Jyotiraditya Scindia Birthday: मोदी सरकार में मंत्री और ज्योतिरादित्य सिंधिया आज अपना 55 वां जन्मदिन मना रहे हैं. 2025 का साल उनके सियासत के लिए भी अहम साबित हो सकता है.
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Jyotiraditya Scindia: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आज अपना 55वां जन्मदिन मना रहे हैं, भारतीय राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिवार की एक अलग पहचान रही है. ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया को सियासत विरासत में मिली थी. अपने दिवंगत पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद वह राजनीति में उतरे और 2002 में पहली बार सांसद चुने गए थे. 2002 से लेकर 2024 तक उनके सियासी जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे गए हैं, लेकिन मध्य प्रदेश और भारतीय राजनीति में उनका अपना एक अलग मुकाम है. 2025 भी सिंधिया के लिए खास हो सकता है, इस वक्त वह मोदी सरकार में सीनियर मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, जहां आने वाले समय में उन्हें और भी बड़ी जिम्मेदारियां मिल सकती है.
2020 के बाद बदल गई ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति
ज्योतिरादित्य सिंधिया यूं तो राजनीति में 23 साल का सफर पूरा कर चुके हैं, लेकिन साल 2020 उनके सियासी जीवन का सबसे अहम साल माना जाता है. पिता के निधन के बाद कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले सिंधिया ने 2020 में अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा फैसला लेते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया. उनके बीजेपी में आने से मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई जिसके बाद सिंधिया राज्य की राजनीति में एक बड़ा पॉवर सेंटर बनकर उभरे हैं, मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी उन्हें मंत्री के रूप में बड़ी जिम्मेदारी दी गई जबकि इस बार भी वह अहम मंत्रालय संभाल रहे हैं. मध्य प्रदेश की सरकार में भी सिंधिया समर्थक मंत्रियों का भी दबदबा देखा जा सकता है. कभी कांग्रेस के सबसे बड़े झंडाबरदार माने जाने वाले सिंधिया आज देश में बीजेपी का बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे हैं. पीएम मोदी और अमित शाह से उनकी नजदीकियां उनके सियासी कद की कहानी बयां करती है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के जीवन की 10 बड़ी बातें
2024 में जीता लोकसभा चुनाव
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए 2024 का साल एक तरह से संसद में वापसी वाला साल भी कहा जा सकता है. सिंधिया परिवार का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाने वाली मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन पांच साल बाद ही सिंधिया ने बीजेपी के टिकट पर 2024 में गुना सीट पर 5 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल करके संसद में जोरदार एंट्री मारी.
मोदी सरकार में अहम जिम्मेदारी
ज्योतिरादित्य सिंधिया को भारत के दो प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनुभव है. 2007 में वह पहली बार पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की केंद्रीय राज्यमंत्री बने थे, जबकि 2012 से मई 2014 तक वह मनमोहन सिंह कैबिनेट में स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री थे. 2021 में उन्हें मोदी सरकार में भी मंत्री बनाया गया, जबकि 2024 में तीसरी बार मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें सूचना एवं प्रसारण वह उत्तर पूर्वी राज्यों के मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
पिता-पुत्र ने संभाला एक ही मंत्रालय
ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम केंद्रीय मंत्री के रूप में एक अनोखा रिकॉर्ड भी है. क्योंकि उनके स्वर्गीय पिता और वह अलग-अलग समय में एक ही मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की नागरिक उड्डयन विभाग के मंत्री रह चुके हैं, जबकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें भी नागरिक उड्डयन विभाग की जिम्मेदारी मिली थी.
5 बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद
ज्योतिरादित्य सिंधिया अब तक पांच बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद चुने जा चुके हैं. 2002 में उन्होंने पहली बार गुना लोकसभा सीट से चुनाव जीता था, इसके बाद 2004, 2009, 2014 और 2024 में भी उन्होंने गुना से लोकसभा का चुनाव जीता था, जबकि 2019 में बीजेपी ने उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा था.
