सरकार जाने के वक्त 'हम खरीद-फरोख्त की राजनीति नहीं करते' कहने वाली कांग्रेस अब ये तर्क देने लगी है कि 'शुरू किसने किया था'. उपचुनाव की गर्म सियासत पर पर एक खास रिपोर्ट.
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भोपाल: मध्य प्रदेश में रूठने-मनाने का दौर चरम पर है. उपचुनाव वाली 27 विधानसभा सीटें सरकार बनने और बिगाड़ने का खेल कर सकती हैं. इसलिए सियासी दलों की ज़ोर-आज़माइश और उठापटक अब दल-बदल के तौर पर दिखाई देने लगी है. चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के बाद बालेंदु शुक्ल, केएल अग्रवाल और अब सतीश सिकरवार के बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आने के बाद संकेत मिल रहे हैं कि ये दल-बदल अब और बढ़ेगा. सरकार जाने के वक्त 'हम खरीद-फरोख्त की राजनीति नहीं करते' कहने वाली कांग्रेस अब ये तर्क देने लगी है कि 'शुरू किसने किया था'. उपचुनाव की गर्म सियासत पर पर एक खास रिपोर्ट.
बिना लालच के कांग्रेस में आ रहे लोग
कांग्रेस उपाध्यक्ष और संगठन प्रभारी चंद्र प्रभाष शेखर बीजेपी नेताओं पर डोरे डालने के सवाल कर कहते हैं, 'ये शुरू किसने किया था. कांग्रेस के लोग तो पद के लालच में बीजेपी में शामिल हुए और कांग्रेस की सरकार गिराई. लेकिन हमारे पास जो लोग आ रहे हैं, वो किसी लोभ लालच में नहीं आ रहे हैं. वो कांग्रेस की विचारधारा को पसंद कर रहे हैं.' शेखर की दलील से जाहिर होता है कि तिलमिलाई कांग्रेस सत्ता हासिल करने के लिए कितनी बेकरार है. ये बयान आने वाले वक्त में दल-बदल के तेज होने का भी संकेत है. कांग्रेस ने बीजेपी में मची खलबली का फायदा उठाना शुरू किया है.
BJP का खेल अब कांग्रेस खेल रही है
दरअसल, सिंधिया के खिलाफत में झंडा बुलंद कर राजनीति करने वाले बीजेपी नेताओं के लिए इस वक्त असहज हालात हैं. इन बीजेपी नेताओं को मुसीबत उन सिंधिया समर्थकों से भी है, जो कभी कांग्रेस में रहकर इनके सियासी प्रतिद्वंद्वी थे. लेकिन अब वे अपनी ही बीजेपी में शामिल होकर पार्टी में ज्यादा तवज्जो हासिल कर रहे हैं. इससे इन बीजेपी नेताओं की महत्वाकांक्षाओं पर संकट खड़ा आ गया है. कांग्रेस ने इसी कमजोर वक्त का फायदा उठाकर उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की सपना दिखाया है. यानी जो गेम कभी बीजेपी ने खेला था, वो अब कांग्रेस खेल रही है.
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कुछ हमारे साथ, कुछ जा भी सकते हैं
बीजेपी सरकार में मंत्री और चुनाव प्रबंध समिति के संयोजक भूपेंद्र सिंह कहते हैं चुनावी दौर में इधर-उधर का खेल चलता रहता है. बहुत सारे लोग हमारे साथ आए हैं तो कुछ जा भी सकते हैं. वे इसे चुनाव के दौर की राजनीति करार देते हैं. वे कहते हैं कि बीजेपी एक कार्यकर्ता आधारित पार्टी है, जिसमें विचारधारा सर्वोपरि है.
हमारी डोरी पर पतंग ऊपर उड़ रही है- आलोक संजर
वैसे बीजेपी ने सिंधिया के आने के बाद पार्टी के अंदर उठ रही नाराजी को वक्त पर भांप लिया था, लिहाज़ा मंत्री, विधायक और सांसदों को ये जिम्मा दिया गया कि वे सिंधिया समर्थकों का बीजेपी के ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बनाएं. इस डैमेज कंट्रोल के साथ बीजेपी का दूसरा प्लान हताश कांग्रेस को डेमेज करने का भी है. सत्ता जाने से हताश कांग्रेसियों की उम्मीद तोड़ने के लिए कुछ और नामवर नेताओं को बीजेपी में शामिल करवाया जा सकता है. बीजेपी के पूर्व सांसद आलोक संजर कहते हैं कि हम किसी पर डोरे नहीं डाल रहे हैं. हमारी डोरी पर पतंग ऊपर उड़ रही है. देश के साथ कई राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. विचारधारा से प्रभावित होकर कोई शामिल होना चाहता है तो उसका स्वागत किया जाएगा.
नया नहीं है एमपी में दलबदल
वैसे, दल बदल एमपी में नया नहीं है, बीजेपी ये खेल खेलती रही है. कांग्रेस की कमजोर कड़ियों को जोड़ने का सिलसिला 2013 नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हुआ था... तब विधानसभा के चलते सत्र में चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोड़कर चौंका दिया था. इसके बाद कांग्रेस सांसद राव उदय प्रताप सिंह ने लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस छोड़ दी. भागीरथ प्रसाद ने तो लोकसभा चुनाव का टिकट मिलने के बाद अगली सुबह ही बीजेपी का दामन थामा और बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा. छिटपुट तौर पर ये सिलसिला चलता रहा और बीजेपी चौंकाती रही. लेकिन कमल नाथ की चलती सरकार में बीजेपी उनकी नाक के नीचे से 22 विधायकों को लाकर सत्ता का सिंहासन चुरा ले गई और देश का चौंकाने वाला घटनाक्रम किया. बाद में 3 अन्य विधायकों का अलग-अलग कांग्रेस से इस्तीफा करवाया गया और अपनी ताकत और गहरी प्लानिंग का एहसास कराया गया था. चूंकि अब कमल नाथ जैसे ताकतवर नेता के साथ कांग्रेस भी आक्रामक मूड में है. इसलिए आने वाला वक्त दिलचस्प चुनावी तस्वीरें दिखा सकता है.
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