अध्यक्ष के चुनाव के बाद उपाध्यक्ष का चयन भी होना है. इसका फैसला अध्यक्ष करेंगे कि उपाध्यक्ष का चुनाव कब करवाना है. पूरी संभावना है कि अध्यक्ष के साथ उपाध्यक्ष पद पर भी भाजपा अपने सदस्य को लाए. क्योंकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने भी दोनों पद अपने पास रखे थे.
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भोपाल: मध्य प्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव 22 सितंबर को होगा. इसके लिए तीन दिनों तक सत्र भी चलेगा. इसके बाद वित्त वर्ष 2020-21 का बजट समेत कृषि उपज मंडी अधिनियम संशोधन, वित्त अध्यादेश, श्रम विधि संशोधन और लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी संशोधन जैसे विधेयक पास हो सकते हैं. कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव न कराने पर आपत्ति उठाई थी.
अध्यक्ष के चुनाव के बाद उपाध्यक्ष का चयन भी होना है. इसका फैसला अध्यक्ष करेंगे कि उपाध्यक्ष का चुनाव कब करवाना है. पूरी संभावना है कि अध्यक्ष के साथ उपाध्यक्ष पद पर भी भाजपा अपने सदस्य को लाए. क्योंकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने भी दोनों पद अपने पास रखे थे.
अभी ऐसी है विधानसभा की स्थिति
प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा द्वारा विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव कराया जाएगा. वर्तमान में विधानसभा में विधायक संख्या 203 हैं, जिनमें से कांग्रेस की सदस्य संख्या 89 है जबकि भाजपा के 107 विधायक हैं. भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत है और विधानसभा अध्यक्ष के उसके प्रत्याशी की जीत में फिलहाल संशय की स्थिति नहीं दिखाई दे रही है.
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर कब्जा चाहेगी बीजेपी
हालांकि भाजपा की राह भी आसान नहीं होगी. कांग्रेस विधानसभा के भीतर भाजपा को वॉकओवर देने के बजाय चुनौती दे सकती है, क्योंकि विधानसभा चुनाव 2018 के बाद कमल नाथ सरकार को भाजपा ने भी अपना प्रत्याशी खड़ा कर चुनौती दी थी. इस कारण फिर कांग्रेस ने उपाध्यक्ष का पद भी अपने पास रखने के लिए चुनाव कराया था.
भाजपा के इन वरिष्ठ नेताओं के नाम आगे
भाजपा में विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए सशक्त दावेदारों में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा, केदार शुक्ला, गिरीश गौतम, नागेंद्र सिंह नागौद, यशपाल सिंह सिसौदिया और अजय विश्नोई के नाम अध्यक्ष पद की दौड़ में हैं.
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सीतासरन शर्मा को मिल सकता है लाभ
राजनीतिक जानकारों की मानें तो डॉ. सीतासरन शर्मा का पिछला कार्यकाल शिवराज सरकार के अनुकूल रहा था तो उनसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी. जबकि नागेंद्र सिंह नागौद पांचवीं बार और केदार शुक्ला, अजय विश्नोई व गिरीश गौतम चौथी बार के विधायक हैं. इन्हें वरिष्ठता के बावजूद मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला है तो बहुत संभावना है इनमें से किसी एक के नाम पर सहमति बन सकती है.
अजय विश्नोई को उठाना पड़ सकता है खामियाजा
जबकि अजय विश्नोई को पार्टी लाइन के बाहर जाकर बयान देने का खामियाजा उठाना पड़ सकता है. सूत्रों की मानें तो उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने से सदन के भीतर शिवराज सरकार को नुकसान हो सकता है. वहीं तीन बार के विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया सदन में दोनों कार्यकाल में सक्रिय रहे हैं. उनकी इस सक्रियता और संसदीय परंपराओं-नियमों के अंतर्गत काम करने की शैली का लाभ मिल सकता है.
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