य है. ऐसे शराबबंदी इस गांव की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं. गांव में ना तो शराब बनती है और ना कोई इसका सेवन कर सकता है.  आदिवासी बाहुल्य गांव होने के चलते पहले यहां  हर काम में देवी-देवता को शराब चढ़ाने की परंपरा थी. लेकिन गांव के लोगों ने बैठककर इस परंपरा को भी बदल दिया और अब देवी-देवता को शराब की जगह केवल प्रसाद चढ़ाया जाता है.  गांव की पंचायत का फरमान है कोई भी शराब नहीं पी सकता. अगर कोई इस तरह की गलती करता भी है, तो फिर उसे सजा का प्रावधान भी बनाया गया है. इतना ही नही सामाजिक कार्यों में भी यहां के सभी लोग आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हैं यदि किसी के घर विवाह समारोह है तो उसे सभी लोग चावल, दाल और नगद राशि इक्कठी कर उस परिवार का सहयोग करते हैं.

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मलपठार गांव के स्कूल पदस्थ शिक्षक रितेश कुमार झा कहते हैं उनकी पोस्टिंग कई गांवों में हुई है, लेकिन उन्होंने ऐसा गांव अपने कैरियर में कही भी नहीं देखा, जहां लोग आपस में एक परिवार की तरह रहते हैं. गांव के सारे काम आपसी सहमति से होते हैं. यहां के लोग कभी थाने की सीढ़ियां तक नहीं चढ़े, यही मलपठार की सबसे बड़ी खासियत हैं, जो इस गांव को दूसरे गांवों से अलग बनाती है.  मंडला जिले के एसपी यशपाल सिंह भी इस गांव की जमकर तारीफ करते नजर आते है. एसपी का कहना है कि ये बहुत ही अच्छी बात है कि गांव के लोग सामूहिक निर्णय कर सारे फैसले लेते है और सबसे अच्छी बात है कि गांव में शराबबंदी लागू हैं. जिसके चलते यहां कोई विवाद नहीं होता है. उन्होंने कहा कि यह गांव नवाचार और आदर्श पेश करने के मामले में शहरों को भी सीख दे रहा है कि समाज में हमें कैसे रहना चाहिए. जिले के दूसरे गांव के लोगों को भी मलपठार से सबक लेना चाहिए.

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