आज पूरी दुनिया में बाघों को लेकर उत्सव सा मनाया जा रहा है. आज के दिन को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाती है. ऐसे में हम आपको बता रहे हैं देश और प्रदेश की शान रीवा के सफेद शेरों की बारे में जिसे लेकर हर कोई जानना चाहता है.
रीवा के सफेद शेरों का इतिहास 1951 से शुरू होता है. 27 मई 1951 को सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के पनखोरा गांव के नजदीक जंगल में सफेद शेर का बच्चा पकड़ा गया था. सफेद शावक मोहन को गोविंदगढ़ किले में रखा गया.
1955 में पहली बार सामान्य बाघिन के साथ सफेद शेर मोहन की ब्रीडिंग कराई गई, जिसमें एक भी सफेद शावक नहीं पैदा हुए.
30 अक्टूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली राधा नाम की बाघिन ने चार शावक जन्मे जिनका नाम मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा रखा गया. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति की इच्छा के बाद मोहिनी नाम की सफेद बाघिन को 5 दिसंबर 1960 को अमेरिका ले जाया गया जहां पर ह्वाइट हाउस में भव्य स्वागत किया गया.
19 वर्षों तक जिंदा रहे तीन मादाओं के साथ मोहन का संपर्क रहा. गोविंदगढ़ में लगातार सफेद शावक पैदा होते गए. मोहन से कुल 34 शावक जन्मे जिसमें 21 सफेद थे. इसमें 14 राधा अकेले नाम की बाघिन के थे.
10 दिसंबर 1969 को मोहन की मौत के बाद गोविंदगढ़ किला परिसर में ही राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया. 8 जुलाई 1976 को आखिरी बाघ के रूप में बचे विराट की भी मौत हो गई. इसके बाद 40 साल तक सफेद शेरों से रीवा वीरान रहा.
9 नवंबर 2015 को ह्वाइट टाइगर सफारी में विंध्या को लाया गया. तबसे अब तक यहां कई सफेद शेर हैं और अब ये सफारी देश-विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.
ट्रेन्डिंग फोटोज़