छत्तीसगढ़ में आरक्षण बिल पर क्यों हो रही तकरार, समझिए पूरा विवाद और इसका इतिहास!
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छत्तीसगढ़ में आरक्षण बिल पर क्यों हो रही तकरार, समझिए पूरा विवाद और इसका इतिहास!

CG Reservation Controversy: छत्तीसगढ़ की राजनीतिक पटल पर इस समय आरक्षण बिल का मामला गर्माया हुआ है. इस मामले को लेकर भूपेश बघेल सरकार और राज्यपाल अनुसूईया उइके के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि ये मामला क्या है और विवाद किस बात पर है?

छत्तीसगढ़ में आरक्षण बिल पर क्यों हो रही तकरार, समझिए पूरा विवाद और इसका इतिहास!

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में इस समय राज्यपाल और भूपेश बघेल सरकार (Bhupesh Baghel Government) के बीच आरक्षण बिल को लेकर विवाद चल रहा है. हाल ही में राज्यपाल अनुसूईया उइके (Governor Anusuiya Uikey) ने बिल साइन नहीं किया तो मामला और गरमा गया. नया आरक्षण बिल 1 दिसंबर को छत्तीसगढ़ विधानसभा में पास हो गया था. इसके बाद संवैधानिक मान्यता के लिए बिल राज्यपाल के पास गया, जहां उन्होंने इसपर साइन करने से मना कर दिया. इसके बाद से भूपेश सरकार और राज्पाल के बीच बात नहीं बन पा रही है और राज्य की राजनीति में मामला गर्मा गया है.

क्या है मामला
राज्यपाल का मानना है कि मामला कोर्ट में जाएगा तो सरकार 76 प्रतिशत आरक्षण को सही कैसे ठहराएगी. पता हो कि हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक करार दिया था. आदिवासियों का आरक्षण 32 से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है, जिसका जमकर विरोध हुआ. इसके बाद राज्य में इसका विरोध हुआ था. बड़ा सवाल ये है कि जब कोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को अवैधानिक घोषित किया है तो 76 प्रतिशत को कैसे वैध करार दे पाएंगे. नए बिल को लाया जा रहा था क्योंकि 19 सितंबर 2022 को छत्‍तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 58% आरक्षण को असंवैधानिक बता दिया. उस समय हाई कोर्ट की पीठ ने आरक्षण की 58% सीमा को रद्द कर दिया था. पीठ ने कहा था कि आरक्षण की सीमा को 50% से ज्यादा बढ़ाया नहीं जा सकता. 

विवाद किस बात पर है?
नए बिल में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी आरक्षण, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी आरक्षण, ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण और EWS के लिए चार फीसदी आरक्षण दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि कहीं भी आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता. ऐसे में विवाद होना ही है. 

राज्य में पहले कैसा था आरक्षण का हिसाब
58 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था छत्तीसगढ़ में 2012 से थी. प्रदेश में 2012 से पहले SC को 16, ST को 20 और OBC 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था. इसे जोड़ा जाए तो 50 प्रतिशत आरक्षण. उस समय वहां बीजेपी की सरकार थी. इसके बाद बीजेपी की रमन सिंह की सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 58% कर दिया. नए नियम के तहत SC को 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, ST को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और OBC को 14 प्रतिशत ही आरक्षण मिलने लगा. उस समय बीजेपी सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया और फैसले को 2012 में ही छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दे दी गई. करीब 10 साल तक केस चला और 19 सितंबर 2022 को अदालत ने 58% आरक्षण को असंवैधानिक बता दिया. इसके बाद बढ़े हुए आरक्षण के तहत जिन उम्‍मीदवारों को नियुक्तियां मिली वो वैसी ही रहीं लेकिन आगे की भर्तियों में कोर्ट के बताए नियमों का पालन किया गया.

बीजेपी पर हमलावर कांग्रेस
आरक्षण विधेयक पर अब तक हस्ताक्षर नहीं होने पर राज्य में कलह जारी है. मामले पर पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि पार्टी संविधान बदलना चाहती है. आरक्षण देना नहीं चाहती, यह भाजपा और आरएसएस का हिडन एजेंडा है. मोहन मरकाम ने कहा है कि महामहिम ने ही सरकार को चिट्ठी लिखकर सत्र बुलाने को कहा था.उनकी मंशा के अनुरूप सरकार ने तत्परता दिखाई और विधेयक पास करवाया. अब  भाजपा के दबाव में राज्यपाल हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं. भाजपा 15 साल सरकार में रही है. सत्ता में कैसे आये इसकी तैयारी वो कर रही है, लेकिन इसका कुछ असर नहीं होगा.

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