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महाकाल ने द्वारिकाधीश को सौंपा सृष्टि का भार, मन मोह लेंगी हरिहर मिलन की तस्वीरें

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) यानी रविवार-सोनवार की रात महाकाल की सवारी को गोपाल मंदिर तक ले जाया गया. यहां बाबा महाकाल और द्वारिकाधीश एक-दूसरे को बिल्व पत्र की माला पहनाई गई और बाबा भोले नाथ ने भगवान विष्णु को अगले 8 माह के लिए सृष्टि का भार सौंपा.

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सवारी बाबा महाकाल के धाम से रात 11 बजे निकली और पटनी बाजार होती हुई द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पहुंची. ठीक 12 बजते ही पूजन हुआ व रात 1:30 बजे सवारी वापस महाकाल मंदिर लौटी. इस दौरान जगह-जगह बाबा का स्वागत किया गया और बड़ी संख्या में भक्त इस सवारी यात्रा में शामिल हुए.

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महाकाल मंदिर के सभा मंडप से पूजन अर्चन के बाद चांदी की पालकी में लाव लश्कर के साथ बाबा महाकाल रवाना हुए. इस दौरान उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर बाबा को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. आतिशबाजी कर बाबा का स्वागत किया गया.

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रास्ते भर में कलर व फूलों की अद्भुत रंगोली से मार्ग को सुसज्जित किया गया. तोप घुड़ सवार, ढोल, नगाड़े, पुलिस बैंड ने बाबा महाकाल की अगुवाई की. बाबा महाकाल पटनी बाजार होते हुए द्वारकाधीश के धाम पहुंचे और दो घंटे के पुजन अभिषेक के बाद बाबा रात 1:30 बजे फिर मंदिर लौटे.

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मान्यता है बाबा महाकाल कृष्ण रूप में विराजमान भगवान विष्णु कों 8 माह के लिए श्रष्टि का भार सौंप पाताल लोक साधना के लिए चले जाते हैं. भगवान शिव विष्णु को श्रष्टि का भार सौंपते वक़्त बेल पत्र की माला पहनाते है और भगवान विष्णु शिव को तुलसी की माला पहनाते हैं.

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देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करते हैं. उस समय पृथ्वी लोक की सत्ता भगवन शिव के पास होती है और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता पुनः विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं. इसी दिन को वैकुंठ चतुर्दशी, हरि-हर मिलन भी कहते है.

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खास बात यह है कि ब्रह्मांड में केवल उज्जैन ही ऐसा तीर्थ है जहां भगवान खुद 'वैष्णव और शिव' धर्म के एक ही होने का संदेश देते है. उज्जैन में निकलने वाले ये हरिहर मिलन पालकी यात्रा इसी बात की गवाह है.