इस साल भी नहीं होगा अनूठा हिंगोट युद्ध, कोरोना के कारण प्रशासन ने नहीं दी परमिशन
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इस साल भी नहीं होगा अनूठा हिंगोट युद्ध, कोरोना के कारण प्रशासन ने नहीं दी परमिशन

200 साल से चली आ रही परंपरा इस साल भी नहीं होगी पूरी. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के गौतमपुरा में दिवाली (Diwali) के दूसरे दिन खेला जाने वाला हिंगोट युद्ध (Hingot Yudh) इस साल भी नहीं होगा. इंदौर (Indore) से लगे गोतमपुरा में होने वाले प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध पर विवाद खड़ा हो गया था.

इस साल भी नहीं होगा अनूठा हिंगोट युद्ध, कोरोना के कारण प्रशासन ने नहीं दी परमिशन

इंदौर: 200 साल से चली आ रही परंपरा इस साल भी नहीं होगी पूरी. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के गौतमपुरा में दिवाली (Diwali) के दूसरे दिन खेला जाने वाला हिंगोट युद्ध (Hingot Yudh) इस साल भी नहीं होगा. इंदौर (Indore) से लगे गोतमपुरा में होने वाले प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध पर विवाद खड़ा हो गया था. 200 साल पुरानी परंपरा पर पिछले साल कोरोना (Corona) के चलते रोक लगानी पड़ी थी. इस साल लोगों को उम्मीद थी कि अनुमति मिल जाएगी. इस कारण गांव वालों ने हिंगोट की तैयारी भी कर ली थी. लेकिन ये नहीं हुआ और इस साल भी ये परंपरा पूरी नहीं हो सकेगी.

इंदौर से करीब 60 किमी दूर गौतमपुरा में हर साल दीपावली के दूसरे दिन गौतमपुरा और रूणजी गांव के बीच हिंगोट युद्ध होता है. इसमें गांववाले एक-दूसरे पर बारूद से बने हिंगोट एक दूसरे पर फेंकते हैं. इसमें कई बार ग्रामीण घायल भी होते हैं और कई बार योद्धाओं की मौत भी हो जाती है. इस खास युद्ध के लिए दीपावली से करीब दो महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती है. लोग हिंगोट का गूदा निकालकर उसे सुखा लेते हैं. इसके बाद गौतमपुरा में लगभग हर घर में हिंगोट भरने का काम किया जाता है.

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हिंगोट एक तरह का फल है, जो हिंगोरिया नाम के पेड़ पर लगता है. नींबू की तरह दिखने वाले इस फल के अंदर बारूद भरा जाता है. गौतमपुरा और रुणजी के गांव वाले महीनों पहले चंबल नदी से लगे इलाकों में जाते हैं और पेड़ों से हिंगोट तोड़कर ले आते हैं. इसका गूदा निकालकर इसे सुखाकर फिर इसमें बारूद भरा जाता है.  इसके बाद हिंगोट में बांस की पतली किमची लगाकर तीर जैसा बना दिया जाता है. युद्ध के लिए हिंगोट जलाकर दूसरे दल के योद्धाओं पर फेंका जाता है. खुद को बचाने के लिए हाथ में ढाल रखी जाती है.

मुगल काल में गौतमपुरा क्षेत्र में रियासत की सुरक्षा में तैनात सैनिक दुश्मनों पर हिंगोट दागते थे. इसके लिए कई महीनों तक उन्हें अभ्यास करवाया जाता था. बाद में यही अभ्यास परंपरा में बदल गई और सालों से निभाई जा रही है, लेकिन पिछले दो सालों से इसपर रोक लगई हुई है.

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