सिंधिया स्कूल के निदेशक
ग्वालियर का सिंधिया स्कूल भारत के सबसे फेमस स्कूलों में से एक माना जाता है, जहां कई बड़ी हस्तियां पढ़ाई कर चुकी हैं, यह स्कूल ब्रिटिश शासनकॉल में खुला था. ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर में सिंधिया स्कूल के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के निदेशक हैं. उनके परदादा माधवराव सिंधिया प्रथम ने 1897 में इस स्कूल की स्थापना की थी, जहां राजकुमारों और रईसों को शिक्षा दी जाती थी, लेकिन आजादी मिलने के बाद यह स्कूल सभी के लिए खोल दिया गया था.
रानी लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल पुष्प अर्पित किए
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी में आने के बाद अपने राजनीतिक जीवन में कई बदलाव किए हैं. 2021 में सिंधिया ने ग्वालियर में स्थित झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल पर पहुंच पुष्प अर्पित किए जो उनका बड़ा फैसला माना जाता है. क्योंकि इससे पहले सिंधिया घराने का कोई महाराज रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल पर नहीं गया था, इतिहास की बात करें तो रानी लक्ष्मीबाई की मौत के बाद सिंधिया परिवार पर देशद्रोह के आरोप लगते रहते थे, लेकिन सिंधिया ने यहां बड़ी पहल की थी.
बीजेपी-कांग्रेस में रुतबा
यूं तो सिंधिया परिवार का दबदबा भारतीय राजनीति में हमेशा दिखा है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया इस परिवार के ऐसे शख्स हैं जिनका रुतबा देश की दो बड़ी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस में एक जैसा दिखता है. कांग्रेस में रहते हुए सिंधिया गांधी परिवार के सबसे करीबी सदस्यों में माने जाते थे, उनकी राहुल गांधी के साथ दोस्ती जगजाहिर थी, बाद में बीजेपी में आने के बाद भी उनका कद तेजी से बढ़ा है. पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक से उनकी नजदीकियां मानी जाती हैं.
सिंधिया परिवार के महाराज
ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के शाही सिंधिया परिवार के महाराज भी माने जाते हैं. जो देश का बड़ा घराना माना जाता है, ग्वालियर प्रसिद्ध जयविलास पैलेस सिंधिया की देखरेख में चलता है, जहां देश और दुनिया के कई बड़े लोग आ चुके हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया का परिवार
ज्योतिरादित्य सिंधिया की शादी गुजरात के वड़ोदरा राजघराने की राजकुमारी प्रियदर्शनी सिंधिया से हुई थी. उनके परिवार में पत्नी, बेटा आर्यमान सिंधिया और बेटी अन्नया राजे सिंधिया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सिंधिया के बेटे आर्यमान सिंधिया भी सियासत में एंट्री कर सकते हैं. पिता के लोकसभा क्षेत्र में वह लगातार सक्रिए बने हुए हैं.
क्रिकेट से लगाव
ज्योतिरादित्य सिंधिया उन चुनिंदा राजनेताओं में शामिल हैं, जिनका राजनीति के साथ-साथ क्रिकेट से भी लगाव है, वह मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं, हाल ही उनके पिता के माधवराव सिंधिया के नाम पर ग्वालियर में बड़ा क्रिकेट स्टेडियम बना है, जिसका श्रेय सिंधिया को जाता है, यहां अंतरराष्ट्रीय मुकाबला भी हो चुका है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अहम हो सकता है 2025
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए 2025 भी अहम हो सकता है. वह मोदी सरकार में बड़ी जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय राजनीति के उन नेताओं में शामिल हैं जो भविष्य में लंबी रेस के नेता माने जा रहे हैं. चाहे बात मध्य प्रदेश की राजनीति की हो या फिर केंद्रीय राजनीति की, सिंधिया का दखल हर जगह दिखता है. ऐसे में उनकी सियासत पर राजनीतिक जानकारों नजरें जरूर टिकी रहती हैं.
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