Naag Panchami: नाग पंचमी के मौके पर देर रात 12 बजते ही नागचंद्रेश्वर के द्वार खोले गए. त्रिकाल पूजन के बाद दर्शन का क्रम शुरू हुआ. महंत विनीत गिरी महाराज व मंदिर के पुजारियों ने भगवान का दुग्धाभिषेक किया. बड़ी संख्या में भक्तों का जनसैलाब उमड़ा.
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Ujjain Mahakal: विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकालेश्वर के धाम में शिखर के तीसरे खण्ड में प्रतिमा रूप में विराजमान नागचंद्रेश्वर के पट रात 12:00 बजते ही खोले गए. नागचंद्रेश्वर को सिद्धेश्वर नाम से भी जाना जाता है. खास बात ये है कि यह शेषशय्या पर विराजमान शिव परिवार की विश्व में एकमात्र प्रतिमा है. एक और खास बात यह है कि इस प्रतिमा के दर्शन साल में सिर्फ एक ही बार होते हैं. यानी हर नागपंचमी के मौके पर मंदिर के पट खोले जाते हैं.
मान्यता है प्रतिमा रूप में विराजमान भगवान नागचंद्रेश्वर एकांतवास में ध्यान के लिए चले जाते हैं और सिर्फ नागपंचमी को ही दर्शन देते हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि पहले नागचंद्रेश्वर भगवान के दर्शन साल भर हुआ करते थे, लेकिन हादसों की आशंका को देखते हुए अब साल में 1 ही दिन खोला जाता है.
11वीं सदी का है मंदिर
यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी में स्थापित गई थी, जिसमें भगवान शिव सात फनों से सुशोभित हो रहे हैं. शिव-पार्वती के दोनों वाहन नंदी व सिंह विराजित हैं. मूर्ति में श्री गणेश की ललितासन मूर्ति, उमा के दांयी ओर कार्तिकेय की मूर्ति व ऊपर की ओर सूर्य-चंद्रमा भी हैं. भगवान के गले व भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं. इनके दर्शन लिए भारी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचते हैं.
इस तरह होती है पूजा
पुजारी ने बताया कि रात 12 बजे से सुबह 10 बजे तक शासकीय पूजा रहती है, जिसमें जिला अधिकारी परिवार के साथ भगवान का पूजन करते हैं. फिर शाम 7 बजे दोबारा पूजन होता है. संध्या आरती होती है. रात 11 से 12 बजे के बीच कपूर आरती करके द्वार साल भर के लिए फिर बंद कर दिए जाते हैं. इसी क्रम के साथ मंदिर में दर्शन 24 घंटे निरंतर जारी रहते हैं.
महाकालेश्वर के शिखर पर हैं नागचंद्रेश्वर
पुजारी ने बताया कि श्री महाकालेश्वरः मंदिर से जुड़ा ये खण्ड भगवान का शिखर है और यहां महाकाल स्वयं भू रूप में विराजमान हैं. ये तीन खंडों में बंटा है. पाताल में महाकालेश्वर, ऊपर ओंकारेश्वर और तीसरे तल पर नागचंद्रेश्वर व सबसे ऊपर शिखर ध्वज है. मंदिर में दो रूप में नागचंद्रेश्वर विराजमान है. शिवलिंग और साकार रूप में दीवार के ऊपर उकेरी हुई प्रतिमा जिसमें शेष शैय्या के ऊपर भगवान शिव परिवार सहित बिना किसी गण के विराजमान है. वर्ष में एक बार दर्शन करने की परंपरा बनाई गई है. भक्त दूध अर्पित कर भगवान को प्रसन्न कर आशीर्वाद लेते हैं.
नहीं पता कहां से आई प्रतिमा
पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि ये जो शेष शैय्या पर विराजमान शिव परिवार है. ये प्रतिमा कब आई कैसे आई इसका प्रमाण हम पुजारियों में से तो किसी के पास नहीं है. जहां तक संज्ञान में है मंदिर समिति के पास भी इसको लाने का रिकॉर्ड नहीं होगा. हमारे अनुसार तो इस प्रतिमा को यहीं गढ़ा गया है. पहले निर्माण कार्य पत्थरों से किया जाता था. कारीगर चीनी हतोड़े से काम करते थे. प्रतिमाएं गढ़ने में बड़े माहिर होते थे. उनके पास जो कलाएं थी आज भी जीवित हैं.रिपोर्ट - राहुल सिंह राठौड़
रिपोर्ट: राहुल सिंह राठौड़