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इंदौर: इंदौर (Indore) के गौतमपुरा में हर वर्ष दीपावली के अगले दिन होने वाला हिंगोट युद्ध (Hingot Yudh) इस बार दीपावली के दो दिन बाद यानी आज बुधवार को हो रहा है. युद्ध के मैदान में कलंगी और तुर्रा सेनाओं के वीर एक दूसरे के सामने हैं. उनके हाथ में सुलगते हिंगोट हैं, जो एक दूसरे पर फेंके जा रहे हैं. युद्ध के पहले दोनों सेनाओं के योद्धाओं ने भगवान देवनारायण के मंदिर पहुंचकर आशीर्वाद लिया. उसके बाद ये खतरनाक खेल खेला गया.
गौरतलब है कि गौतमपुरा में करीब दो सौ वर्षों से हिंगोट युद्ध की परंपरा चल रही है. हालांकि कोरोना महामारी की वजह से दो वर्ष इसका निर्वाहन नहीं हो सका था. हजारों लोग युद्ध की इस परंपरा के साक्षी बनते हैं. खास बात यह कि इस युद्ध में कोई हार-जीत नहीं होती. गले मिलकर योद्धा युद्ध की शुरुआत करते हैं और गले मिलकर ही युद्ध का समापन होता है. गौतमपुरा के योद्धाओं के दल का नाम तुर्रा होता है तो रूणजी गांव के योद्धाओं का कलंगी.
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दो महीने पहले शुरू हुई तैयारी
इंदौर से करीब 60 किमी दूर गौतमपुरा में हर साल दीपावली के दूसरे दिन गौतमपुरा और रूणजी गांव के बीच हिंगोट युद्ध होता है. इसमें गांववाले एक-दूसरे पर बारूद से बने हिंगोट एक दूसरे पर फेंकते हैं. इसमें कई बार ग्रामीण घायल भी होते हैं और कई बार योद्धाओं की मौत भी हो जाती है. इस खास युद्ध के लिए दीपावली से करीब दो महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती है.
पूजा के बाद शुरू होता युद्ध
युद्ध मैदान के पास बने देवनारायण भगवान के मंदिर में पूजा के साथ युद्ध की शुरुआत होती है. हिंगोट युद्ध कैसे शुरू हुआ और यह परंपरा में कैसे तब्दील हुआ इसका प्रमाण तो किसी के पास नहीं लेकिन बताया जाता है कि मुगल काल में गौतमपुरा क्षेत्र में रियासत की सुरक्षा में तैनात सैनिक मुगल सेना के घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे. निशाना सटीक बैठे इसके लिए वे कड़ा अभ्यास करते थे. धीरे-धीरे यही अभ्यास परंपरा में बदल गया.
इसे कहा जाता है हिंगोट
हिंगोरिया के पेड़ का फल होता है हिंगोट. नींबू आकार के इस फल का बाहरी आवरण बेहद सख्त होता है. युद्ध के लिए पेड़ों से हिंगोट तोड़कर इसका गूदा निकालकर इसे सुखाया जाता है. फिर इसमें बारूद भरकर इसे तैयार किया जाता है. हिंगोट सीधी दिशा में चले, इसके लिए हिंगोट में बांस की पतली किमची लगाकर इसे तीर जैसा बना दिया जाता है.