Holi 2024: आग के अंगारों पर चलने की अजीब होली की परंपरा मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में मनाई जाती है. इस परंपरा को चुल या धुलेंडी कहते हैं. यहां पुरुष, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग चुल पर चलते है. मान्यता है हिंगलाज माता से मांगी हुई मन्नत पूरी होने पर मन्नत धारी चुल पर चलते हैं.
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Holi 2024: देश भर में होली का त्यौहार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. ऐसा ही एक अजीबोगरीब तरीका मध्य प्रदेश में देखा गया है. झाबुआ जिले में होली पर आदिवासी दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं. महिला हो या पुरुष सभी इस परंपरा को निभाते हैं. यहां तक कि बच्चे और बुजुर्ग भी पीछे नहीं रहते हैं. वह भी इस परंपरा में भाग लेते हैं. आखिर क्या है ये परंपरा?
झाबुआ जिले के करवड, टेमरिया, सारंगी और रायपुरिया इलाकों में चुल या धुलेड़ी पर्व मनाया जाता है. दरअसल, दहकते अंगारों पर चलने को स्थानीय भाषा में ''चुल'' पर चलना कहा जाता है. दर्जनभर से अधिक गांव में धुलेटी पर्व की शाम सैकड़ों मन्नत धारी दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलकर अपनी मन्नत रखते हैं. इन मन्नत धारियों में बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग भी शामिल होते हैं. मान्यताओं के अनुसार मन्नत धारी ''हिंगलाज माता'' की मन्नत लेते हैं. उनका कोई ख़ास काम हो जायेगा तो वे धुलेटी पर ''चुल'' पर चलेंगे. जब उन्हें लगता है कि उनकी फरियाद हिंगलाज माता ने मन्नत पूरी कर दी है तो वे बाक़ायदा नंगे पैर दहकते अंगारों पर चलकर अपनी मन्नत उतारते हैं.
बच्चे भी होते हैं शामिल
गांव वालों का कहना है कि यह दैवीय चमत्कार है जो दहकते अंगारों पर दिखता है. मन में माता के प्रति आस्था हो तो दहकते अंगारों से कुछ नहीं होता. श्रद्धा उम्र नहीं देखती. इसलिए माता के आशीर्वाद से हर कोई इस आग को पार कर लेता है. बच्चे हो या बड़े. झाबुआ में दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलना इसका एक जीता-जागता उदाहरण है. हर साल होली के धुलेटी पर्व पर यहां इस प्रथा को पूरा करने के लिए हजारों लोगों को जमावड़ा लगता है, जो इस प्रथा के साक्षी होते हैं.
ऐसे मनाया जाता है चुल
कई सालों से इस परंपरा को पूरी श्रध्दा से निभाया जा रहा है. लोग हिंगलाज माता देवी की पूजा कर हाथ में जल और नारियल लेकर दहकते अंगारों पर चलते हैं. अंगारों पर चलने वालों में महिलाएं, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं. धुलेटी में बड़ी संख्या में चुल पर चलने के लिए लोगों की कतार लगती है. मन्नत धारी मन्नत पूरी होने पर इन अंगारों पर चलने के लिए आते हैं. सबकी अपनी अपनी मनोकामना होती है. होली के दिन लोग पहले रंग-गुलाल खेलने हैं फिर खतरे का ये खेल शुरू हो जाता है.
खतरे का खेल
चुल पर चलना काफी खतरनाक भी हो सकता है. अंगारों की उठती लपटों के बीच श्रद्धालु निकलते हैं, लेकिन इसे चमत्कार ही कह सकते हैं कि अब तक कोई न कोई हादसा नहीं हुआ न ही किसी के पैर जले हैं. करवड़ और टेमरिया गांव में चुल की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है. यहां हाथों से चुल खोदकर उसमें लकड़ी जलाकर अंगारे तैयार किए जाते हैं. बीच में अंगारों पर घी भी डाला जाता है. इसके बाद गांव के पनघट से लोग जल लेकर शिव मंदिर पर चढ़ाते हैं. चुल पर चलने वाले लोग मानते हैं कि हिंगलाज माता की कृपा से काम बन जाएगें. हर साल सैकड़ों लोग चुल पर चलते हैं.
रिपोर्ट: उमेश चौहान, झाबुआ